Action against adulterators: खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट करना सीधे जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ करना है। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन के कारण लोग विभिन्न गंभीर बिमारियों की चपेट में आ जाते है और इनमें से कई तो असमय ही काल का ग्रास बन जाते है।
निश्चित रूप से मिलावटखोरी एक जघन्य अपराध है जिसे रोकने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत सजा और जुर्माने का प्रावधान है। यही नहीं बल्कि आईपीसी की धारा 272 और 273 के तहत पुलिस को भी मिलावटखोरों के खिलाफ कार्यवाही करने का अधिकार है।
देश के विभिन्न राज्यों में वहां की सरकारों ने भी मिलावटखोरी रोकने के लिए कानून बनाये है। जिसके तहत एक हजार रूपये से दस लाख रूपये तक का जुर्माने लगाने और छह माह से लेकर आजीवन कारावास देने तक का प्रावधान किया गया है। इन तमाम कानूनों के बावजूद देश में मिलावटखोरी का गोरख धंधा लंबे अरसे से बेखौफ चल रहा है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इन कड़े कानूनों का पालन कराने में शासन प्रशासन विफल रहा है इसके लिए संसाधनों की कमी की दुहाई दी जाती है।
जो हद तक सही भी है मिलावटी वस्तुओं की जांच के लिए देश में अत्याधुनिक प्रयोग शलाओं की बेहद कमी है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में भी अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी है।
यही वजह है कि मिलावटखोरों के खिलाफ कार्यवाही में तेजी नहीं आ पा रही है। नतीजतन मिलावटखारों के हौसले बुलंद है उनके खिलाफ शिकायत मिलने पर यदि कभी कभार कोई कार्यवाही होती भी है तो वे संबंधित विभाग के अफसरों को रिश्वत देकर अपने खिलाफ मामले को इतना कमजोर बनवा लेते हैं की मामूली जुर्माना भर कर वे छूट जाते है।
इसलिए सह जरूरी हो गया है कि मिलावटखोरी को रोकने के लिए और कठोर कानून बनाये जाये और मौजूदा कानून प्रचलन में है उन्हें सख्तीपूर्वक लागू किया जाए।
आंध्रप्रदेश में स्थित दुनिया के सबसे धनी मंदिर तिरूपति बालाजी में प्रसाद के रूप में चढ़ाये जाने वाले लड्डू के लिए उपयोग में आने वाले घी में जानवरों की चर्बी और मछली तेल की मिलावट का सनसनीखेज मामला उजागर होने के बाद अब एक बार फिर से मिलावटखोरो के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही की मांग जोर पकडऩे लगी है।
संत समाज ने तो लोगो की धार्मिक भाावनाओं को आहट करने वाले ऐसे मिलावटखोरो को फांसी की जगह देने की मांग भी उठाई है। तिरूपति बालााजी में प्रसाद के लिए शुद्ध घी के नाम पर चर्बी मिली हुई घी के उपयोग की घटना सामने आने के बाद अब देश भर के सभी प्रमुख मंदिरों में दीए जाने वाले प्रसाद की गुणवत्ता पर भी सवालिया निशान लग रहे है और उन प्रसादों की भी जांच की जा रही है।
सवाल सिर्फ प्रसाद का ही नहीं है बल्कि हम अपने घरों में भी दैनिक उपभोग में जिन वस्तुओ का उपयोग कर रहे है उनमें से भी ज्यादातर वस्तुाअे में मिलावट की जा रही है। घी, तेल और मसालों से लेकर दूध खोवा और पनीर भी मिलावटी होते है। जो जनस्वास्थ के लिए बेहद खतरनाक है।
निश्चित रूप से मिलावटखोरी एक गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है जिसे सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए और मिलावटखारो के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित करना चाहिए।