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संपादकीय : कैदियों के बारे में सुको का ऐतिहासिक फैसला

SUCO's historic decision regarding prisoners

SUCO's historic decision

SUCO’s historic decision: देश के विभिन्न राज्यों में बंद कैदियों के प्रति जाति आधारित भेदभाव के नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है।

उत्तरप्रदेश, बंगाल मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सहित दस राज्यों के कुछ आपत्तिजनक जेल मैनुअल को सुप्रीम कोर्ट ने अवैधानिक बताते हुए उसे खत्म कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार कैदियों को भी है।

ऐसे में उनके साथ जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि आजादी के पहले इस तरह के जेल मैनुअल बनाए गए थे जो आजादी के बाद भी कई प्रदेशों की जेलों में अभी तक लागू है।

जहां जातीय आधार पर शारीरिक श्रम कराया जाता है। और बैरकों का विभाजन किया जाता है। इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भेदभाव पूर्ण कानूनों की जांच करने की जरूरत है और इसे तत्काल खत्म किया जाना चाहिए।

क्योंकि भेदभाव किसी भी व्यक्ति का लगातार उपहास और अपमान करने वाला होता है और इससे व्यक्ति को आघात पहुंचता है और उसका पूरा जीवन इससे प्रभावित हो सकता है।

इसलिए कैदियों के साथ भी किसी भी तरह का भेदभाव स्वीकार्य नहीं है। निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है।

अब सुप्रीम कोर्ट का यह कथन भी सही है कि इतिहास में ऐसी भावनाओं के कारण ही कुछ समुदायों ने नरसंहार जैसी जघन्य घटनाओं को अंजाम दिया है।

इसलिए अब भेदभाव कहीं भी नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति के आत्मसम्मान पर चोट लगती है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देश के विभिन्न प्रदेशों में बंद लाखों कैदियों को अब भारी राहत मिलेगी

जो अब तक आपत्तिजनक पुराने जेल मैनुअल के नियमों के अनुसार भेदभाव का शिकार होते रहे हैं।

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