Karnataka Election Result : कर्नाटक, कांग्रेस का मंथन, भाजपा को महामंथन
प्रेम शर्मा। Karnataka Election Result : यूपी के निकाय चुनाव में क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा के लिए कर्नाटक का चुनाव परिणाम वाकई चौकाने वाला है। भाजपा के शीर्ष नेताओं की चौबीस घंटे कसरत करने वाली मेहनत के बावजूद कर्नाटक में भाजपा की हार और कांग्रेस को बहुमत दोनों दलों के लिए मंथन और महामंथन का वक्त है। कांग्रेस जश्न तो मनाए लेकिन यह सोचकर अन्य राज्यों में उसके पास झण्डा उठाने वाले कार्यकर्ता नाम मात्र के रह गए है। उधर भाजपा को इस बॉत पर महामंथन करना चाहिए कि उसके शीर्ष नेता की विश्व प्रसिद्धि और भारत के अधिकाधिक राज्यों में सत्ता, केन्द्र में सत्ता होने के बावजूद उसके हाथ से दक्षिण क्यो निकल गया।
महंगाई और बेरोजगारी से इतर धर्म के नाम पर चुनाव को कर्नाटक की जनता ने नकारा दिया है। कर्नाटक चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि कांग्रेस पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है। हिमाचल में मिली कामयाबी के बाद इस बड़ी जीत को कांग्रेस के लिए संजीवनी कहा जा रहा है, बल्कि कांग्रेस को बहुत दिनों बाद इतनी सॉलिड जीत मिल रही है। नतीजों को देखते हुए कांग्रेस नेताओं का उत्साह चरम पर है। भाजपा ने काफी पहले से ही जाहिर कर दिया था कि वह चुनाव किन मुद्दों पर लडऩे जा रही है।
यही वजह है कि उसने कभी हिजाब को मुद्दा बनाया तो कभी हलाल को। कभी टीपू सुल्तान का भव्य जन्म दिवस मनाने वाली भाजपा टीपू सुल्तान को भी मुद्दा बनाने से नहीं हिचकिचाई। हिजाब मामले की लड़ाई तो कर्नाटक की भाजपा सरकार ने अदालत तक जाकर लड़ी।ऐसे में जो चुनावी नतीजे सामने आ रहे हैं, उससे जाहिर है कि वहां की जनता ने उसके इन सारे मुद्दों को बुरी तरह नकार दिया। पार्टी सांप्रदायिक ध्रवीकरण कराने में असफल रही। अब ऐसे में इस साल के अंत में मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। इनमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। पार्टी पर इन राज्यों में अपनी सरकार को बचाने का दबाव होगा।
वहीं मध्य प्रदेश में इस बार पूर्ण बहुमत में सरकार बनाने के लिए भी रणनीति बनानी होगी। उसे मिजोरम और तेलंगाना में भी अपना प्रदर्शन बेहतर करना होगा। जीत के बावजूद कांग्रेस के लिए भी मंथन और चिंतन का समय है। उसे देखना होगा कि यह जीत क्या उसकी रणनीतिक विजय है या महज एंटी इनकम्बेंसी और भाजपा की गलतियों से मिली जीत है। कर्नाटक देश का एक अहम राज्य है। यहां बिहार-यूपी जैसी ज्यादा सीटें तो नहीं हैं, लेकिन इस राज्य को साउथ का एंट्री प्वाइंट माना जाता है। यहां मिली जीत का असर दूसरे राज्यों में भी पड़ेगा। यही वजह है कि बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए कड़ी मेहनत की थी। यह बात अलग है कि वह कर्नाटक के चुनाव में विकास और रोजगार जैसे मुद्दों के इतर अपने चिर-परिचित धार्मिक एजेंडे को लेकर ही आगे बढ़ती रही।
यहां तक कि अप्रत्याशित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘बजरंग बली की जयÓ जैसे नारे भी लगवाते दिखे। पूरे चुनाव में प्रधानमंत्री ने पांच ट्रिलियन की इकॉनामी का एक बार भी जिक्र नहीं किया। न मेक इन इंडिया और न ही स्टार्टअप जैसे विषयों को छुआ। ध्यान देने की बात यह है कि कर्नाटक का अहम शहर बेंगलुरु को भारत का सिलिकॉन वैली माना जाता है। ऐसे राज्य में प्रधानमंत्री ने किसी विजन या सपनों को साकार करने की बात किसी भी चुनावी भाषण के दौरान नही कही।चुनाव के आखिरी दौर में तो सिर्फ बजरंग बली और गाहे-बगाहे ‘केरल स्टोरीÓ फिल्म का जिक्र ही होता रहा। समझने वाली बात यह है कि ऐसे धार्मिक मुद्दे यूपी और बिहार में तो भुनाए जा सकते हैं, लेकिन इसे कर्नाटक, गोवा जैसे राज्यों में नहीं भुनाया जा सकता है।
