संपादकीय: मंदिरों से सरकारी नियंत्रण हटाने की मांग

संपादकीय: मंदिरों से सरकारी नियंत्रण हटाने की मांग

Demand to remove government control from temples

Remove government control from temples

Remove government control from temples: आंध्रप्रदेश के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में जहां हर साल भक्तों के दान से 3500 करोड़ रुपए की सालाना आय होती है। वहां प्रसाद के नाम पर बेचे जाने वाले लड्डू में जानवरों की चर्बी और मछली तेल से बनाई जाने वाली घी का उपयोग किए जाने की खबर सामने आने के बाद उक्त मंदिर की व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग गए हैं।

दुनिया के इस सबसे धनी मंदिर में मिलावटी घी से प्रसाद बनाने की घटना ने पूरे देश के करोड़ों भक्तों की आस्था पर गहरी चोट पहुंचाई है। इस घटना के बाद से एक बार फिर साधु संतों ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की मांग उठानी शुरू कर दी है।

गौरतलब है कि तिरुपति बालाजी मंदिर में रोज करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है किन्तु इसमें से 85 प्रतिशत राशि सरकारी खजाने में चली जाती है। ऐसी स्थिति में उक्त मंदिर में व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त राशि उपलब्ध नहीं हो पाती।

जबकि वहां हर दिन देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु तिरुपति बालाजी का दर्शन करने पहुंचते हैं। गौरतलब है कि ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत ऐसा कानून बनाया था कि हिंदुओं के सभी मंदिर सरकार के नियंत्रण में रहे जबकि चर्चों और मस्जिदों को सरकारी नियंत्रण से बाहर रखा गया था।

आजादी के बाद केन्द्र सरकार ने अंग्रेजों की इसी पहल को आगे बढ़ाते हुए हिंदू धर्म दान एक्ट 1951 लागू किया था । जिसके तहत सभी राज्य सरकारों को यह अधिकार दे दिया गया था कि वे बिना कारण बताए किसी भी मंदिर को अपने अधीन कर सकते हैं।

इस कानून के प्रभावी होने के बाद आंध्रप्रदेश सरकार ने उस राज्य के 34 हजार मंदिरों को अपने अधीन कर लिया था। जिसमें तिरुपति बालाजी मंदिर भी शामिल हैं।

तभी से देश के 18 राज्यों में राज्य सरकारों ने बोर्ड और ट्रस्ट बनाकर देश के नौ मंदिरों में से चार लाख से अधिक बड़े मदिरों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। इन मंदिरों में होने वाली आमदनी का एक बड़ा हिस्सा राज्य सरकार ले लेती है।

वहीं इन मंदिरों पर आयकर लगने के कारण कुछ हिस्सा केन्द्र सरकार के खजाने में भी चला जाता है। जबकि इन मंदिरों के रखरखाव और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार इन मंदिरों को नाम मात्र राशि ही उपलब्ध कराती है।

जबकि चर्चों और मस्जिदों को इस नियंत्रण से मुक्त रखा गया है। वे सरकार को कोई राशि नहीं देते उल्टे सरकार उन्हें आर्थिक मदद मुहैया कराती है। जिसका उपयोग वे अपने धर्म और शिक्षा के प्रचार में करते हैं।

किन्तु हिन्दुओं के मंदिरों से होने वाली आय का बहुत छोटा हिस्सा इन मंदिरों पर व्यय किया जाता है। यही नहीं बल्कि देश में ऐसे अनेकों बड़े मंदिर व मठ हैं।

जिन्हें श्रद्धालुओं ने जमीनें भी दान में दी हैं। इन जमीनों में से हजारों एकड़ जमीन पर भू- माफियों ने कब्जा कर लिया है। जिसके खिलाफ सरकार ने कभी कोई कार्यवाही नहीं की है।

यही वजह है कि तिरुपति बालाजी प्रसाद कांड उजागर होने के बाद अब फिर से देशभर ूमें यह मांग जोर पकडने लगी है कि हिंदू धर्म दान एक्ट में संशोधन कर मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से बाहर किया जाए ताकि ये मंदिर खुद अपना रखरखाव कर सके और वहां की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके।

साधु संतों की यह मांग न्यायोचित भी है। क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए यहां धार्मिक भेदभाव नहीं होना चाहिए। मंदिरों मस्जिदों और चर्चों के लिए एक समान कानून लागू होना चाहिए। बहरहाल यह देखना होगा की सरकार इस मांग को पूरा करती है या नहीं।

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