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Virtual Summit : अमेरिका ने भारत की निष्पक्षता का सम्मान किया

Virtual Summit: America respected India's impartiality

Virtual Summit

नीरज मनजीत। Virtual Summit : इस हफ़्ते सोमवार की रात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच बड़े ही सकारात्मक माहौल में एक और वर्चुअल शिखर वार्ता हुई। इस वार्ता के समांतर भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू की बातचीत भी जारी है। भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस जयशंकर वाशिंगटन में अमेरिकी रक्षामंत्री ऑस्टिन लॉयड और विदेशमंत्री टोनी ब्लिंकेन से रूबरू बातचीत कर रहे हैं। शुक्र है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारत और रूस के बीच बढ़ती नज़दीकियों की कड़वाहट इन वार्ताओं पर बिल्कुल भी नजऱ नहीं आई। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडेन के बीच वही केमिस्ट्री दिखाई पड़ी, जो प्रधानमंत्री मोदी की पिछली अमेरिका यात्रा के वक़्त नजऱ आई थी।

वैसे तो आज़ादी के बाद से ही भारत विश्व बिरादरी में तटस्थता की विदेशनीति पर चलता रहा है। शीतयुद्ध के दौर में जब दुनिया साफ़ साफ़ दो हिस्सों में बंट गई थी, उस वक़्त भी भारत गुट निरपेक्ष आंदोलन का अगुआ देश था। पंडित नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो, मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासेर और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णों ने गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। उस वक़्त तीसरी और दूसरी दुनिया के विकासशील और गऱीब देश इस आंदोलन के साथ आ खड़े हुए थे। आज भले ही इस आंदोलन का महत्व तकऱीबन ख़त्म हो चुका है, पर भारत निष्पक्षता के राजनय पर पूरी दृढ़ता से कायम है। विश्व समुदाय में यह तटस्थता कई दफ़ा भारत के लिए धर्मसंकट का सबब भी बनी है।

इस बार भी यही हुआ था। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका यह चाहता था कि भारत खुलकर रूस की आलोचना करे। अमेरिका, नाटो और यूरोपीय यूनियन (Virtual Summit) के देश यह भी चाहते थे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठकों में भारत रूस के खि़लाफ़ वोटिंग करे। पर भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया। वोटिंग के वक़्त हर दफ़ा भारत के प्रतिनिधि अनुपस्थित रहकर यह संदेश देते रहे कि इस नाज़ुक परिस्थिति में भारत पूरी तरह निष्पक्ष खड़ा है। भारत की यह निष्पक्षता उसकी निष्क्रियता नहीं थी। प्रधानमंत्री मोदी ने युद्ध के इन पचास दिनों में व्लादिमीर पुतिन और जेलेन्स्की से कई बार लंबी बातचीत करके कहा कि युद्ध रोककर दोनों देश कूटनीतिक तरीक़े से मसले का हल निकालें।

वे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ और इजराइल के प्रधानमंत्री बेनेट नफ़्ताली के संपर्क में भी रहे। प्रधानमंत्री मोदी युद्धविराम के लिए दोनों देशों को राजी करने की अपील करते नजऱ आए। भारत की इस स्पष्ट निष्पक्षता का ही नतीजा है कि अमेरिका की दबाव की कूटनीति के बावजूद रूस, खुद अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, इजराइल सहित खाड़ी देशों और ताक़तवर एशियाई देशों से भारत के कारोबारी और रणनीतिक रिश्ते बहुत ही अच्छे हैं। वैश्विक राजनय के इलाक़े में भारत ने गजब के संतुलन की एक बेहतरीन मिसाल पेश की है।

अमेरिका और भारत के बीच चल रही टू प्लस टू वार्ता के बहुत ही अच्छे परिणाम निकले हैं। बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत के तटस्थ रुख का सम्मान करते हुए कहा है कि दोनों देशों के रिश्ते बहुत ही मजबूत हैं तथा भारत हमारा महत्वपूर्ण रणनीतिक, सामरिक और कारोबारी साझेदार है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि भारत और अमेरिका विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देश हैं और एक-दूसरे के स्वाभाविक मित्र हैं। बाइडेन और मोदी की पॉजिटिव शिखर वार्ता के बाद विश्व समुदाय में फैल रही वह धुंध छंट गई है कि रूस की निकटता की वजह से अमेरिका से भारत के रिश्ते खऱाब हो सकते हैं।

राजनाथ सिंह और आस्टिन लॉयड के बीच जब रक्षा सहयोग की बात चली तो लॉयड ने साफ़ तौर पर कहा कि अगर हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन ने भारत को दबाने की कोशिश की तो अमेरिका खुलकर भारत का साथ देगा। लॉयड की यह आश्वस्ति चीन के लिए बुरी ख़बर हो सकती है। कुछ दिनों पहले जब अमेरिका के डिप्टी सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह भारत आए थे, तो उन्होंने सीधी धमकी देते हुए कहा था कि भारत यदि अमेरिका के ब्लॉक में नहीं आता है, तो कभी चीन ने भारत पर हमला किया, तो अमेरिका भारत का साथ नहीं देगा। पर अब अमेरिका को अच्छी तरह समझ में आ गया है कि वैश्विक समुदाय में चीन का मुकाबला करने के और वैश्विक वर्चस्व कायम रखने के लिए उसे भारत की सख़्त जरूरत है।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पिछले दिनों रूस के रक्षामंत्री सर्गेई लावरोव भारत के प्रवास पर आए थे। तब लावरोव ने अपने बयान में एक तरह से अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत पूरी तरह से रूस के साथ खड़ा है। लावरोव के पूर्व चीनी विदेशमंत्री वांग यी भी भारत के दौरे पर आए थे और उन्होंने एस जयशंकर तथा सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से द्विपक्षीय रिश्तों पर बातचीत की थी। वे प्रधानमंत्री मोदी से भी मिलना चाहते थे, किंतु प्रधानमंत्री की व्यस्तता की वजह से ये भेंट नहीं हो सकी थी। निश्चय ही (Virtual Summit) ये सारी बातें अमेरिकी थिंक टैंक ने नोट की होंगी। ज़ाहिर है कि भारत अमेरिका अपने ऐतिहासिक रिश्तों में इतनी दूर आ चुके हैं कि अब अमेरिका कतई नहीं चाहेगा कि भारत चीन के ब्लॉक के नज़दीक चला जाए। हालांकि यह काफी दूर की कौड़ी है।

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