CG Assembly Elections 2023 : कांग्रेस टिकिट वितरण- हाथी निकल गया, पूंछ फंस गई…!
सुकांत राजपूत/नवप्रदेश
रायपुर। CG Assembly Elections 2023 : कांग्रेस टिकट वितरण में अपनों को टिकिट दिलाने की होड़ में गुटबाजी खुलकर देखी गई। अब कांग्रेस के खाटी भी बोलने से नहीं चूक रहे कि हाथी निकल गया, पूंछ फंस गई…! अब तक कुल 90 विधानसभा सीटों में से 83 विधानसभा में प्रत्याशियों के नाम फाइनल हुए हैं।
लेकिन 7 सीटों पर पेंच फंसा हुआ है। कांग्रेसी गलियारे में 83 सीटों में जो प्रत्याशी हैं उनमें से महज़ 7 फीसदी ही ऐसे हैं जिन्हें सत्ता, संगठन की पसंद और सर्वे रिपोर्ट की वजह से चुना गया है।
बकाया 7 सीटों में नजराना, जबराना और समध्याना की वजह से असमंजस की स्थिति है। बात करें गुटबाजी की तो कमोबेश दाऊ-पैलेस पर 20 ही साबित हुए। वैसे राजहठ अपने उद्देश्य में फ़िलहाल कामयाब माना जा सकता है।
इसे आसान शब्दों में कहें तो कांग्रेस टिकिट वितरण में एकतरफा दाऊ की चली, पैलेस सिर्फ आत्मसम्मान बचा पाया। वह भी खुज्जी की अपनी कट्टर समर्थक के बलिदान के एवज में सामरी और रामानुजगंज में कामयाबी मिली।
लेकिन सीतापुर और प्रत्याशी का बाल भी बिंका नहीं किया जा सका…मतलब दाऊ का गणित चल ही गया। खैर, यह सब दांव-पेंच तो किसने दोस्ती निभाई और कौन विरोधी पाले में खड़ा दिखा उनके लिए था।
बिलासपुर में दाऊ की पसंद को कोटा शिफ्ट होना पड़ा और पैलेस समर्थक महफूज़ रहा। किस गुट को जद्दोजहद करना पड़ा तो बता दें दाऊ, पैलेस और पंथ तीन गुटों में पंथ ज्यादा नहीं सिर्फ धमतरी से अपने दोस्त को टिकिट दिलाना चाहते थे, लेकिन उसमें भी पेंच फंस गई।
क्योंकि संगठन और सर्वे उनके दोस्त को उपयुक्त नहीं मानता। रही सही कसर रायपुर उत्तर के अनचाहे केंडिडेट के समाजिक ताने-बाने से लटक गई है।
ऐसे में मतदाता संख्या में नाकाफी होने के बाद भी व्यापारिक समाज के दो को धमतरी-रायपुर उत्तर से टिकिट देने का मामला उलझ गया है। सियासी हलकों में चर्चा आम है कि धमतरी, रायपुर उत्तर और जगदलपुर से दमदार सिख प्रत्याशी थे।
ऐसे में यह मामला भी सामाजिक प्रतिनिधित्व में फंस गया है। सुनने में आ रहा है कि रायपुर उत्तर से टिकिट के लिए जिस युवा को नजराने के बतौर सीट मिलने वाली थी वह लटक गई है।
क्योंकि अब पंजाब से भी सीधे उत्तर के लिए दिल्ली दरबार में दबाव बन गया है। पहले ही लेटलतीफ कांग्रेस की लिस्ट में 7 नाम पर सहमति के लिए उतनी ही मशक्कत करनी पड़ रही है, जितनी 83 के लिए की गई।