जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास

जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास

Glorious history of tribal society

Glorious history of tribal society

Glorious history of tribal society: भारत का जनजातीय समाज अपनी पारम्परिक विशेषता के लिए पहचाना जाता है । इस समाज में मौखिक शिक्षा की परम्परा रही है। अपनी सभ्यता संस्कृति और सहजता की विशिष्टता लिए यह समाज विश्व स्तर में अलग पहचान बनाए हुए हैं।

वर्तमान भारत के निर्माण में भारतीय जनजातीय समाज ने अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है। अतीत से लेकर वर्तमान तक इन जनजातीय समाजों का गौरवशाली इतिहास है। इस समाज ने अपनी कर्मठता, सहजता, सरलता और सत्य निष्ठा के लिए विश्व में ख्याति अर्जित की है । प्रकृति के साथ जीवन जीते इस समाज में औषधीय पहचान की अद्भुत क्षमता है। विकास के विभिन्न दौर से गुजर कर जनजातीय समाज ने उन्नति के चरम उत्कर्ष का स्पर्श कर लिया है। ज्ञान का अतुलनीय भण्डार लिए आदिवासी समाज का देश की उन्नति में विशिष्ट योगदान है।

आदिकाल से आदिवासी समाज उपेक्षा और उत्पीडऩ का शिकार रहा । राष्ट्र विकास में उल्लेखनीय योगदान के बावजूद इस समाज को हमेशा उपेक्षा, प्रताडऩा और ठगी का शिकार होना पड़ा। मेहनत के दम पर शौर्यता जीवन जीने के बावजूद इन्हें अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाया । समय ने अब करवट बदल लिया है, अब इस समाज ने विकासपथ पर अपनी दस्तक से दुनिया को झंकृत,अचम्भित कर दिया है।

आज जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास को दुनिया के सामने लाने की जरूरत है ताकि हमारी पीढिय़ाँ हमारे पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को जान सके और अपनी सभ्यता संस्कृति परम्परा पर गर्व कर सके। हमारे देश में आदिवासी समाज का गौरवशाली अतीत है। इस समाज ने ऐतिहासिक सामाजिक एवं आर्थिक योगदान से देश को परिपुष्ट किया है यह समाज वीरों एवं वीरांगनाओं की बलिदानी गाथा से उर्वर है। हमें जनजातीय समाज की पुरातन परम्पराओं एवं ज्ञान को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जिससे भावी पीढ़ी जनजातीय समाज की सामाजिक पृष्ठभूमि से अवगत हो सके ।

हमारे जनजातीय समाज की संस्कृति विश्व के विकसित देशों के लिये कौतूहल का विषय है। यहॉं की सभ्यता, संस्कार, कला एवं आजीविका पर हो रहे शोध से जनजातीय व्यवस्था की उत्कृष्टता का पता चलता है। ये जनजातीय समाज हमारा राष्ट्रीय गौरव है हमें अपनी जनजातीय संस्कृति की रक्षा करनी है जिससे इस समाज की वैश्विक विशिष्टता कायम रह सके। जिस समाज की संस्कृति नष्ट हो जाती है वह समाज भी मिट जाता है। हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ।

हमें अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति को युवा पीढ़ी को सौपना होगा और युवाओं से निवेदन है आप जितने भी बड़े पद में सुशोभित हो जाएँ लेकिन हमारी सभ्यता संस्कृति की बागडोर हमेशा थामे रहना । ताकि हमारी सॉंस्कृतिक धरोहर अक्षुण्ण रह सके। हमारे जनजातीय समाज के वीरता की गाथा जग प्रसिद्ध है। यहॉं वीरांगनाएँ प्रताडि़त होकर भी देश के लिए संघर्ष करती रही हैं। हमें इस समाज की जीवन शैली, सामाजिक संस्कारों की विशिष्टता, पुरुष,महिला एवं बच्चों के जीवन की संघर्ष गाथा लिखित रूप में आगे लानी होगी, जिससे हमारी भावी पीढ़ी को इनके गौरवशाली इतिहास की जानकारी हो सके।

हमारे आदिवासी समाज ने ही अस्त्र-शस्त्र और मंत्र विद्या का आविष्कार किया, जिससे इन्होंने आत्मरक्षा, देश सुरक्षा और जन-जन की रक्षा का दायित्व निर्वहन कर अन्य समाज की भी बड़ी सेवा की है । आज हमारे आदिवासी जनजातीय समाज के इतिहास पर विदेश में शोध कार्य हो रहे हैं लेकिन आश्चर्य है हमारी दृष्टि हमारे समाज की गौरवशाली अतीत पर नहीं है। हमारे आदिवासी समाज के इतिहास का लेखन दूसरे लोग कर रहे हैं।

जरूरत है कि हम अपने समाज और अपने पूर्वज की कहानी लिखकर दूसरे समाज तक लाएँ, जिससे हमारे पूर्वज की जिंदगी पर लिखकर हम न्याय कर सकें। विदेशी लेखक हमारे आदिवासी समाज की गौरवगाथा तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत कर रहे हैं। कुछ किवदन्तियाँ जोड़कर हमारे गौरवशाली सामाजिक इतिहास को विकृत बनाने से रोकने के लिये हमें अपने सामाजिक गौरव को कलमबद्ध करने की जरूरत है ।

