Editorial: संसद के मानसून सत्र में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीन महत्वपूर्ण संशोधन विधेयक सदन में पेश किये हैं विपक्ष ने इन तीनों ही विधेयकों का पुरजोर विरोध किया। खासतौर पर संविधान के एक सौ तीसवें संशोधन विधेयक के खिलाफ तो विपक्ष ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही जमकर हंगामा किया।
विपक्ष ने इस संशोधन विधेयक को लोकतंत्र के खिलाफ बताया। गौरतलब है कि इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी मंत्री, मुख्यमंत्री और यहां तक की प्रधानमंत्री पर भी यदि किसी गंभीर अपराध के आरोप लगते है और न्यायालय से उन्हें 30 दिनों के भीतर जमानत नहीं मिल पाती है तो 31वें दिन वे स्वत: पद मुक्त हो जाएंगे।
इस विधेयक का उद्देश्य राजनीति में शूचिता लाना है किन्तु पूरा विपक्ष इसका एक सूर में विरोध कर रहा है जो हैरत की बात है। गौरतलब है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि जिस भी मंत्री, सांसद या विधायक को किसी मामले में दो साल से अधिक की सजा होती है तो वह चुनाव लडऩे के योग्य नहीं रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए तात्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने एक अध्यादेश लाया था जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से फाड़ कर फेंक दिया था और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्यायोचित करार दिया था।
ऐसा करके राहुल गांधी हीरो बन गये थे किन्तु आज वहीं राहुल गांधी और उनकी पार्टी इस विधेयक का विरोध कर रही है जो समझ से परे है। उल्लेखनीय है कि नई दिल्ली के बहुचर्चित शराब घोटाले में वहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 175 दिनों तक जेल की हवा खाते रहे और जेल से ही सरकार चलाते रहे।
आमतौर पर भ्रष्टाचार के आरोप में फंसने वाले मंत्री या मुख्यमंत्री नैतिकता के नाते अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं इसका उदाहरण झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन रहे हैं किन्तु अरविंद केजरीवाल पूरी बेशर्मी से मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे थे क्योंकि जेल में रहने वाले किसी मंत्री या मुख्यमंत्री को पद से हटाने का कोई प्रावधान ही नहीं था। अब यदि संविधान में संशोधन करके ऐसा प्रावधान किया जा रहा है तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए।