Worthwhile Effort : निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक सार्थक प्रयास शुरू किया है जिसका प्रतिफल यूपी के लोगों को बीस साल बाद मिलेगा। लेकिन इसकी जरूरत पूरे राष्ट्र को है। यही नही इसे व्यवस्था को पचास वर्ष पूर्व ही भारत जैसे देश में लागू कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन देर आए दुरूस्त आए की तर्ज पर अगर योगी सरकार के इस प्रयास पर मुहर लगती है तो निश्चित तौर से इसके दूरगामी परिणाम सामने आएगे।बहुत लम्बे अन्तराल के बाद जनसंख्या के मुद्दे पर सरकारें जगती नजर आ रही हैं।
वर्ष 2019 में लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की (Worthwhile Effort) ओर से छोटे परिवार को देश प्रेम कहने के बाद अब असम और उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू होने के संकेत मिल रहे हैं। देश में अन्य राज्यों की अपेक्षा जनसंख्या का सबसे बड़ा आकड़ा और छोटे क्षेत्रफल के कारण उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियत्रंण अनिवार्य होना चाहिए।
विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ ने रविवार को 2021-2030 के लिए एक नई जनसंख्या नीति की घोषणा की है। इस नई नीति में जनसंख्या नियंत्रण में मदद करने वालों को प्रोत्साहन देने का प्रावधान है। यह नीति ऐसे समय पर लाई जा रही है जब राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। यह मुद्दा चुनाव से पहले राज्य के मेन फोकस क्षेत्रों में से एक के तौर पर उभरा है। उत्तर प्रदेश सरकार उन कर्मचारियों को पदोन्नति, वेतन वृद्धि, आवास योजनाओं में रियायतें और अन्य भत्ते देगी जो जनसंख्या नियंत्रण मानदंडों का पालन करेंगे या जिनके दो या उससे कम बच्चे हैं।
दो संतानों के मानदंड को अपनाने वाले सरकारी कर्मचारियों (Worthwhile Effort) को पूरी सेवा के दौरान दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि, पूरे वेतन और भत्तों के साथ 12 महीने का मातृत्व या पितृत्व अवकाश और राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत नियोक्ता अंशदान कोष में तीन प्रतिशत की वृद्धि मिलेगी। इसके साथ जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं हैं और जनसंख्या को नियंत्रित करने में योगदान देते हैं, उन्हें पानी, आवास, गृह ऋण आदि करों में छूट जैसे लाभ मिलेंगे। यदि किसी बच्चे के माता-पिता या कोई एक नसबंदी का विकल्प चुनता है तो उन्हें 20 साल की उम्र तक मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं मिलेंगी।
इसके अलावा दो से अधिक बच्चों के माता-पिता को स्थानीय निकाय चुनाव लडने से रोकने समेत कई तरह के प्रतिबंध लगाने तथा पहला बच्चा लड़का होने पर 80 हजार रुपये और लड़की होने पर एक लाख रुपये की विशेष प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। ऐसे माता-पिता की बेटी उच्च शिक्षा तक नि:शुल्क पढ़ाई कर सकेगी, जबकि बेटे को 20 वर्ष तक नि:शुल्क शिक्षा मिलेगी। उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग के प्रस्ताव के मुताबिक, दो से ज्यादा बच्चों के माता-पिता सरकारी नौकरी का आवेदन नहीं कर पाएंगे।
प्रमोशन का मौका भी नहीं मिल पाएगा। 77 सरकारी योजनाओं व अनुदान का लाभ भी नहीं मिलेगा। इसके लागू होने पर एक साल के अंदर सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को शपथ पत्र देना होगा। इसके अलावा स्थानीय निकाय में चुने जनप्रतिनिधियों को शपथ पत्र देना पड़ेगा। वह इसका उल्लंघन नहीं करेंगे।
कानून लागू होते वक्त उनके दो ही बच्चे हैं, शपथ पत्र देने के बाद अगर तीसरी संतान पैदा (Worthwhile Effort) करते हैं तो प्रतिनिधि का निर्वाचन रद्द करने का प्रस्ताव है साथ ही चुनाव ना लडऩे का प्रस्ताव भी देना होगा। वहीं, सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का प्रमोशन और बर्खास्त करने की सिफारिश की गई है। इस मामले में कांगे्रस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद का यह बयान आना कि पहले वे देख ले कि इनके मंत्रियों के कितने बच्चें है निश्चित तौर पर राजनैतिक बयान है।
