Editorial: संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने नए ग्रामीण रोजगार कानून विधेयक को पेश किया तो इसे लेकर विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया। गौरतलब है कि ग्रामीण रोजगार योजना पहले मनरेगा के नाम से चल रही थी जिसे बदलकर केन्द्र सरकार ने विकसित भारत रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण का नाम दिया है। इस वी बी जी राम जी के नाम पर ही विपक्ष को एतराज है। उनका आरोप है कि यह योजना पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर थी उसे हटाकर सरकार ने नया नाम दिया है इससे स्पष्ट है कि एनडीए सरकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम को हटाना चाहती है जो उनका अपमान है। लोकसभा में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इस नए नाम का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि उन्हें समझ में नहीं आता कि आखिर सरकार ने इस योजना का नाम क्यों बदला है।
किसी भी योजना का नाम बदलने से अनावश्यक रूप से सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है। इसके जवाब में केन्द्री कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्पष्ट किया है कि इस योजना का नाम पहले भी कई बार बदला जा चुका है। पहले यह योजना जवाहर रोजगार योजना के नाम से चलती थी। फिर इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना का नाम दिया गया था फिर यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही इसे लगातार नरेगा के नाम से चलाया जाता रहा लेकिन 2009 में जब लोकसभा चुनाव निकट आ गये तब यूपीए सरकार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद आई और उन्होंने इस योजना में महात्मा गांधी का नाम जोड़कर इसे नरेगा से मनरेगा कर दिया था। इसलिए जब इस योजना को अब नए रूप में लागू किया जा रहा है तो इसे नया नाम देने पर किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। लेकिन विपक्ष इसे लेेकर व्यर्थ का बवाल खड़ा कर रहा है।
उन्होंने नए ग्रामीण रोजगार कानून की खूबियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की परिकल्पना को ही साकार करने वाला कानून है और सरकार ग्रामीण विकास ढांचे को मजबूत बनाने के लिए संकल्पित है। इसीलिए इसे विकसित भारत रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण का नाम दिया गया है। अब इस योजना के तहत सभी ग्रामीण परिवारों को 125 दिनों का रोजगार प्रदान करने की वैधानिक गारंटी दी जाएगी जो पहले सिर्फ 100 दिनों की थी। इसके साथ ही अब एक सप्ताह में ही मजदूरी का भुगतान कर दिया जाएगा जो पहले एक पखवाड़े के बाद होता था और कभी कभी तो महीनों भुगतान नहीं किया जाता था लेकिन अब नये कानून के तहत एक सप्ताह बाद ही मजदूरी का भुगतान हो जाएगा और यह राशि सीधे मजदूरों के खाते में डाल दी जाएगी। जिससे अब बिचौलिये उसमें डंडी नहीं मार पाएंगे। नए कानून के मुताबिक अब इस योजना के तहत क्या काम करना है यह केन्द्र सरकार ही तय करेगी।
उल्लेखनीय है कि पहले मनरेगा के तहत गड्ढा खोदने का पाटने का काम करके ही मनरेगा की राशि हड़प ली जाती थी कागजों पर फर्जी दिखाये जाते थे। बंगाल में तो मनरेगा के तहत केन्द्र सरकार द्वारा आबंटित हजारों करोड़ की राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती थी। नतीजतन पिछले कुछ सालों से केन्द्र सरकार ने बंगाल को मनरेगा के तहत राशि का आबंटन करना ही बंद कर दिया है। इसे लेकर ममता बनर्जी सिर्फ हो हल्ला मचाती है लेकिन आज तक उन्होंने पूर्व में आबंटित राशि के खर्च का ब्यौरा केन्द्र सरकार को नहीं दिया है। इसी तरह कुछ अन्य राज्यों में भी मनरेगा के नाम पर फर्जीवाड़ा करके हजारों करोड़ रूपये की बंदरबाट की शिकायतें सामने आती रही है।
इस घपलेबाजी पर प्रभावी रोक लगाने के लिए ही इस नई ग्रामीण रोजगार योजना में कई प्रावधान किये गये हैं ताकि ग्रामीण मजदूरों को इसका लाभ मिलना सुनिश्चित हों। स्मरणीय है कि इस योजना में की जा रही धांधली को लेकर ही तात्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि केन्द्र से ग्रामीणों के लिए चलने वाला एक रूपया हितग्राहियों के हाथों तक पहुंचते-पहुंचते दस पैसे के रूप में तब्दील हो जाता है।
अर्थात् एक रूपये में से 90 पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता हैं। अब सरकार ने इसी भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए नया कानून बनाया है और इसमें हर तरह की गड़बड़ी को रोकने के प्रावधान किये गये हैं। किन्तु विपक्ष इन पर चर्चा करने की जगह इस योजना का नाम बदले जाने पर ही अपनी आपत्ति जता रहा है और इस नए कानून का विरोध कर रहा है जबकि उसे इस कानून को और प्रभावी बनाने के लिए बहस में भाग लेना चाहिए और सार्थक सुझाव देना चाहिए था बहरहाल विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद लोकसभा में यह विधेयक पारित हो गया।

