संपादकीय: भाजपा को आत्ममंथन की आवश्यकता

संपादकीय: भाजपा को आत्ममंथन की आवश्यकता

BJP needs introspection

BJP needs introspection

BJP needs introspection: लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस बार अकेले अपने दम पर बहुमत न मिल पाना भाजपा के कर्णधारों के लिए गहन चिंता का विषय बना हुआ है।

कहां तो वे इस बार 370 पार का नारा लगा रहे थे और एनडीए के 400 पार का सपना देख रहे थे जबकि जनादेश ऐसा आया कि भाजपा को मुश्किल से 240 सीटें ही मिल पाई। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में जहां भाजपा इस बार की 70 सीटें जीतने का दावा कर रही थी। वहां वह 35 सीटों पर ही सिमट गई।

इसके बाद से भाजपा लगातार अपने कमजोर प्रदर्शन को लेकर मंथन कर रही है। भाजपा को इस जनादेश से सबक लेने की जरूरत है और आत्ममंथन करने की भी आवश्यकता है। वैसे तो भाजपा की समीक्षा बैठकों में इसके कई कारण गिनाए गए हैं। जिनमें से एक बड़ा कारण भाजपा नेताओं का अतिआत्मविश्वास और भाजपा कार्यकर्ताओं में व्याप्त असंतोष को बताया जा रहा है।

यह ठीक है कि अतिआत्मविश्वास के चलते भाजपा (BJP needs introspectio) को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा है लेकिन इससे भी ज्यादा क्षति उसे कार्यकर्ताओं की नाराजगी के कारण उठानी पड़ी है।

लोकसभा चुनाव के बीच जिस तरह भाजपा ने दल बदलुओं के लिए अपने दरवाजे खिड़कियां और रौशनदान सभी खोल दिए थे और थोक के भाव में अन्य दलों के अवसरवादी नेताओं को भाजपा में शामिल कर लिया था। उससे भाजपा के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया था।

भाजपा ने दूसरी बड़ी गलती यह कर दी कि उसने दलबदलुओं को टिकट देने में भी दरियादिली दिखाई। इससे भाजपा कार्यकर्ता और ज्यादा निराश हो गए। यही वजह है कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने मन से काम नहीं किया। नतीजतन भाजपा को चुनाव में इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ा।

भाजपा के कोर वोटरों में भी भाजपा के प्रति नाराजगी देखी गई । एक ओर तो भाजपा भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की बात करती रही है। वहीं दूसरी ओर अन्य दलों के ऐसे नेताओं को पार्टी में शामिल करती गई । जो भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे रहे हैं।

उत्तरप्रदेश के बाद सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को दूसरे बड़े राज्य महाराष्ट्र में हुआ। जहां भाजपा ने भ्रष्टाचार के आरोपी अजीत पवार को अपने साथ कर लिया। यही नहीं बल्कि उन्हें महाराष्ट्र का उपमुख्यमंत्री भी बना दिया।

नतीजतन महाराष्ट्र में भाजपा को लोकसभा चुनाव में कम सीटें मिली और इसका असर अन्य राज्यों पर भी पड़ा। बहरहाल अब भाजपा नेतृत्व हार के कारणों की समीक्षा कर रहा है तो उसे इस बात पर भी गौर करना चाहिए की उसकी करनी और कथनी में अंतर न रहे।

अवसरवादी दलबदलुओं के साथ दयानतदारी दिखाना भाजपा (BJP needs introspection) के लिए आगे भी नुकसानदेय साबित होगा। यह बात उसे समझ लेनी चाहिए। शीघ्र ही महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और नई दिल्ली के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।

इसके पहले भाजपा आत्ममंथन कर लें। अन्यथा वहां भी उसे इसी तरह के परिणामों के लिए तैयार रहना होगा।

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