Balwadi : बालवाड़ी नहीं कमाईवाड़ी…अधिकारी के हस्तक्षेप से सस्ता सामान लिया 15 हजार में…! कोरिया-एमसीबी के शिक्षक आखिर जिले को छोड़ कैसे पहुँचे सूरजपुर !
मनेन्द्रगढ़/कोरिया/नवप्रदेश। Balwadi : छग की भूपेश सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत 5 से 6 वर्ष आयु तक के बच्चों के लिए बालवाड़ी नामक महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की है, लेकिन जिम्मेदारों की लालच के चलते कोरिया व एमसीबी जिले में इस योजना से खिलवाड़ हो गया।
छग सरकार द्वारा 6536 बालवाड़ी के साथ इस योजना की शुरुआत की है जहा बच्चो की दर्ज संख्या लगभग 323624 हैं। इसमें बच्चो के सीखने और समझने की क्षमता का विकसित किया जाना है। फिलहाल इस योजना के तहत स्कूल परिसर मे स्थित आंगनबाडिय़ों को बालवाड़ी मे तब्दील किया जा रहा है। शासन की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत कोरिया व एमसीबी जिले के 176 स्कूलों में बालवाडी बनाया जाना है।
किन्तु मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की नैनिहालो के लिए शुरू की गई बालवाड़ी योजना का अफसर पलीता लगा रहे है। आदिवासी अंचल की शिक्षा में सुधार लाने के लिए राज्य सरकार नित नए नए योजनाओं को क्रियान्वित कर रही है, पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों की कारगुजारी के कारण शासन की अच्छी भली योजना भी, इस अंचल में आकर बेकार साबित हो रही है। योजनाओं में भ्रष्टाचार की नींव रखने के कारण शुरूवाती दौर में ही उन पर दाग लगने शुरू हो जाते हैं, कोरिया और मनेन्द्रगढ़ जिले में इस योजना में बड़ा फर्जीवाड़ा हुआ है। कुल 26 लाख 40 हजार रुपये से अधिकारियों व सप्लायर ने शिक्षक को अंधेरे में रख मिलकर फर्जीवाड़ा किया है जिससे इस योजना में अधिकारियों की भूमिका को लेकर संदेह होना स्वाभाविक है !
2 हजार का सामान 15 हजार में
बालवाड़ी के लिए स्कूलों के प्रधानपाठकों को सतत शिक्षा समग्र योजना के तहत शासकीय खाते में 15 हजार रुपए दिए गए जिससे सभी स्कूलों ने अपने अधिकारी के निर्देश में सामग्री बालवाड़ी के क्लासरूम की सामग्री खरीदी। स्कूलों ने जो सामग्री खरीदी उसका बाजार दर तीन से पांच हजार रुपए है, लेकिन उक्त सामग्री को सभी प्रधानपाठकों ने अधिकारी के निर्देश में दबाव से 15 हजार रुपए में खरीद ली।
नाम न छापने के शर्त पर कई प्रधानपाठन ने बताया कि समग्र शिक्षा के जिला मिशन समन्वयक मनोज कुमार पांडेय जो कि सूरजपुर के रहने वाले है के मौखिक आदेश के तहत खरीदा गया किसी भी अध्यापक ने दुकान नही देखा है चुने हुए फर्म द्वारा सामग्री को दोनों जिले के बी आर सी व विकासखंड कार्यालय में भेजवाया गया वही पहले से भरे पी एफ एम एस फार्मेट में हस्ताक्षर करा कर बैंक भिजवा दिया व सभी को सामग्री दी गई हमे बैंक से राशि कटने की बस जानकारी है।
वही इस मामले में हैरत की बात यह है कि जिस फर्म ने कोरिया व एमसीबी जिले के 176 स्कूलों में जिस फर्म ने सामग्री सप्लाई की है वह भी सूरजपुर जिले की फर्म है। फर्म का नाम ओम प्रकाश पुस्तक भंडार है। जिसका संचालक कहता है मैं 5 रुपये का सामान 5 हजार में बेचू उस से आपको क्या दिक्कत हैं जब जिले के अधिकारियों को नही है जिससे इस तरह सामग्री सफ्लाई व अधिकारियों में कमीशन लेनदेन की सुगबुगाहट हैं कितना लिया गया यह तो जाँच में ही स्पष्ट होगा किन्तु अधिकारी के इस फैसले से अब इन स्कूलों के प्रधान पाठक पर बिना गलती गाज गिरना स्वाभाविक हैं।
