Site icon Navpradesh

अंधड़, बारिश और चेतावनी : बदलता मौसम, बिगड़ता संतुलन

Storm, rain and warning: changing weather, deteriorating balance

Storm, rain and warning

योगेश कुमार गोयल
 Storm, rain and warning:
24-25 मई की रात उत्तर भारत के लिए एक बार फिर ऐसी रात बनकर आई, जिसने न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि पूरे उत्तर भारत को झकझोरकर रख दिया। इस प्रचंड मौसमीय तांडव ने न केवल जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया बल्कि एक बार फिर यह संकेत दे दिया कि अब मौसम चक्रों में स्थायित्व नहीं रहा और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से हमारे सिर पर मंडरा रहा है। एक ओर जहां लोगों को चिलचिलाती गर्मी से थोड़ी राहत मिली, वहीं दूसरी ओर भीषण बारिश और तेज हवाओं ने जनजीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया। मई महीने में जब उत्तर भारत 44-45 डिग्री सेल्सियस की झुलसाने वाली गर्मी के लिए जाना जाता है, ऐसे समय में अचानक ऐसे तूफान, तेज बारिश और ओलावृष्टि जैसे दृश्य आमतौर पर मानसून के चरम काल में भी दुर्लभ होते हैं।

हालांकि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस तूफान से पहले ही रेड अलर्ट जारी कर दिया था परंतु तूफान की तीव्रता और व्यापक प्रभाव ने पारंपरिक मौसमी पूर्वानुमानों को भी पीछे छोड़ दिया। रविवार की देर रात तेज हवाओं ने पूरे दिल्ली-एनसीआर में अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया। पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशा से तेजी से बढ़ते तूफानी बादल महज कुछ ही घंटों में दिल्ली-एनसीआर की ओर आ गए। आसमान में अचानक तेज बिजली चमकने लगी, फिर गरज के साथ बारिश शुरू हुई और देखते ही देखते स्थिति एक शक्तिशाली तूफान में बदल गई। हवा की रफ्तार इतनी अधिक थी कि कई इलाकों में पेड़ उखड़ गए, ट्रैफिक सिग्नल गिर गए, बिजली के खंभे झुक गए और कई वाहनों को क्षति पहुंची। आईएमडी के अनुसार, इस दौरान हवा की गति 60 किमी प्रतिघंटा तक पहुंच गई थी और कुछ स्थानों पर तो यह इससे भी अधिक रिकॉर्ड की गई।

केवल दिल्ली ही नहीं, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गुरुग्राम जैसे एनसीआर के प्रमुख शहरों में भी हालात कुछ अलग नहीं थे। गुरुग्राम में तेज हवा के कारण कई जगहों पर निर्माणाधीन साइटों की छतें उड़ गई जबकि नोएडा में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग की क्रेन गिरने से दो लोग घायल हो गए। उत्तर भारत के अन्य भागों, जम्मू, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, राजस्थान में भी यह तूफान तबाही लेकर आया। जगह-जगह सैंकड़ों पेड़ उखड़ गए, जिससे कई जगहों पर सड़कों का संपर्क टूट गया। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बादल फटने की घटना भी सामने आई, जहां सात वाहन बह गए और कई अन्य क्षतिग्रस्त हो गए। पंजाब में वर्षाजनित हादसों में कुछ लोगों की मौत की भी पुष्टि हुई। खेतों में काम कर रहे किसान तेज आंधी की चपेट में आ गए।

इससे पहले 21 मई को भी शाम के समय अचानक दिल्ली-एनसीआर का मौसम बदल गया था और अचानक बदले मौसम के बीच भीषण आंधी-तूफान और ओलावृष्टि ने जमकर तबाही मचाई थी। तेज आंधी, बारिश और ओलावृष्टि नोएडा, गाजियाबाद सहित देश के कई राज्यों में लोगों के लिए मुसीबत बन गया था। उस दौरान हुए हादसों में 7 लोगों की जान चली गई थी और दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हो गए जबकि देशभर में करीब 26 लोगों की मौत होने की सूचना मिली थी।
इस साल मई महीने की शुरुआत ही इसी प्रकार के अप्रत्याशित मौसमी बदलावों के साथ हुई थी।

2 मई की सुबह दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में तेज आंधी, बारिश और तूफान जैसी स्थिति बनी थी। दिल्ली में उस दिन 78 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से हवाएं चली थी और बारिश के साथ भारी नुकसान हुआ था। पेड़ उखड़ गए थे, बिजली की आपूर्ति बाधित हुई थी और तापमान में अचानक गिरावट दर्ज की गई थी। हालांकि उस समय भी लोगों को थोड़ी राहत महसूस हुई थी लेकिन इस बार मई के अंत में आया यह तूफान कहीं अधिक गंभीर और व्यापक प्रभाव वाला था। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब केवल सामान्य मौसमी उतार-चढ़ाव नहीं हैं बल्कि जलवायु परिवर्तन के गहरे संकेत हैं। दिल्ली सहित समूचे उत्तर भारत में तेजी से बढ़ता शहरीकरण, औद्योगीकरण और पर्यावरणीय असंतुलन अब मौसम चक्रों को अस्थिर कर रहा है।

