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Tribal Department : आदिवासी विभाग में टेंडर घोटाले की स्क्रिप्ट लिख रहा निर्माण शाखा, सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट को उलझाने के फिराक में विभागीय कर्मी

कोरबा/नवप्रदेश। ट्राइबल विभाग के बाबू पर नए साहब का काबू नहीं है।  वैसे तो ये बाबू साहब को ट्रांसफ र के बाद कोर्ट के रहमोकरम पर कुर्सी मिली है लेकिन कुर्सी मिलते ही फिर से टेंंडर घोटाले की स्क्रिप्ट लिख रहे। पूर्ववर्ती सरकार में ठेकेदारों के साथ सांठगांठ कर करोड़ों का वारा न्यारा किया था।  अब उन्हीं के शागिर्दो के साथ मिलकर फिर से टेंडर घोटाले की स्क्रिप्ट लिखा जा रहा (Tribal Department) है।

सूत्रों की माने तो बाबू  सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट आत्मानंद स्कूल के निर्माण को उलझने का प्रयास  कर रहे जिससे सरकार को बदनाम किया जा सके। मामला आदिवासी विभाग का है। जहां बिना टेक्निकल सेटअप के 44 करोड़ के निर्माण कार्य को आपस में बांटने की स्क्रिप्ट लिखा गया है।

विभाग में ट्रांसफ र से स्टे  पर कुर्सी पाने वाले  बाबू  को फि र से निर्माण शाखा का प्रभारी बनाया गया है जिससे वे पुराना दोहरा सके और अंधा बांटे  रेवड़ी और अपने अपने को देय  की कहावत को चरितार्थ कर सके।

निर्माण एजेंसी को काम न देकर ट्रायबल को बड़े निर्माण कार्यो को सौंपना अपने आप में संदेहास्पद है। क्योंकि  पहले भी निर्माण कार्य के नाम पर ट्राइबल में करोड़ों की बंदरबांट हो चुकी है और ऐसे में उन्हें फि र से 44 करोड़ का काम देना चोर से चौकीदारी कराने जैसा (Tribal Department) है।

जिले के अन्य  निर्माण एजेंसियों  पर गौर किया जाये तो आरईएस और पीडब्लूडी  के पैसा महज गिनती के काम है और उनका टेक्निकल टीम बिना काम के सैलरी उठा रहे।

उन्हें काम सौंपने की बजाये ट्रायबल डिपार्टमेंट को एजेंसी बनना सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट को उलझना नहीं तो क्या है? वैसे  भी दो महीने के बाद स्कूलों का नया सत्र शुरू हो जायेगा और आत्मानन्द स्कूल का निर्माण कागजों में उलझकर रह जाएगा।

पेंड्रा हो चुका है ट्रांसफर : निर्माण शाखा में पदस्थ रहे बाबू का ट्रांसफ र पेंड्रा हो चुका है। स्थांतरण को बिना कायदे के बताते हुए उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने उन्हें तत्कालीन राहत देते हुए सहायक आयुक्त को पक्ष रखने को कहा गया (Tribal Department) था।

इसका लाभ उठाते हुए बाबू ने फि र से विभाग में ज्याइनिंग दी। इसमें मजे वाली बात यह है जिस कारिस्तानी की वजह से उनका ट्रांसफ र किया गया था उसी शाखा का प्रभारी फिर से बनाया गया है। जिससे पूर्व की तरह जुगाड़ जंतर कर अपने उच्च अधिकारी को लपेटे में ले सके।

जिनके साथ किया काम वो हो चुके है बदनाम : डिपार्टमेंट का ये ऐसे नवाब है जो अपने साथ साहब को भी ले डूबते है। पूर्ववर्ती सरकार में एजुकेशन हब निर्माण में कायदे को ताक पर रखकर भुगतान करने के आरोप में तत्कालीन सहायक आयुक्त श्रीकांत दुबे नप गये थे और एसीबी की जांच की रडार में आए जिसकी जांच आज भी लंबित है।

उसके बाद गुरुजी से इंजीनियर बने विभागीय उप अभियन्ता के नाम करोड़ो का एडवांस जारी करने के मामले में भी सब इंजीनियर पर सस्पेंशन की गाज गिरी थी। मतलब उनके काम के बारे में जंहा जंहा पग धरे वहां-वहां बंटाधार कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।

महालेखाकार के आरोप के बाद निलंबित : बाबू की वजह से आज ट्राइबल विभाग का नाम पूरी तरह से बदनाम हो चुका है। बावजूद इसे विभागीय लिपिक पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की जा सकी है।

वर्ष 2019 में महालेखाकार रायपुर ने कई बिंदुओ पर आरोपपत्र लगाकर निलंबित बाबू से जवाब मांगा था लेकिन दुबे जी चौबे जी बनकर फि र आ गए। ये बात अलग है वे विलक्षण प्रतिभा के धनी होने का परिचय देते हुए 4 बरसो में जवाब तैयार नहीं कर सके। मतलब अपनी गलती साबित होने के बाद भी मूंछे पर ताव देते हुए नौकरी करते रहे और अपनी झोली भरते रहे।

वर्सन

विभागीय कार्यो के बारे में ज्यादा जानकारी मुझे नही है। इसकी जानकारी लेकर विभागीय कार्यो में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया जाएगा।

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