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संपादकीय: तेजस्वी यादव की बिहार अधिकार यात्रा

Tejashwi Yadav's Bihar Rights Yatra

Tejashwi Yadav's Bihar Rights Yatra

Editorial: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का अभी ऐलान नहीं हुआ है लेकिन वहां चुनावी सरगर्मियां तेज होती जा रही है। राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर वोट अधिकार यात्रा निकाली थी और अब इसके बाद बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बिहार अधिकार यात्रा निकाली है। इस यात्रा में उन्होंने कांग्रेस सहित महागठबंधन के किसी भी दल को शामिल नहीं किया है। इसकी वजह यह है कि तेजस्वी यादव को इस बात एहसास हो चुका है कि वोट अधिकार यात्रा ने बिहार के मतदाताओं को कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डाला है।

बिहार में वोट चोर गद्दी चोर का नारा भले ही जोर शोर से उठाया गया हो लेकिन उससे बिहार के मतदाताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यही वजह है कि तेजस्वी यादव ने बिहार अधिकार यात्रा निकालकर इस यात्रा के दौरान बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों को प्रमुखता के साथ उठाया है। जबकि वोट अधिकार यात्रा के दौरान जनहित से जुड़े मुद्दे नहीं उठाये गये थे उस दौरान तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे उठाने को कहा भी था लेकिन राहुल गांधी वोट चोरी के मुद्दे को ही उठाते रहे यही नहीं बल्कि तेजस्वी यादव ने भी वोट अधिकार यात्रा के दौरान भारी प्रधानमंत्री बताया था और यह उम्मीद की थी की राहुल गांधी भी उन्हें बिहार में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करेंगे किन्तु राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया।

यहां तक की एक पत्रकार वार्ता के दौरान जब उनसे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने संबंधित सवाल किया तो राहुल गांधी ने इस सवाल को भी टाल दिया था। ऐसे में तेजस्वी यादव को एकला चलो रे की नीति पर अमल करने के लिए विवश होना पड़ा और बिहार अधिकार यात्रा के दौरान उन्होंने खुद को भावी मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। इन दोनों यात्राओं का उद्देश्य भले ही बिहार में महागठबंधल की एकजुटता प्रदर्शित कर अपने पक्ष में माहौल बनाना हो लेकिन हकीकत तो यह है कि इन यात्राओं के पीछे का उद्देश्य विधानसभा की सीट बंटवारे में दबाव बनाना है।

गौरतलब है कि कांग्रेस इस बार भी पिछले विधानसभा चुनाव की तरह ही 70 सीटों पर दावेदारी कर रही है। जबकि राष्ट्रीय जनता दल उसे लगभग 50 सीटें देने को ही तैयार है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटों पर जीत मिली थी और चार सीटों पर तो उसकी जमानत भी जब्त हो गई थी। कांंग्रेस को इतनी ज्यादा सीटें देने की वजह से ही राष्ट्रीय जनता दल पिछले विधानसभा चुनाव में ही सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने में विफल हो गई थी। इसलिए अब वह अधिकतम सीटों पर चुनाव लडऩा चाह रही है और यही पेंच फंस गया है।

सीट शेयरिंग का विवाद हल न होने की वजह से ही कांग्रेस तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं कर रही है। इसकी एक वजह यह भी बताई जा रही है कि कांग्रेस यह चाहती है कि महागठबंधन की ओर से कांग्रेस को उपमुख्यमंत्री पद देने पर सहमति बने तभी वह तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करेगी। इसके अलावा कांग्रेस की नजर बिहार के पूर्वांचल की मुस्लिम बहुल सीटों पर है। जहां वह अपनी दावेदारी कर रही है क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि इन सीटों पर उसकी जीत आसान होगी। जबकि राष्ट्रीय जनता दल की नजरे भी मुस्लिम बाहुल सीटों पर ही है। यहां भी सीट बंटवारे का मामला फंसा हुआ है।

बहरहाल वोट अधिकार यात्रा के दौरान क्रेडिट लूट कर बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की थी और उसके बाद तेजस्वी यादव ने भी बिहार अधिकार यात्रा निकालकर राष्ट्रीय जनता दल के पक्ष में माहौल बनाया है अब देखना होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव की तिथि घोषित होने के बाद राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन वाले सीटों का सम्मानजनक बंटवारा हो पाता है या इसे लेकर महागठबंधन में दरार पड़ जाती है। इधर राष्ट्रीय जनता दल में भी कलह बढ़ गया है। तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने पहले ही अपनी अलग पार्टी बना ली है जिसकी मान मनौवल की कोशिश हो रही है। इस बीच उनकी बहनों ने राष्ट्रीय जनता दल में हरियाणवी संजय यादव के बढ़ते दखल को लेकर नाराजगी जाहिर की है। लालू परिवार का यह पारिवारिक अंतर कलह भी इस चुनाव में पार्टी के लिए मुसीबत का कारण बन सकता है।

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