यशवंत धोटे
एमपी पीएससी की असिस्टेन्ट प्रोफेसर के परीक्षा परिणामों के विरोध में हाईकोर्ट गए सामान्य वर्ग को अन्तत: आरक्षण समाप्ति के कुचक्र में सफलता मिल ही गई और आरक्षित वर्ग के प्रत्याशियों के निराशा हाथ लगी। यह निर्णय आरक्षित वर्ग के खिलाफ दिया गया हैं। इस निर्णय से आरक्षित श्रेणी की 92 (ओबीसी: 71, एससी: 18 व एसटी: 03) महिला उम्मीदवार प्रभावित हुई हैंं। अब 50% अनारक्षित सीटें शनै: शनै: 10% सामान्य उम्मीदवारों के पक्ष में जाती दिख रही हैं।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार 29 अप्रैल 2020 को याचिका क्रमांक 19630 / 2019, पिन्की असाटी विरुद्ध मध्यप्रदेश शासन एवं अन्य ऐसी लंबित 37 याचिकाओं पर सहायक प्राध्यापक पदों की नियुक्ति में लागू महिला आरक्षण पर एक फैसला सुनाया है जिसमें मुख्य विवाद था कि 50% अनारक्षित सीटों में से महिलाओं हेतु हॉरिजेंटली आरक्षित 33 फीसदी सीटों में क्या मेरिट में आईं अधिक प्राप्ताँकों वाली आरक्षित श्रेणी की 92 (ओबीसी: 71, एससी:18 व एसटी: 03) महिला उम्मीदवारों को स्थान मिलना चाहिए या नहीं? जिसमें मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ए. के. मित्तल व न्यायाधीश विजय कुमार शुक्ल की पीठ ने वादियों के 25 वकील, आरक्षित वर्ग के इंटरविनर्स के 25 वकील, मध्यप्रदेश शासन के 1 व लोक सेवा आयोग (MPPSC) के 2 वकीलों को सुनने के बाद आरक्षित श्रेणी की अधिक प्राप्तांक वाली महिला उम्मीदवारों को चयनित करने के बजाय फैसला इन सीटों में सामान्य जातियों की कम प्राप्तांक वाली महिलाओं को चयनित किये जाने के लिए सुनाया है.
दैनिक नवप्रदेश ने जब फैसले की पड़ताल की तो एक बड़ा रोचक तथ्य सामने आया कि यह पूरा मामला मेरिट में आईं आरक्षित श्रेणी की महिला उम्मीदवारों के 100 फीसदी पक्ष में होने के बावजूद इस फैसले में शब्द जीत गए व न्याय हार गया। नवप्रदेश ने यह पाया कि देश के संविधान या नियमों में जनरल केटेगरी या सामान्य श्रेणी नाम की कोई श्रेणी होती ही नहीं है अपितु अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के वर्टिकल आरक्षण के अलावा शेष उपलब्ध 50% सीटों को श्रेणी न कहकर अनरिज़व्र्ड सीटें या अनारक्षित सीटें या ओपन सीटें या खुली सीटें कहा एवं लिखा जाता है अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के वर्टिकल आरक्षण के अलावा शेष उपलब्ध 50 फीसदी सीटों के लिए शासकीय कार्यों हेतु अवैध (Illegal) शब्दावली जैसे जनरल केटेगरी या सामान्य श्रेणी (जो शब्दावली शासकीय कार्यों में होती ही नहीं, यह केवल चालू भाषा में बोला जाता है) जैसे शब्दों का उपयोग कर सामान्य वर्ग द्व्रारा भ्रमित किया जा रहा है जबकि शासकीय कार्यों हेतु वैध (Legal) शब्दावली: अनरिज़व्र्ड सीटें या अनारक्षित सीटें या ओपन सीटें या खुली सीटें जैसे शब्द इस आरक्षण की आत्मा हैं।और वास्तविक शब्दों का यही स्वरूप और अर्थ हैं। जिसे सरकारी दस्तावेजो के रोस्टर में देखा जा सकता है जिसमे अनारक्षित शब्द लिखा रहता हैं।
मध्यप्रदेश शासन 1999 के एक आदेश द्वारा इन 50% अनारक्षित (ओपन/खुली) सीटों को शासकीय कार्यों में सामान्य (जनरल) सीट शब्द लिखने पर बैन (रोक)भी लगा चुका है. क्योंकि इससे भ्रम उत्पन्न होने लगा था व इन 50% अनारक्षित (ओपन/खुली) सीटों को लोग सामान्य जाति के उम्मीदवारों हेतु आरक्षित सीटें समझने लगे थे।
वैसा ही कुछ इस निर्णय के पैरा क्रमांक 27 में उधृत एम. पी. सिविल सर्विस 1997 के नियम क्रमांक 3 के स्पष्टीकरण को पढऩे से भी समझ में आया कि यह महिला आरक्षण अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व सामान्य अर्थात चारों श्रेणियों में कम्पार्टमेन्टवार व हॉरिजेंटली दिया जाना है. जबकि कानून में सामान्य श्रेणी (जनरल केटेगरी) नामक तो कोई शब्द ही नहीं होता अपितु उन सीटों को अनारक्षित (अनरिज़र्वड) सीटें कहा जाता है. क्योंकि सामान्य श्रेणी के लिए तो कोई आरक्षण होता ही नहीं है. वहीं सामान्य जाति के उम्मीदवार अनारक्षित सीटों में ही आवेदन करते हैं।
Rule 3 of MP Civil Service 1997 is reproduced hereunder:
“3. Reservation of posts for women. Notwithstanding anything contained in any service Rules, there shall be reserved thirty per cent of all posts in the service under the State in favour of women at the stage of direct recruitment and the said reservation shall be horizontal and compartment wise. Explanation – for the purpose of this rule “Horizontal and compartment wise reservation” means reservation in each category, namely, Scheduled Castes, Scheduled Tribes, Other Backward Classes and General.”