कर्नाटक में हमेशा सत्ता विरोधी कारक काम करता है। यहां 38 साल में कोई भी सरकार सत्ता में दोबारा नहीं आई। इस बार भी भाजपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी। बीजेपी अति आत्मविश्वास में रही और अंत तक उसने इस फैक्टर को महत्व ही नहीं दिया। उसे लगता रहा कि उसका विजयी रथ तेजी से दौड़ रहा है और वह राज्य में अपनी सरकार दोबारा स्थापित कर लेगी।इसके विपरीत कांग्रेस ने शुरू से ही करप्शन को मुद्दा बनाया। पार्टी ने ‘चालीस फीसदी पेसीएम’ का नारा दिया और देखते ही देखते करप्शन चुनाव का अहम मुद्दा बन गया। बीजेपी चुनाव के अंत तक इसकी काट नहीं कर सकी। बीजेपी पूरा चुनाव धार्मिक धु्रवीकरण के भरोसे लड़ती रही।
कर्नाटक के नतीजों को देखें तो कांग्रेस को ज्यादा फायदा अपनी रणनीति की जगह बीजेपी की कमजोरियों की वजह से मिला है। ऐसे में कांग्रेस के लिए भी यह चिंतन और मंथन का समय है कि अगर वह कामयाबी को निरंतरता में तब्दील नहीं कर पाई तो एक बार फिर से पार्टी वैंटिलेटर पर पहुंच जाएगी। कांग्रेस ने कर्नाटक में जिस आसानी से जीत हासिल कर ली, उससे यह स्पष्ट है कि भाजपा की बोम्मई सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सकी। चुनाव परिणामों से यह भी स्पष्ट हुआ कि यदि कर्नाटक की तरह किसी राज्य की भाजपा सरकार का कामकाज जनता को संतुष्ट करने वाला न हो तो फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का करिश्मा भी एक हद तक ही काम कर सकता है।
इसका संकेत हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों ने भी दिया था। कर्नाटक के नतीजों का लाभ आगामी विधानसभाओं और फिर लोकसभा चुनावों में भी मिलेगा। हर चुनाव की परिस्थितियां अलग होती हैं। इसके बावजूद यह भी सही है कि कहीं पर भी जीत-हार राजनीतिक दलों के मनोबल को प्रभावित करने और अन्यत्र माहौल बनाने का काम करती है। कर्नाटक के चुनाव नतीजे इस दृष्टि से कांग्रेस के लिए भी बेहतर हैं। त्रिशंकु विधानसभा बनने के आसार अच्छे नहीं थे। जनता दल-सेक्युलर किंगमेकर बनने के जो सपने देख रहा था, वे पूरे नहीं हुए। नतीजे बता रहे हैं कि राज्य के मतदाता परिवर्तन के लिए मन बना चुके थे। यही कारण रहा कि भाजपा को अनुमान से भी कम सीटें मिलीं।
यह अच्छा हुआ कि कर्नाटक के मतदाताओं ने कांग्रेस के रूप में किसी एक दल को बहुमत प्रदान करना पसंद किया और खिचड़ी सरकार की आशंकाओं को परे किया। ऐसी सरकारें शासन प्रशासन के कामकाज को प्रभावित करने के साथ अस्थिरता का भी सामना करती रहती हैं।चुनाव नतीजों के बाद भाजपा को केवल खुले मन से हार स्वीकार ही नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन कारणों पर गंभीरता से ध्यान भी देना चाहिए, जिनके चलते उसे पराजय का सामना करना पड़ा। यदि वह सत्ता विरोधी रुझान का सामना नहीं कर सकी तो इसके लिए वह अपने अलावा अन्य किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती। उसने चुनाव में जो तमाम विषय उठाए, वे यदि कारगर साबित नहीं हो सके तो इसका (Karnataka Election Result) यही अर्थ है कि जनता बोम्मई सरकार के काम से संतुष्ट नहीं थी।