अफसरों की हिटलरशाही से सरकार को लग रहा करोड़ों का चूना

अफसरों की हिटलरशाही से सरकार को लग रहा करोड़ों का चूना

  • मामला नगर तथा ग्राम निवेश का

  • सरकारी नियमों की व्याख्या अपने लाभ के हिसाब से करते हैं, अफसर 

रायपुर । नगर तथा ग्राम निवेश की हिटलरशाही एवं भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के चलते सैकड़ों करोड़ रुपयों के राजस्व की हानि छत्तीसगढ़ शासन की हो रही है। जानकारों की माने तो अकेले दुर्ग जिले में सात सौ करोड़ तथा समूचे छत्तीसगढ़ में लगभग दो हजार करोड़ राजस्व का चूना छत्तीसगढ़ शासन को लगा है। उल्लेखनीय है कि नगर तथा ग्राम निवेश विभाग द्वारा नियमितीकरण मामले को लेकर जानबूझकर की जा रही लापरवाही और भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों के चलते ही करोड़ों का नुकसान हो रहा है। प्रताडि़त लोगों से मिली जानकारी  के अनुसार नगर तथा ग्राम निवेश से जुड़े अफसर उन्हें यदा-कदा धमकी भी देते हैं, कि उनका काम किसी भी हालत में नहीं हो सकता। इसके लिए वे नियम और कानून का हवाला देकर भयादोहन करते हैं। नियमों को वे गलत ढंग से प्रस्तुत कर संबंधित बड़े अफसरों को संतुष्ट करने की चाल में सफल हो जाते हैं। वे सही मायनों में वे नियमितीकरण के नियमों का अध्ययन कर लें तो गुमराह या भ्रमित होने की स्थिति निर्मित नहीं होगी वैसे भी छत्तीसगढ़ शासन द्वारा अनधिकृत निर्माण के नियमितीकरण हेतु अगस्त 2016 अधिनियम लागू किया गया है जिससे प्रदेश की जनता को अनधिकृत निर्माण के नियमितीकरण का लाभ मिल सके। जबकि कार्य ठीक उल्टी दिशा में किया जाने लगा है। वे लोकसेवा गारंटी अधिनियम का भी पालन नहीं कर रहे हैं। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नगर तथा ग्राम निवेश दुर्ग के अधिकारियों द्वारा जिले में नियमितीकरण एक्ट का मनमर्जी से उपयोग करते हुए संबंधित उपभोक्ताओं को परेशान कर आत्महत्या करने मजबूर कर दिया है। इसके मूल में एक ही अधिनियम के तहत समान प्रकरणों में किसी का नियामितीकरण करना और किसी का नियमितीकरण नहीं करने जैसी स्थिति निर्मित हो गई है। ज्ञात हो कि उपभोक्ताओं ने बैंक एवं जीवन भर की पूंजी लगाकर आवास एवं दूकान आदि का निर्माण किया है, जिसका विधिसम्मत नियमितीकरण किया जाना चाहिए। एक पीडि़त व्यक्ति का मानना है, कि संबंधित विभाग के अफसर नेे नियमितीकरण का उद्देश्य ही बदल दिया है। जबकि आम जनता के अनधिकृत निर्माण का शासन की ओर से नियमानुसार नियमितीकरण किया जाना है, किंतु ऐसा नहीं हो रहा है। यहां तक कि मुख्यमंत्री के आदेश का भी पालन नहीं किया जा रहा है। इससे प्रदेश सरकार को सैकड़ों करोड़ों के राजस्व का चूना लगा दिया जा रहा है। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार अफसर दबी जुबान से कहने लगे हैं कि शासन को इससे करोड़ों का लाभ होगा, उन्हें क्या मिलेगा? बस, अफसरों की इसी चिन्तन ने उपभोक्ताओं के लिए मुसीबत का पहाड़ खड़ा कर दिया है। नियमितीकरण के मामले को लेकर कुछ लोगों ने आवास एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर से मुलाकात की थी, किन्तु संबंधित विभाग के अफसर ने उन्हें भी भ्रमित कर दिया। उन्हें पूर्व में किए गए नियमितीकरण को वर्तमान में निरस्त करने की जानकारी दी किंतु समाचार लिखे जाने तक उक्ताशय की कोई जानकारी नहीं है। इतना ही नहीं कुछ पीडि़तों ने कमिश्नर से अपने प्रकरणों के समाधान हेतु अपील की थी, जिस पर कमिश्नर ने समय सीमा का निर्धारण करते हुए नियमितीकरण का निर्देश जारी किया था, उस पर भी नगर तथा ग्राम निवेश के संबंधित अफसर ने आदेश की अवहेलना की। इससे नियमानुसार नियमितीकरण की प्रक्रिया के परिपालन हेतु आशान्वित उपभोक्ता न केवल आक्रोशित हो रहे हैं बल्कि वे न्यायालय की शरण में जाने विवश हो गये हैं। पीडि़तों का मानना है कि अगर नियमितीकरण की दिशा में सरकार की सकारात्मक पहल की गई तो न केवल सरकार के खजाने में करोड़ों की राशि जमा होगी बल्कि उपभोक्ताओं को भी चैन की सांस लेने में मदद मिल सकेगी।

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