Treason Law : भारत में अंगेजों के जमाने के ऐसे कई विवादास्पद कानून आज भी अस्तित्व में है जिनपर बदली हुई परिस्थितियों के मुताबिक पुनर्विचार कर के उसे नया रूप देना अथवा रद्द करना निहायत जरूरी है। मोदी सरकार ने अंग्रेजों के जमाने के ऐसे कई निरर्थक कानूनों को रद्द भी किया है। अब लगभग 100 साल पुराने राजद्रोह कानून के बढ़ते दुरूपयोग को लेकर भी बहस छिड़ी हुई है।
राजद्रोह कानून (Treason Law) को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से इस कानून के बारे में उसका पक्ष जानना चाहा है। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर इस कानून पर नए सिरे से विचार करने के लिए कुछ समय मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने तब तक के लिए राजद्रोह कानून पर अस्थायी रोक लगा दी है जो स्वागत योग्य कदम है। वास्तव में आजादी के बाद से राजद्रोह कानून का उपयोग कम और दुरूपयोग ज्यादा होता रहा है।
सत्तारूढ़ पार्टी अपने राजनीतिक विरोधियों को निपटाने के लिए इस राजद्रोह कानून का दुरूपयोग करती रही है। हाल ही में महाराष्ट्र की महाअघाड़ी सरकार ने एक निर्दलीय सांसद के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हे जेल भेज दिया था। इसके पूर्व भी इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी है जब मामूली बात पर भी किसी के खिलाफ राज्य सरकारें राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर देती है जिसकी वजह से उन्हे आसानी से जमानत भी नहीं मिल पाती।
जाहिर है इस कानून का दुरूपयोग रूकना चाहिए, साथ ही देशद्रोहियों के खिलाफ इस कानून को और कठोरता से लागू किया जाना चाहिए जिसपर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिए। केन्द्र सरकार ने इस कानून की समीक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय से जो समय मांगा है उस दौरान उसे राजद्रोह कानून की गहन समीक्षा कर इसके दुरूपयोग को रोकने का उपाय करना चाहिए। ताकि यदि राजद्रोह कानून अस्तित्व मे रहता है तो उसका दुरूपयोग न किया जा सकें।
वैसे इस कानून (Treason Law) का बने रहना भी आवश्यक है क्योंकि देश में इन दिनों देशविरोधी ताकतें सिर उठाने लगी है, उन्हे उनके किए की कड़ी सजा देने के लिए इस तरह के कठोर कानून की आवश्यकता भी है लेकिन यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस कानून का दुरूपयोग न हो।