CG Election 2023: बस्तर : रहने को घर नहीं, सारा जहां हमारा…
बस्तर से लौटकर यशवंत धोटे
35 साल की विकलांग युवती कांसी पेडिया को एक अदद आवास की दरकार हैं। दंतेवाड़ा से कटेकल्याण के रास्ते में कटेकल्याण से 12 किलोमीटर पहले मेटापाल गांव में सड़क पर जगनी के पीले फू ल वाले खेत के सामने छोटी सी अस्थाई दुकान लगाकर बैठी कांसी की दुकान में सामान इसलिए कम बिकता है क्योंकि किसी और ने 2 किमी पहले एक और दुकान खोल रखी है।
वैसे पंडाल में लगने वाली इस दुकान में तीन चार झंडे तो भाजपा के लहरा रहे है लेकिन उसका वोट गिलास को जाएगा। गिलास किसी निर्दलीय प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह हैं। कांसी को किसी भी सरकार से कोई शिकवा शिकायत नहीं है। आठवीं पास इस युवती की राजनीतिक समझ इतनी तो है कि माना कि गिलास के चिन्ह पर लडऩे वाला प्रत्याशी उसे आवास नहीं दिलवा सकता लेकिन वो उसके लिए सरकार से लड़ तो सकता है।
प्रधानमंत्री आवास के बारे में उसे खास जानकारी नहीं है लेकिन उसे इतना मालूम है कि सरकार रहने के लिए बेघरों को घर देती है। हालांकि जिस जगह पर वह दुकान लगाती है वो किसी रिश्तेदार की है और उसने घर बनाने के लिए जगह देने रिश्तेदार को राजी भी कर लिया है। बस अब सरकारी मदद की दरकार है। अलग अलग विधा की ऐसी सैकड़ों कहानियां क्षेत्रफल में केरल जैसे राज्य से भी बड़े बस्तर के इस भू-भाग पर हैं।
केशकाल घाट से सड़क के दोनों ओर सीताफल की टोकरिया लेकर बैठी आदिवासी महिलाओं की अपनी समस्याए हैं। इसके बावजूद खरीददारी के लिए उनके पास रूकने वाले वाहन मालिकों को ये महिलाएं केशकाल घाट चढऩे से पहले आगाह करती है कि देख के जाना बाबू घाट का रास्ता लम्बे समय से बहुत खराब है। जाम लगता है, बड़े-बड़े गड्ढ़े है। बस्तर की खस्ताहाल सड़कों का जिक्र इन महिलाओं के मुंह से सुना भर जा सकता हैं लेकिन मसहूस वो लाखों मुसाफि र कर रहे हंै जो यहां से गुजर रहे है।
बस्तर संभाग में 12 विधानसभा की सीटे हैं जहां 7 नवंबर को मतदान होना है। 2018 में ये सभी कांग्रेस ने जीती थी। लेकिन इस बार सभी सीटें बचाए रखने के लिए कांग्रेस को दुगनी मेहनत करनी पड़ रही है। मजे की बात तो यह है कि जिस सर्वआदिवासी समाज की हमर राज पार्टी कांग्रेस और भाजपा को नाको चने चबाने का दावा कर रही थी धरातल पर उसकी मौजूदगी नहीं दिख रही है लेकिन अन्दरखाने की खबर है कि इनसे ज्यादा अजीत जोगी की जनता कांग्रेस, केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, भाकपा और निर्दलियों के साथ ही भाजपा कांग्रेस के बागी वोट कटुआ के रूप में सत्तासीन कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। बस्तर के हाट बाजारों में इन सबके पोस्टर बाय घूम रहे है।
भाजपा और कांग्रेस के लाव लश्कर को चुनौती देते इन दलों के पास वैसे भी खोने के लिए कुछ नही है लेकिन जिनके पास खोने के लिए सारा जहां है वो हवा में उड़ रहे हैं। वैसे बस्तर की फितरत से वाकिफ राजनीतिक प्रेक्षक इस बार कन्फ्ूयज है। एक- एक सीट और एक- एक वोट के लिए घना संघर्ष है। मसलन 2018 में बहुत कम अन्तर से जीतने वाले मंत्री कवासी लखमा की कोंटा सीट पर उनके समर्थकों को गांव से वापस भेजा जा रहा है।
यहां पर भाजपा का नया चेहरा सोयम मुक्का और भाकपा से पूर्व विधायक मनीष कुंजाम के बीच घना त्रिकोणीय संघर्ष हैं वह भी तब जब भाकपा का चुनाव चिन्ह ‘हसिंया बांली’ जप्त हो चुका है नए चिन्ह ‘एयर कंडीशनर’ पर भी मनीष टक्कर दे रहे हैं। बल्कि अमित जोगी की पार्टी को चुनाव चिन्ह ‘खेत जोतता किसान’ का लाभ मिलता दिख रहा है। दरअसल, राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से इतर चुनाव लड़ रहे इन दलों को होने वाले राजनीतिक नफे नुकसान की परिभाषा को समझना होगा। चुनाव के मैदान में खम ठोक रहे ये सब जानते है कि खुद को छोड़कर जीत या हार कौन रहा है? नफे या नुकसान की सौदेबाजी शुरू वही से होती है।
पूरे बस्तर में जोगी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का प्रचार प्रसार उनकी हैसियत से ज्यादा हैं। अन्तागढ़, नारायणपुर, कोडंागाव और कांकेर जैसी सीटों पर कांग्रेस को कड़ी चुनौती मिल रही है। इसमें से दो सीटों कांकेर और अंतागढ़ पर कांग्रेस ने टिकिट काटने का प्रयोग किया है जो असफ ल होता दिख रहा है। 2018 की तुलना में यहां भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन जो सीटें मिलनी है वह बोनस है। भाजपा धर्मान्तरण, भ्रष्टाचार और नक्सलवाद जैसे मसले को लेकर आक्रामक है तो कांग्रेस अपने पांच साल में आदिवासियों के लिए किए काम को लेकर मुखर है।
वनोपज के समर्र्थन मूल्य की बढ़ोतरी कांग्रेस का बेंच मार्क है। कांकेर की सीट से भाजपा ने आशाराम नेताम के रूप में न केवल नया चेहरा उतारा बल्कि तीन महीने पहले ही प्रत्याशी घोषित कर कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने की कोशिश की। यह सीट कांग्रेस के हाथ से जाती दिख रही है। कांग्रेस ने मौजूदा विधायक शिशुपाल सोरी की टिकिट काटकर शंकर ध्रुवा को दी।
हालांकि शिशुपाल सोरी का कहना है कि वे कांग्रेस के सिपाही है और कांग्रेस के लिए काम कर रहे है। बीजापुर के पूर्व विधायक महेश गांगड़ा का कहना है कि हर बार की तरह इस बार भी नक्सली चुनाव का बहिष्कार कर रहे। भाजपा की स्थिति बेहत्तर बताते गागड़ा का कहना है न केवल बीजापुर जीत रहे बल्कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बन रही है।