इस प्रकरण में सामान्य जातियों की 92 वादियों के विरुद्ध मध्यप्रदेश शासन, लोक सेवा आयोग व आरक्षित वर्ग के इंटरविनर्स के कुल 28 वकीलों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के इन्दिरा सहाणे (मण्डल) निर्णय, ई. दीपा निर्णय इत्यादि के प्रावधानों की खूब दलीलें देने के बावजूद भी कि मेरिट अर्थात प्राप्तांकों के आधार पर अनारक्षित सीटों में चयनित आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की गणना अनारक्षित सीटों में ही की जाती है, उन्हें उनके लिए आरक्षित सीटों में समायोजित नहीं किया जाता है को नकारते हुए उच्च न्यायालय ने निर्णय सामान्य जाति की मेरिट में OBC महिलाओं से पीछे रह गईं कम प्राप्तांक वाली महिलाओं के पक्ष में सुनाया है। निर्णय में लिखा है कि जनरल केटेगरी की 33% महिला आरक्षण वाली सीटों में *UNRF अर्थात अनरिज़व्र्ड फीमेल अर्थात अनारक्षित महिलाओं को नियुक्त किया जाए. क्योंकि आरक्षण व्यवस्था में जनरल शब्द का अर्थ अनारक्षित ही होता है. इसका सीधा अर्थ है कि 33% महिला आरक्षण वाली अनारक्षित सीटों में फिर मेरिट के आधार पर सभी वर्गों की महिलाएं स्थान पा सकती हैं. जिसका लाभ आरक्षित वर्ग की अधिक प्राप्ताँक वालीं मेरिट में आई महिला उम्मीदवारों को मिलेगा. वहीं यदि मध्य्प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग ऐसा नहीं करता है तो वह न्यायालय की अवमानना होगी।
Therefore, we quash the revised select list prepared by the respondents and direct that a merit list will be drawn afresh by making fresh allotment of seats keeping in view the provisions of Rule 3 of the 1997 Rules, which prescribes horizontal and compartment-wise reservation for each category, i.e. General/OBC/SC/ST, meaning thereby 33% reservation will be made for 4 – SC(F); 4-ST(F), 6-OBC(F) and 12-UNRF categories.
उदाहरण के तौर पर यदि देखे तो नगर निगम भोपाल या रायपुर के महापौर का पद अनारक्षित (महिला) हेतु आरक्षित हो तो उसमें आरक्षित वर्ग की कोई भी महिला चुनाव लड़ सकती है, अन्यथा वह सीट सामान्य जाति हेतु आरक्षित हो जावेगी, जिसका संविधान में फिलहाल कोई प्रावधान नहीं है। अब निश्चित ही मध्यप्रदेश शासन, लोक सेवा आयोग व आरक्षित वर्ग की 92 (ओबीसी: 71, एससी: 18 व एसटी: 03) चयनित उम्मीदवार, सर्वोच्च न्यायालय जायेंगे. उम्मीद है कि वहाँ जनरल केटेगरी या सामान्य श्रेणी (जो शासकीय कार्यों में होती ही नहीं है, जो केवल चालू भाषा में बोला जाता है) को सही अनरिज़व्र्ड सीटें या अनारक्षित सीटें या ओपन सीटें या खुली सीटें परिभाषित कर उन्हें न्याय मिल सकता हैं। इसी प्रकार अक्सर और भी स्थानों पर यह देखने में आता है कि नियमों का उललंघन कर इन 50%अनारक्षित सीटों में भी 10% आबादी वाले सामान्य जाति के उम्मीदवारों को ही येन केन प्रकारेण नियुक्त कर दिया जाता है। जो 10% आबादी वाली सामान्य जातियों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण हो जाता है और 90 फीसदी एससीएसटी ओबीसी की आबादी 50 फीसदी आरक्षण के लिए जद्दोजहद करती हैं। शब्दो के मायाजाल में उलझे आरक्षण की शब्दावली के भावार्थ ठीक कराने में आरक्षित वर्ग को वर्षो लग जाते हैं। लेखक दैनिक नव-प्रदेश समाचार पत्र समूह के प्रधान संपादक हैं।