‘शहरी हीट आइलैंड’ प्रभाव के चलते रात के तापमान में गिरावट नहीं होती और वातावरण की ऊष्मा बढ़ती जाती है। कंक्रीट, एस्फाल्ट और अन्य मानव निर्मित सतहें सूरज की ऊष्मा को अवशोषित कर लेती हैं और धीरे-धीरे उसे छोड़ती हैं, जिससे रात में भी वातावरण गर्म बना रहता है। 2 मई की सुबह दिल्ली का न्यूनतम तापमान 22.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि सामान्यतः ऐसी बारिश के बाद तापमान 18-20 डिग्री तक गिर जाता है।

मौसम विभाग ने इस बार के तूफान के पीछे पश्चिमी विक्षोभ और बंगाल की खाड़ी से उठने वाली नम हवाओं के संगम को कारण बताया है। आमतौर पर पश्चिमी विक्षोभ नवंबर से अप्रैल के बीच सक्रिय रहता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह मई-जून में भी सक्रिय रहने लगा है, जो वैश्विक तापमान वृद्धि का संकेत है। यह संकेत स्पष्ट करता है कि पारंपरिक मौसम चक्रों में अब स्थायित्व नहीं रहा और मौसम की गतिविधियां अधिक अनियमित और अस्थिर होती जा रही हैं।

बंगाल की खाड़ी से आने वाली नम हवाएं जब पश्चिमी विक्षोभ से टकराती हैं तो वह एक संगठित मौसमी प्रणाली का निर्माण करती हैं, जिससे उत्तर भारत में भारी वर्षा, तेज हवाएं और ओलावृष्टि होती है। यह आमतौर पर मानसून के मध्य चरणों में होता है लेकिन मई की शुरूआत में या मई के अंतिम सप्ताह में इस प्रकार की घटनाएं असामान्य हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि मौसमी प्रवृत्तियों की दिशा अब बदल रही है।

कृषि क्षेत्र पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इस समय अधिकांश क्षेत्रों में मूंग, सब्जियां, तरबूज, खरबूजा और अन्य ग्रीष्मकालीन फसलों की खेती होती हैं। तेज हवाएं, ओलावृष्टि और बारिश इन फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं। बिहार, हरियाणा और राजस्थान के किसानों ने फलों और सब्जियों के खराब होने की शिकायत की है। इससे न केवल किसानों की आमदनी प्रभावित होती है बल्कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला और खुदरा बाजारों में कीमतों पर भी इसका व्यापक असर पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन का असर अब हिमालय क्षेत्र में भी गहराई से महसूस किया जा रहा है। बर्फबारी का स्तर 23 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है, जिससे हिमालय की नदियों पर निर्भर करोड़ों लोगों की जल सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में मौसम अब पहले की तुलना में अधिक अनिश्चित और अस्थिर हो गया है। असामान्य तूफान, बेमौसम बारिश और अचानक तापमान में बदलाव, यह सभी इस बात के संकेत हैं कि जलवायु अब अपने पुराने स्वरूप से हट चुकी है।

वर्तमान स्थिति में सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और आम नागरिकों के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है। अब समय आ गया है कि हम जलवायु परिवर्तन को केवल वैज्ञानिक बहस का विषय न मानें बल्कि इसे सार्वजनिक नीति और व्यक्तिगत जीवनशैली में भी प्राथमिकता दें। भारत को अब मौसम विज्ञान, कृषि, जल संरक्षण, ऊर्जा नीति और शहरी नियोजन को आपस में जोड़ते हुए एक समग्र रणनीति बनानी होगी। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को भी अपनी रणनीतियों को अद्यतन करना होगा। अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की जलवायु विशेषताओं के अनुसार अलग योजनाएं बनानी होंगी।

दिल्ली-एनसीआर जैसे घने शहरी क्षेत्रों के लिए अलग मॉड्यूल हो जबकि हिमालयी क्षेत्रों के लिए भूस्खलन, बाढ़ और बर्फबारी पर केंद्रित योजनाएं हों। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए मौसम अनुकूल बीमा योजनाएं, सटीक पूर्वानुमान सेवाएं और प्राकृतिक आपदाओं से पहले सतर्कता की विश्वसनीय प्रणाली विकसित करनी होगी।
बहरहाल, दिल्ली और उत्तर भारत में अचानक और तीव्र रूप से बदलता मौसम अब कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं रह गया है बल्कि यह एक चेतावनी है कि यदि हम समय रहते नहीं चेते तो यह बदलाव हमें और अधिक विनाशकारी परिस्थितियों की ओर ले जा सकता है।

यह समय है जब नीति निर्धारक, वैज्ञानिक और आमजन एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन की चुनौती का समाधान निकालें। 24-25 मई की रात उत्तर भारत में आया तूफान न केवल भौतिक रूप से तबाही का प्रतीक था बल्कि यह जलवायु संकट की उस गंभीरता का द्योतक भी था, जिससे हम सब प्रभावित हो रहे हैं। यदि आने वाले समय में ऐसी घटनाएं बढ़ती हैं तो इससे न केवल हमारी जीवनशैली प्रभावित होगी बल्कि भारत की कृषि, अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय संतुलन भी खतरे में पड़ सकता है। इसलिए हमें सतर्क रहना होगा, तैयारी करनी होगी और प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर चलना होगा, तभी हम सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।

Exit mobile version