प्रधानपाठक इस बात की शिकायत दबी जुबान से तो कर रहे है, लेकिन अपने उच्च अधिकारियों का नाम सामने आने पर वे खुलकर बोलने से हिचकिचा भी रहे है। बहरहाल शासकीय स्कूलों में जैसे ही बालवाड़ी सजाने के नाम पर प्रधान पाठकों के खाते मे शासन की ओर से रुपए जमा हुए वैसे ही बीआरसीसी व उच्च कार्यालय में बैठे जिम्मेदार अपने पद की गरिमा भूलकर ठेकेदारी करने में उतर आए।
प्रधानपाठक बालवाड़ी सजाने के काम से एक बार फिर अछूते रह गए। दरअसल उनके खाते में रुपए जरूर आए, लेकिन उसका लाभ बीआरसीसी व उच्च कार्यालय में बैठे जिम्मेदार ठेकेदार बनकर उठा रहे हैं।इस बात से प्रधानपाठकाें में भारी नाराजगी है। उनके द्वारा बीआरसीसी व उच्च कार्यालय के जिम्मेदार की दबी जवान में शिकायत की जा रही है, लेकिन सामने आकर बोलने से वे हिचक रहे हैं। उनका कहना है कि बीआरसीसी कार्यालय मे बैठे लोग विभाग के जिले के अधिकारियों के नाम पर दबाव बनाकर उनके हक का काम अपने लाेगाें से आपसी सांठगांठ कर करा रहे हैं।
प्रधान पाठकों का कहना है कि स्कूलों में जहां बालवाड़ी में हाेने वाले कार्य का स्तर बेहद खराब है। वही 15 हजार रुपए की राशि में कई हिस्सेदार बन बैठे हैं।वही अब मामला सामने आने पर हमें ही जिम्मेदार बता रहे जबकि हमारी कोई भूमिका नही है हमने तो अपने अधिकारी के निर्देश का पालन किया ।
बच्चो के विकास में फेर रहे पानी
आदिवासी अंचल कोरिया व एमसीबी जिला शिक्षा के नाम से काफी पिछड़ा हुआ है। शिक्षा विभाग के अधिकारी राज्य सरकार की छवि को धूमिल करने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे, जिस प्रकार शिक्षा विभाग में एक के बाद एक योजनाओं पर कालिख पोतने का काम हो रहा है, ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब शासन की मंशा के साथ-साथ उच्च अधिकारियों की सोच एवं आदिवासी अंचल के बच्चों की शिक्षा पर भी ग्रहण लग जाएगा।
बगैर जीएसटी जोड़े दर
नियमो के मुताबिक शासकीय विभागों में सप्लाई जीएसटी टैक्स जोड़े बगैर नही की जा सकती है, लेकिन यहां न तो बिल में जीएसटी जोड़ा गया है न ही सप्लाई किये गए सामानों का सही तरीके से जिक्र किया गया है। ऐसे में सरकार को भी ये अफसर चुना लगाने में कोई कसर नही छोड़ रहे है। लगभग 50 हजार रुपये के कर का चूना इस पूरे मामले में सरकार को लगाया गया है।
वर्जन
मैं सप्लायर हु। मैं 5 रुपये का सामान 5 हजार में बेच सकता हु। विभाग ने आर्डर दिया है तो सप्लाई किया हु। आप पत्रकार हो तो मैं भी मानवाधिकार से जुड़ा हु। मेरा मन मैं कितने में भी सप्लाई करू। नारायण बंसल, सप्लायर सूरजपुर जिला
अपना पल्ला झाड़ा
स्कूलों के प्रधानपाठकों ने खरीदी की है। विभाग ने पैसा स्कूलों के खाते में डाल दिया था, भुगतान वही से हुआ है। प्रधानपाठक गलती किये है तो कार्यवाही होगी। सामग्री सूरजपुर से जिले के बीआरसी व विकासखंड शिक्षा कार्यालय में आना स टीचरों को सामग्री देने पर विभाग का हस्तक्षेप पर पल्ला झाड़ते नजर आये। मनोज कुमार पांडेय, जिला समन्वयक