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BIG BREAKING : हाईकोर्ट ने होस्टल से पकड़ी गईं तीन सेक्स वर्कर की रिहाई के दिए आदेश, कहा- व्यस्क महिला को…

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नई दिल्ली। हाईकोर्ट ने वुमन होस्टल से पकड़ी गईं तीन सेक्स वर्कर (sex workers released by highcourt)  की रिहाई के आदेश दे दिए। बॉम्बे हाईकोर्ट (bombey high court decision to release sex workers ने फैसला लेते हुए ये बात ध्यान रखी कि एक व्यस्क महिला को अपना व्यवसाय चुनने का अधिकार है और उसकी सहमति के बिना उसे हिरासत में नहीं लिया जा सकता है। वेश्यावृत्ति कानून के तहत यह कोई अपराध नहीं है।

न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि उद्देश्य और अनैतिक ट्रैफिक (रोकथाम) अधिनियम, 1956 का उद्देश्य वेश्यावृत्ति को समाप्त करना नहीं है। उन्होंने कहा कि कानून के तहत कोई प्रावधान नहीं है जो वेश्यावृत्ति को अपराध बनाता है या किसी व्यक्ति को इसलिए दंडित करता है क्योंकि वह वेश्यावृत्ति में लिप्त है। यह साफ करते हुए कि कानून के तहत किस जुर्म की सजा मिलनी चाहिए और किस की नहीं, कोर्ट में 20, 22 और 23 साल की तीनों युवतियों को इज्जत के साथ बरी कर दिया।

पूरा मामला एक नजर में

-सितंबर 2019 में मलोद के चिंचोली बिंदर इलाके से मुंबई पुलिस की सामाजिक सेवा शाखा द्वारा बनाई गई एक योजना के तहत इन सेक्स वर्कर (sex workers released by high court) महिलाओं को छुड़ाया गया था। महिलाओं को एक महानगरीय मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। जिन्होंने महिलाओं को एक महिला छात्रावास में भेज दिया और एक संभावित अधिकारी से रिपोर्ट मांगी।
-19 अक्टूबर, 2019 को मजिस्ट्रेट ने महिलाओं की कस्टडी उनकी संबंधित माता-पिता को सौंपने से इनकार कर दिया। क्योंकि मजिस्ट्रेट ने पाया कि यह महिलाओं के हित में नहीं था कि वे अपने माता-पिता के साथ रहें। इसके बजाय, मजिस्ट्रेट ने निर्देश दिया कि महिलाओं को उत्तर प्रदेश के एक महिला छात्रावास में रखा जाए। ऐसा इसलिए था क्योंकि परिवीक्षा अधिकारियों की रिपोर्ट से पता चला था कि महिलाएं कानपुर, उत्तर प्रदेश के एक विशेष समुदाय से थीं और समुदाय में वेश्यावृत्ति की एक लंबी परंपरा थी।

-22 नवंबर, 2019 को डिंडोशी सत्र अदालत द्वारा मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखने के बाद महिलाओं ने अधिवक्ता अशोक सरावगी के माध्यम से अदालत का रुख किया था।

हाईकोर्ट  के दोनों आदेशों को रद्द कर दिया

बॉम्बे हाईकोर्ट (bombay high court decision to release sex workers) ने दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि याचिकाकर्ता / पीडि़त प्रमुख हैं और इसलिए उन्हें अपनी पसंद के स्थान पर निवास करने का अधिकार है साथ ही भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने और अपने स्वयं के व्यवसाय का चयन करने के लिए जैसा कि भारत के संविधान को निर्दिष्ट किया गया है।

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