चिंताओं का हरण करने वाली माता छिन्नमस्तिका
मुकेष ऋषि
Chhinnamastika Jayanti 2024: दस महाविद्याओं में छिन्नमस्तिका माता छठी महाविद्या कहलाती हैं. इस वर्ष देवी छिन्नमस्तिका जयंती गुरूवार 21 मई 2024, के दिन मनाई जाएगी. यह जयंती भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाई जाती है. माता के सभी भक्त इस दिन माता की विशेष पूजा अर्चना करते हैं. माता छिन्नमस्तिका जयंती पर माता के दरबार को रंग-बिरंगी रोशनियों और फूलों से सजाया जाता है. मंदिर में मंत्रोच्चारण के साथ पाठ का आयोजन किया जाता है.
छिन्नमस्तिका माता के दरबार में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं. छिन्नमस्तिका देवी को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है. देवी के इस रूप के विषय में कई पौराणिक धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. मार्कंडेय पुराण व शिव पुराण आदि में देवी के इस रूप का विशद वर्णन किया गया है इनके अनुसार जब देवी ने चंडी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया.
दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा. परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीँ हो पाई थी इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक (Chhinnamastika Jayanti 2024) काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई, जिस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से भी पुकारा जाने लगा. माना जाता है की जहां भी देवी छिन्नमस्तिका का निवास हो वहां पर चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी हो. इस बात की सत्यता इस जगह से साबित हो जाती हैं क्योंकि मां के इस स्थान के चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी है.
यहां पर कालेश्वर महादेव व मुच्कुंड महादेव तथा शिववाड़ी जैसे शिव मंदिर स्थापित हैं. छिन्नमस्ता के प्राद्रुभाव की एक कथा इस प्रकार है-भगवती भवानी अपनी दो सहचरियों के संग मन्दाकिनी नदी में स्नान कर रही थी. स्नान करने पर दोनों सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी. भूख कि पीडा से उनका रंग काला हो गया. तब सहचरियों ने भोजन के लिये भवानी से कुछ मांगा. भवानी ने कुछ देर प्रतिक्षा करने के लिये उनसे कहा, किन्तु वह बार-बार भोजन के लिए हठ करने लगी.
तत्पश्चात सहचरियों ने नम्रतापूर्वक अनुरोध किया-‘मां तो भूखे शिशु को अविलम्ब भोजन प्रदान करती है’ ऐसा वचन सुनते ही भवानी ने अपने खडग से अपना ही सिर काट दिया. कटा हुआ सिर उनके बायें हाथ में आ गिरा और तीन रक्तधाराएं बह निकली. दो धाराओं को उन्होंने सहचरियों की और प्रवाहित कर दिया. जिन्हें पान कर दोनों तृ्प्त हो गई. तीसरी धारा जो ऊपर की बह रही थी, उसे देवी स्वयं पान करने लगी. तभी से वह छिन्नमस्तिका के नाम से विख्यात हुई है.
मां की जयंती मनाने के कुछ दिन पहले से ही जोरदार तैयारियां शुरू हो जाती हैं मां के दरबार को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. इस मौके पर मां दुर्गा सप्तशती (Chhinnamastika Jayanti 2024) के पाठ का आयोजन भी किया जाता है जिसमें श्रद्धालुओं सहित सभी भक्त भाग लेते हैं. इस दिन श्रद्धालुओं को लंगर परोसा जाता है जिसमें तरह-तरह के लजीज व्यंजन शामिल होते हैं. माता चिंताओं का हरण करने वाली हैं.
मां के दरबार में जो भी सच्चे मन से आता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है. मां का आशीर्वाद सभी पर इसी तरह बना रहे इसके लिए मां के दरबार में विश्व शांति व कल्याण के लिए मां की स्तुति का पाठ भी किया जाता है. मंदिर न्यास की ओर से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक प्रबंध किए जाते हैं. इस मौके पर हजारों श्रद्धालु जन मां की पावन पिंडी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं.