Public Interest Issues : उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के लिए हो रहे विधानसभा चुनाव के लिए उलटी गिनती शुरू होती ही राजनीतिक दलों ने मतदाओं का मन मोहने के लिए अपनी कवायद तेज कर दी है। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है। बड़बोले नेताओं ने फिर विवादास्पद बयानबाजी शुरू कर दी है।
अब्बाजान, चाचा जान और भाई जान के अलावा इमरान खान, पाकिस्तान और तालिबान की भी चर्चा हो रही है लेकिन जनहित से जुड़े मुद्दे हाशिए पर धकेल दिए है। कोरोना काल में जो व्यापाक जन और धन की हानी हुई है उस पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। ना ही लगभग एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को लेकर किसी की जुबान खुल रही है।
दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ती महंगाई ने आम आदमी का जिना मुहाल कर रखा है। किन्तु महंगाई के मुददे (Public Interest Issues) पर भी विपक्षी दलों ने खामोशी अखितियार कर ली है। जनहित से जुड़े मुद्दो पर चर्चा करने की जगह अन्य मुद्दों पर बातें की जा रही है। जिसे खबरिया चैनल बात का पतंगड़ बनाकर पेश कर रहे है। आम जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है।
ये विधानसभा चुनाव भी जातिवाद और धर्म के आधार पर लडऩे की तैयारी दिख रही है। सभी दलों ने अपने अपने वोट बैंक को साधने की कवायद शुरू कर दी है। राजनीतिक दलों ने लोक लुभावन घोषणाओं की भी झड़ी लगा दी है किन्तु उनकी ऐसी घोषणाएं हमेशा मतदाओं के लिए द्विवा स्वपन साबित होती है।
चुनाव निपटते ही राजनीतिक पार्टियां अपनी घोषणाओं से या तो मुकर जाती है या फिर उन घोषणाओं पर किन्तु परंतु लगाकर मतदाओं को ठगने का काम करती है। ज्यो-ज्यो चुनाव की तिथी पास आती जाएगी त्यों-त्यों बयानवीर नेता जनता का ध्यान मुलभूत मुददों (Public Interest Issues) से हटाने के लिए नए-नए शिगुफे छोड़ते रहेंगे। बेहतर होगा कि राजनीतिक दल ये शिगुफे बाजी छोड़कर जनता से जुड़े ज्वलंत मुद्दे उठाए और उसे लेकर ही जनता के बीच जाए।