जन घनत्व कम होने से लोगों को बेहतर पर्यावरण मिल सकेगा। स्वस्थ समाज की स्थापना के लिए जनसंख्या का स्थिरीकरण आवश्यक है। इससे समाज की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।ऐसे में जरूरत इस बॉत की है सभी राज्य सरकारें आम जनता को बड़े परिवार से होने वाले नुकसान से परिचित कराएं। जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कराने में सख्ती बरते। चीन की चर्चा अन्य मुद्दों में छोड़कर इस मुद्दे पर जरूर करें। उन लोगों तक यह संदेश खासतौर पर पहुंचाया जाना चाहिए, जो परिवार नियोजन की महत्ता से परिचित नहीं हैं या फिर उसके प्रति बेपरवाह हैं। जरा गौर करिये और चिन्तन करियें कि आजादी के बाद की 34 करोड़ की जनसंख्या वर्तमान में 138 करोड़ को पार कर चुकी है। आने वाले कुछ वर्षों में हम चीन को पछाड़कर विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश के रूप में होंगे, जबकि हमारा कुल क्षेत्रफल चीन के क्षेत्रफल का एक तिहाई भी नहीं है।
अगर इसी रफ्तार से जनसंख्या बढ़ती रही तो अगले 10 से 12 साल में हमारी जनसंख्या 1.5 अरब को पार कर जाएगी। भारत का 1857 क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किलोमीटर था, तब भारत की जनसंख्या मात्र 35 करोड़ थी और आज वर्तमान में भारत का क्षेत्रफल घटकर मात्र 33 लाख वर्ग किमी ही बचा और 150 करोड़ के आसपास होगी।
विचारणीय बिन्दु की वर्तमान में विश्व की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, जबकि विश्व की केवल 2.4 प्रतिशत जमीन, चार प्रतिशत पीने का पानी और 2.4 प्रतिशत वन क्षेत्र ही भारत में उपलब्ध है। यह एक बहुत ही चिंतनीय विषय है कि अपने देश में जनसंख्या-संसाधन अनुपात असंतुलित है। ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण के मामले में अब आवश्यकता यह है कि सभी राजनीतिक दल जाति, मजहब और संप्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में राज्यों के साथ-साथ केंद्रीय स्तर पर भी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने में मदद करे। सरकार कोई भी आ जाए दावे कुछ भी करे लेकिन देश में जो संसाधन है वह भारत की वर्तमान आबादी के सापेक्षा आधे है।
तब बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ देश में और भी बहुत सारी समस्याएं हैं, जिनमें खराब होता पर्यावरण, रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचती बेरोजगारी, महंगाई आदि शामिल हैं। आजादी इतने वर्षो बाद 75 प्रतिशत भारतीय परिवारों को पेयजल आर्पूित सुनिश्चित नहीं है। पानी की गुणवत्ता के मामले में गुणवत्ता सूचकांक पर हम 122 देशों की सूची में 119वें स्थान पर हैं यानी भारत खराब पानी पीने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। शुद्ध हवा के मामले में भी एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में 22 भारतीय शहर शामिल हैं।
गौर करिये कि प्रदूषण के कारण दुनिया में मरने वाले 28 प्रतिशत लोग भारतीय हैं। यदि बीते कुछ दशकों में बढ़ती जनसंख्या की अनदेखी नहीं की गई होती तो शायद आज जो गंभीर स्थिति है, उससे बचा जा सकता था। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि धीरे-धीरे भारत की जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार थम रही है, लेकिन इसके बावजूद तथ्य यही है कि भारत जल्द ही चीन को पछाड़कर सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की राह पर है।
कम क्षेत्रफल और सीमित संसाधनों के बीच भारत का जनसंख्या के मामले में पहले नंबर पर आना कोई अच्छी बात नहीं होगी। लेकिन जिन प्राविधानों के साथ उत्तर प्रदेश में नई जनसंख्या नीति घोषित की है, उस पर अमल किए जाने पर सबकी भलाई है। ऐसे में अगर इसका राजनैतिक स्तर पर विरोध होता है तो निश्चित मानिए कि यह देश और राज्य के साथ सीधे सीधे धोखा है।