आदिवासी समाज के महापुरुषों की जीवन गाथा, उन पर प्रश्नोत्तरी, फोटो प्रदर्शनी, पेंटिंग, नाटक, साँस्कृतिक कार्यक्रम जैसे विविध आयोजन स्कूल, कॉलेज, ग्राम के सामाजिक कार्यक्रम में निरंतर करते रहने की जरूरत है । जिससे आदिवासी समाज के महापुरुषों की जीवनी जन-जन तक पहुँच सके ।

हमारे आदिवासी समाज का देश की स्वतंत्रता, पुनर्निर्माण एवं विकास में योगदान अतुलनीय है इसे प्रत्येक समाज को चीखकर, पुकार कर और ताल ठोक कर बताने की जरूरत है । बड़े ही दुख का विषय है कि हमारी अपनी ही पीढ़ी के बच्चों को अपने बाप दादा की वीरता की कहानी नहीं मालूम ! हमारी पीढ़ी को अपने पूर्वजों की गौरव गाथा कोई दूसरा बताने थोड़ी आएगा?

हमें खुद बतानी होगी ! तो सर्वप्रथम हमें अपना कमर कस लेना होगा जिससे हम अपनी सामाजिक गौरवशाली अतीत का लेखन कर विभिन्न आयोजनों में वाचन एवं मंचन कर लोगों को अपनी सामाजिक गौरवगाथा बलिदान बता सकें। आजादी से पूर्व और आजादी के बाद के परिदृश्य में जमीन आसमान का अन्तर है। जीवन की टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डी में दुखों के अनगिन पहाड़ एवं खाईयों के बीच के अंतर व्यथा में हमने अपनी कुर्बानिया को लगभग भुला दिया है जिसे याद करने हैं, लिखने हैं और अपनी सामाजिक महापुरुषों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व देश दुनिया के सामने लाने हैं।

भारतीय इतिहास जहाँ से प्रारम्भ होता है, हमारे आदिवासी समाज का इतिहास भी वहीं से प्रारंभ होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से भारतीय जनजाति समाज की रीति-नीति संस्कार का काव्यात्मक चित्र प्रस्तुत कर रामचरितमानस महाग्रंथ को रोचक और जन-जन में लोकप्रिय बना दिया । हम आज भी अपने पारिवारिक एवं सामाजिक अंतद्र्वंद में जूझकर अपनी शक्ति अपनी क्षमता नष्ट न करें । अपनी शक्ति का अपनी समझ का सदुपयोग कर सामाजिक जागरण का केंद्र बिंदु बनें। रामचरितमानस का शबरी प्रसंग हमारे आदिवासी समाज की आध्यात्मिक चरमोत्कर्ष का केंद्र बिंदु है । जिनके जूठे बेर भगवान राम ने प्रेम विह्वल हो ग्रहण किया था।

देश की आजादी में आदिवासी समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हमारे आदिवासी समाज ने देश में क्रांति का बिगुल फूँक कर अंग्रेजी शासन के खिलाफ सीना तानकर खड़ा रहा। परलकोट विद्रोह, सिद्धो कान्हो, भूमकाल, पामगढ़ भील क्रांति जैसे आदिवासी जनक्रांति हमारे जनजाति समाज का सीना चौड़ा करने काफी है ।

जनजातीय समाज की गौरवगाथा पुस्तकाकार में जन-जन तक लाने की जरूरत है ताकि हमारी पीढ़ी को हमारे आदिवासी समाज की सभ्यता, संस्कृति एवं राष्ट्रीय चेतना, राष्ट्रीय एकता, राष्ट्र जागरण एवं भारत माता को गुलामी की बेड़ी तोडऩे में किए गए योगदान की जानकारी हो सके। इससे हमारे आदिवासी समाज की अंग्रेजों द्वारा बनाई गई विकृति छवि को सुधारने का शुभ अवसर भी होगा।

शिक्षा जगत में आदिवासी समाज के मूर्धन्य विद्वान शीर्षस्थ हैं, ऐसे विद्वतजनों से नम्र निवेदन है हमारे समाज की परम्परा, सभ्यता, संस्कृति, धरोहर,इतिहास पर विशेष शोधपूर्ण लेखन करें जिससे हमारी पीढ़ी को जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास की जानकारी हो सके और हमारे स्वर्णिम इतिहास पर पड़े धूल धक्कड़, पर्दा हट सके।

समय ने करवट बदल लिया है, अब अधिकांश जनजातीय समाज मौखिक शिक्षा अंधविश्वास कुरीतियों से ऊपर उठकर लिखित एवं वाचिक शिक्षा की परम्परा का निर्वाह कर अपने उद्देश्य में सफल होकर नित नयी ऊँचाइयों का स्पर्श कर रहे हैं। लेकिन अभी भी कुछ जनजातीय समाज को वक्त के धारे के साथ चलकर मौखिक शिक्षा से ऊपर उठकर लिखित एवं वाचिक शिक्षा की परम्परा बनानी होगी, इससे हमारे आदिवासी समाज का देश हित में किए गए अद्वितीय योगदान की जानकारी पूरी दुनिया को हो सके।

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