Editorial: देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर नफरत फैलाने वाली हेट स्पीच देने का दौर चल रहा है। इसमें न सिर्फ स्वनाम धन्य नेता शामिल है बल्कि सोशल मीडिया के तथाकथित योद्धा भी भड़काऊ और आपत्तिजनक सामग्री परोसने की होड़ में शामिल हो गये हैं। ऐसे में लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही न होने के कारण ही उनके हौसले बुलंद होते जा रहे हैं ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच को लेकर सख्ती दिखाई है।
वजाहत खान के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर फैल रहे नफरती भाषणों को लेकर गहन चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सब कुछ जायज ठहराने की कोशिश करना बेहद खतरनाक है। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे नफरत फैलाने वाले कंटेन्ट पर प्रभावी रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठायें। किन्तु वे यह भी सुनिश्चित करें कि किसी की भी अभिव्यक्ति की अजादी को कुचला न जाये।
सुप्रीम कोर्ट ने लोगों से भी अपेक्षा की है कि वे अभिव्यक्ति की आजादी का मूल्य समझें ताकि राज्य को हर बार बीच में पड़कर कार्यवाही के लिए बाध्य न होना पड़े। गौरतलब है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सोशल मीडिया में नफरती सामग्री की भरमार होने लगी है। जिसे असमाजिक लोग न सिर्फ लाइक करते हैं बल्कि उसे शेयर करके समाज में बल्कि नफरत को फैलाने का काम भी करते हैं। ऐसे लोगों को भी सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि वे हेट स्पीच को लाइक और शेयर करने से बाज आयें।
बहरहाल हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो कठोर रूख अख्तियार किया है उसे मद्देनजर रखकर यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इसे केन्द्र और राज्य सरकारें गंभीरता से लेंगी और हेट स्पीच पर रोक लगाने के लिए यथाशीघ्र कारगर कदम उठाएंगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को राजनीतिक पार्टियों के बड़बोले नेताओं को भी गंभीरता से लेना चाहिए जो अकसर अपनी पार्टी के चुनावी लाभ के लिए नफरती भाषण देते रहते हैं।
ऐसे बयानवीर नेताओं की जुबान पर भी लगाम लगाने के लिए राजनीतिक दलों के हाईकमान को पहल करनी चाहिए अन्यथा नफरती भाषणों के कारण देश में पारस्परिक सदभाव का माहौल बिगड़ेगा और समाज को इसके गंभीर दुष्परिणाम भुगतने होंगे।