Uproar Monsoon Session : संसद के मानसून सत्र में हो रहे हंगामें के कारण पिछले एक पखवाड़े से संसद के दोनों सदनों ने सामान्य कामकाज भी नहीं हो पा रहा है। शोर शराबे में जनहित से जुड़े मुद्दे गुम हो रहे है। विपक्ष स्थगन पर स्थगन लाकर संसद की कार्यवाही को बाधित कर रहा है। सत्तापक्ष भी इस गतिरोध को तोडऩे में कोई खास रूचि नहीं ले रहा है।
संसद की कार्यवाही पर हर घंटे तीन लाख रूपए का खर्च आता है जो व्यर्थ जा रहा है। सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर संसद न चलने देने का आरोप प्रत्यारोप लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे है। संसद में हो रहे शोर शराबे को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधा है। उन्होने कहा है कि विपक्ष संसद और लोकतंत्र का अपमान कर रहा है।
बजाएं चर्चा करने के विपक्ष के नेता कागज फाड़ रहे है और अपने इस आचरण के लिए सदन ( Uproar Monsoon Session) से माफी भी नहीं मांग रहे है। केन्द्रिय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने तो और भी तल्ख टिप्पणी की है, उन्होने कहा है कि विपक्ष की स्थिति किसान यूनियन की तरह हो गई है जिनके पास कोई प्रस्ताव नहीं है इसलिए वे चर्चा से भाग रहे है।
वहीं विपक्ष के नेताओं ने संसद ( Uproar Monsoon Session) में काम न होने के लिए सत्तापक्ष को जिम्मेदार ठहराया है। शिवसेना का तो कहना है कि सदन को चलाना सत्तापक्ष की जिम्मेदारी होती है। बेशक विपक्ष का यह कहना सही है लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि सदन को सुचारू रूप से चलाने में विपक्ष का सहयोग भी जरूरी होता है। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को ही मिलकर यह जिम्मेदारी उठानी पड़ती है।
एक दूसरे पर आरोप लगाकर वो अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। देश की जनता तो यह उम्मीद करती है कि संसद में उनकी समस्याओं पर सार्थक चर्चा होगी और समाधान का रास्ता निकलेगा लेकिन संसद में हो रहे हंगामें के कारण जनता से जुड़े ज्वलंत मुद्दो पर कोई चर्चा ही नहीं हो पा रही है।
सत्तापक्ष और विपक्ष को अपनी हठधर्मिता ( Uproar Monsoon Session) छोड़कर संसद को सुचारू रूप से चलाने का रास्ता तलाशना चाहिए अन्यथा संसद का मानसून सत्र भी हंगामों की भेंट चढ़कर रह जाएगा और कई महत्वपूर्ण विधेयक लंबे समय के लिए अधर में लटककर रह जाएंगे।