Weekly Column By Sukant Rajput : साप्ताहिक कॉलम… बातों…बातों…में !
Weekly Column By Sukant Rajput : दैनिक नवप्रदेश में सुकांत राजपूत द्वारा इस साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में देश से लेकर प्रदेश तक के सियासी और नौकरशाही से ताल्लुक रखती वो बातें हैं जिसे अलहदा अंदाज़ में सिर्फ मुस्कुराने के लिए पेश है। इस बार छालीवुड की बातें….
मिसाल थे ज़लील रिजवी…
छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि बॉलीवुड तक जलील रिजवी एक नाम नहीं शिनाख्त थे। सिर्फ रंगमंच और कला के क्षेत्र में ही नहीं अपितु समाज के लिए भी उन्होंने एक आदर्श प्रस्तुत करके चले गए। इतने महान रंगकर्मी और छत्तीसगढ़ी गीतों का फिल्मांकन करने वाले संगवारी नाम से उनका एल्बम आज भी पसंदीदा है। बातों ही बातों में उनके जानने वाले एक मित्र ने बताया उन्होंने मुस्लिम होते हुए भी अपने बच्चों के हिंदु नाम…सौरभ, सौम्य और समीर नाम रखकर बता दिया नाम-जात और धर्म नहीं काम याद रखो। कला प्रेमियों को मलाल है कि संस्कृति विभाग ने और शासन ने ऐसों को पद्मा सम्मान से नवाज़ा जो रिजवी साहब के पेअर के नाख़ून नहीं थे। यह सच भी है कि एक फिल्म करने वाले पद्म सम्मान हासिल कर लिए और पुराने व्हीएचएस कमरे के ज़माने से छत्तीसगढ़ के गानों का फिल्मांकन, संगवारी नाम के उनके एल्बम….’तैं बिल्हसपुरियन मैं रायगढियां’….’बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमे रे’ जैसे गीतों का फिल्मांकन किया….जय माँ बम्लेश्वरी का निर्देशन किया, कई रंगमंची प्रस्तुति दिए उन्हें शासन भूल कैसे गया… खैर, जन्नत नशीं जलील रिजवी और उनकी कला परख को हमारा सलाम।
सब्सिडी और फिल्म विकास निगम…
छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़िया भाखा, संस्कृति और फिल्मों के लिए राज्य शासन ने राज्य गठन के बाद से कई दफा लोकलुभावन वादा किया। लेकिन सब्सिडी तो दूर सभी जिलों में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों के लिए जगह तक मुहैया नहीं करवाई गई। आंकलन करें तो 33 जिलों में टॉकीज ही नहीं खुल पाया हैं। विडंबना यह कि हमारे ही राज्यों में छत्तीसगढ़ी की फिल्म को सब्सिडी सबसे कम है। इसके उलट हमारे ही राज्य में अन्य भाषाओँ की फिल्मों को 50% तो छत्तीसगढ़ी को सिर्फ 33% सब्सिडी की व्यवस्था की जाएगी। हालांकि बातों ही बातों में मित्र ने बताया कि बड़ी बात यह हैं कि राजपत्र में आ गया है। शासन को फिल्म विकास निगम बनाया है उसमे जो बेफिक्री का अलाम है उसी का खामियाजा छत्तीसगढ़ी फिल्म कलाकार और निर्माताओं को भुगतना पढ़ रहा है। सरकारी खर्च से सेटअप बनाकर जिनके जिम्मे इसे सौंपा गया है वो ऐसे निकले कि क्षेत्रीय फिल्मों को सब्सिडी तो दूर छत्तीसगढ़ के 33 जिलों में टॉकीज तक नहीं बना पाए हैं और खुद को छत्तीसगढ़िया फिल्म के विकास का खैरख्वाह बताते नहीं थकते। मिलेगी तो ऐसी मिलेगी यह राजपत्र मे व्यवस्था दी जाएगी।
स्ट्रगलर से बन गए निर्माता…
यूट्यूबर अमलेश नागेश गरियाबंद जिले के हैं। प्रणव झा की फिल्म से कैरियर शुरू किये। एक समय के स्ट्रगलर अमलेश नागेश छत्तीसगढ़ी फिल्मों में कॉमेडियन के अलावा छोटे-मोटे रोल में दिखे। अब ये खुद फिल्म निर्माता बन गए हैं। इनकी आने वालीं फिल्म है ‘हांडा’ यानि की ‘हंड्डा’ ! प्रणव झा की फिल्म से कैरियर शुरू करने वाले नागेश.सतीश जैन की फिल्म ‘मया के कहानी’ जो सुपरहिट रही उन्हें पहचान स्थापित करने में खासी मददगार साबित हुई। मनीष मानिकपुरी ने ‘घुईयां’ मे लिया था। फिलहाल उनकी इस फिल्म के निर्माता मोहित साहू हैं और अमलेश नागेश निर्देशक के साथ मुख्य भूमिका में जलवा अफ़रोज़ होंगे। छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘हांडा’ 7 जुलाई को टॉकीजों में लगेगी। छालीवुड के एक छलिया ने बातों ही बातों में कहा…चलो फिल्म विकास निगम ने जो नहीं किया अमलेश नागेश अपने साथ साथ छत्तीसगढ़िया फिल्मों और कलाकारों के अलावा छत्तीसगढ़ के फिल्म प्रेमियों के लिए कर तो रहे हैं।
कमाई वाली…छईयां भुईयां पार्ट टू
चलते चलते सुविधाओं से बेज़ार छालीवुड की सबसे कमाई वाली छत्तीसगढ़िया फिल्म ‘मोर छईयां भुईयां’ की भी बात करते चलें। मजे की बात यह कि इस फिल्म का पार्ट वन से जितनी कमाई नहीं हुई उससे ज्यादा पार्ट टू ने कमाकर दे दिया। बातों ही बातों में छालीवुड के बाबा मोज ने बताया कि ‘मोर छईयां भुईयां’ पार्ट टू ने 10 करोड़ का बिजनैस की…लागत डेढ़ से 2 करोड़ की थी। इसी तरह ‘मोर छईयां भुईयां’ पार्ट वन ने लगभग 2 से ढाई करोड़ का व्यवसाय की थी। चौंकाने वाली बात यह कि फिल्म की लागत महज 25 से 30 लाख की थी। इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और प्रोड्यूसर से ज्यादा फायदे में फिल्म का टुरा है…लेकिन वो आइस्क्रीम की क्रीम क्रीम चाटकर अभिनेता से लेकर नेता बन गया…जितना उसे पारिश्रमिक नहीं मिला उससे ज्यादा अब वो कमा रहा है जो सब लोगों से ज्यादा है।