Editorial: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में संयुक्त संसदीय समिति के कार्यकाल को आगे बढ़ाने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गई। गौरतलब है कि वन नेशन वन इलेक्शन के लिए जेपीसी का गठन किया गया है जो लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी प्रदेशों की विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने से संबंधित विधेयकों की जांच कर रही है। इस समीति ने अभी तक वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर संविधान विशेषज्ञों, विधि आयोग और प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ चर्चा करके उनके सुझाव ले लिये हैं। किन्तु जेपीसी में ही इस मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पा रही है।
जेपीसी में शामिल विपक्षी पार्टियों के नेता वन नेशन वन इलेक्शन लगातार विरोध कर रहे हैं। संयुक्त संसदीय समिति का कार्यकाल बढ़़ाने के लिए आयोजित बैठक में भी राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने वन नेशन वन इलेक्शन का प्रबल विरोध किया और कहा कि यह मॉडल भारतीय संविधान की मूल संरचना को प्रभावित करने वाला है और संघीय ढांचा को कमजोर करेगा और इससे राज्यों के अधिकारों का हनन होगा।
उल्लेखनीय है कि जब से केन्द्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में वन नेशन वन इलेक्शन के लिए समिति का गठन किया है तभी से विपक्ष इस अवधारणा का विरोध कर रहा है जिसकी वजह से बेल मुंडेर पर नहीं चढ़ पा रही है। वन नेशन वन इलेक्शन का विपक्ष द्वारा विरोध समझ से परे है। दरअसल विपक्षी पार्टियों को खासतौर पर क्षेत्रीय पार्टियों को यह आंशका सता रही है कि यदि लोकसभा के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा पहुंचेगा लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों को इसका नुकसान उठाना पड सकता है क्योंकि फिर पूरे देश का चुनाव राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर लड़े जाएंगे।
जिनके सामने क्षेत्रीय मुद्दे कमजोर साबित होंगे ऐसी स्थिति में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने के कारण क्षेत्रीय पार्टियों को दिक्कतों का समाना करना पड़ेगा। एक साथ दो चुनाव लडऩे के लिए उनके पास संसाधनों का भी टोटा हो जाएगा। यही वजह है कि क्षेत्रीय पार्टियां वन नेशन वन इलेक्शन के लिए तैयार नहीं है।
जबकि सरकार का कहना है कि इससे चुनाव पर होने वाले भारी भरकम खर्च में कमी आएगी और हर साल दो साल में कोई न कोई चुनाव होने की वजह से जो सरकारी कामकाज प्रभावित होता है और आचार सहिंता लगने के कारण विकास कार्यों पर विराम लगता है वह सब दिक्कतें इससे दूर हो जाएंगी। एक साथ चुनाव होने से मतदाताओं को भी सुविधा होगी। अब वे पांच साल में एक बार मतदान कर देश और प्रदेश की सरकार चुन पाएंगे। बहरहाल वन नेशन वन इलेक्शन की राह आसान नहीं लग रही है।

