पड़ताल: बॉलीवुड की तर्ज पर 'छालीवुड' में भी काले धन का साया, सरकारी अफसरों और सराफा कारोबारी भी लगा रहे पैसा

पड़ताल: बॉलीवुड की तर्ज पर ‘छालीवुड’ में भी काले धन का साया, सरकारी अफसरों और सराफा कारोबारी भी लगा रहे पैसा

Investigation: Like Bollywood, 'Chollywood' is also under the shadow of black money, government officials and bullion traders are also investing money

Chollywood under the black money

-चिटफंड और धोखाधड़ी की कमाई से बनाई जा रहीं हैं फिल्में और एल्बम

पलाश तिवारी
रायपुर/नवप्रदेश। Chollywood under the black money: जैसे मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में एक वक्त था कि अंडरवल्र्ड का काला साया पूरी इंडस्ट्री पर छाया हुआ था। फिल्मों की स्क्रिप्ट, हीरो-हीरोइनों से लेकर फिल्म की लागत तक माफिया और उनके काले पैसे से तय होती थी। ठीक उसी तरह तेजी से बढ़ते छालीवुड में भी सफेदपोश अपनी काली कमाई लगा रहे हैं। इसमें छत्तीसगढ़ के आईपीएस से लेकर आईएफएस अफसरों और सराफा कारोबारी तक शामिल हैं। चौंकाने वाली बात यह कि प्रदेश के कुछ ऐसे चुनिंदा फिल्म प्रोडक्शन हाऊस हैं जिन्हें अफसर और सराफा कारोबारी फंडिंग कर रहे हैं। व्हाइट कॉलर धन कुबेरो में सर्वाधिक चर्चा प्रदेश के एक आईएफएस अधिकारी की है।


बैक टु बैक फ्लॉप पिक्चर्स देने के बाद भी औसत एक फिल्म का बजट ढाई से पांच करोड़ रुपये लगाने वाले एक फिल्म प्रोडक्शन हाऊस की चर्चा पूरे छालीवुड में है। इसी तरह रियल स्टेट कारोबारी, प्रदेश के अव्वल सराफा कारोबारी के अलावा बिलासपुर जेल में बंद एक धोखाधड़ी तथा चिटफंड (Chollywood under the black money) के आरोपी के भाई की फिल्मों की लंबी फेहरिस्त है। बता दें कि पहले छत्तीसगढ़ में फिल्मों का औसत बजट महज 15 से 20 लाख रुपए तक खर्च आता था और फिल्में लागत से तीन गुना ज्यादा कमाई करती थीं, तब भी इतनी पिक्चर्स नहीं बनती थीं। लेकिन अब ढाई से पांच करोड़ बजट वाली फिल्में हर 3 से 6 माह में बन रही हैं और टॉकीज में लगते ही उतर जाती हैं फिर भी कुछ प्रोडक्शन हाउस को फर्क नहीं पडऩे की वज़ह काले धन को सफेद करने का बेह्तरीन तरीका माना जाने लगा है।

जीएसटी का झोल झाल भी उजागर

ऐसा नहीं है कि सभी फिल्मों ने कमाई नहीं की है, कुछ गानों और कुछ में मजबूत अदाकारी के साथ कहानी दर्शकों को पसंद आई है। टॉकीज (Chollywood under the black money) में भी खूब टिकटें बिकी है लेकिन जीएसटी की अदायगी सहीं मायनों में नहीं की गई। कुछ छोटे बजट की फिल्म भी है जिसकी लागत तो 60 से 70 लाख थी लेकिन उसने ‘हंस झन पगली फंस जबे’ जैसी करोड़ों में कमाई की है। टैक्स विभाग के अफसरों को पहले इसकी भनक नहीं थी और वो काफी व्यस्तताओं में थे अब उन्हें काली कमाई की खपत से लेकर पिटी हुई फिल्मों को भी कमाई वाली बताकर ब्लैक मनी को व्हाइट करने की जुगत समझ आ गई है।

इनकम टैक्स और जीएसटी की नजर

सालों पहले छत्तीसगढिय़ा गीतों का एल्बम और फिल्म बनाने वालों पर आयकर विभाग ने धावा बोला था। उसके बाद से इंकम टैक्स ठंडा पड़ गया था। विभागीय सूत्रों की मानें तो लगातार छत्तीसगढ़ में नई नई फिल्मों की बाढ़ आ जाने और लाखों से बजट करोड़ों के आंकड़े टच करने के बाद आयकर और जीएसटी विभाग की नजरें फिल्म निर्माताओं, प्रोडक्शन हाऊस के साथ ही एल्बम बनाने वालों पर तिरछी हो गई है।

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