Political Parties Tainted : हमेशा की तरह ही इस बार भी उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने दागियों पर दांव लगाने में कोई कंजूसी नहीं की है। पहले चरण के चुनाव के लिए अब तक जितने उम्मीद्वारों की घोषणा की गई है उसमें 25 प्रतिशत प्रत्याशी आपराधिक पृष्ठ भूमि वाले है। इनमें से सबसे आगे समाजवादी पार्टी है जिसके लिए दाग अच्छे है। कांग्रेस, बसपा और भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं है।
इन पार्टियों ने भी दागी (Political Parties Tainted) छवि के नेताओं के प्रति दरियादिली दिखाने में कोई कोर कसर नहीं बाकी नहीं छोड़ी है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दस प्रत्याशी तो ऐसे है जो इन दिनों जेल में है। इसके बावजूद उन्हें राजनीतिक दलों ने टिकट दी है। बाहूबल के बदलौत ऐसे लोग चुनाव जीत जाए तो भी ताजुब्ब नहीं होगा। राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर दागी लोगों को टिकट देने का आरोप लगा रही है।
लेकिन अपने गिरेहबां में नहीं झाक रही है। हकिकत तो यह है कि इस हमाम में सभी नंगे है। दागियों को और बाहुबलियों को टिकट देने में किसी को परहेज नहीं है। इसके पिछे राजनीतिक पार्टियां यह तर्क देती है कि वे चुनाव जीतने योग्य लोगों को ही प्रत्याशी बनाती है।
ऐसे दागी नेता इस कसौठी पर किस हिसाब से खरा उतरते यह शोध का विषय है। एक ओर तो सभी राजनीतिक दल राजनीति के अपराधी करण को रोकने की बात करती है और दूसरी ओर आपराधिक छवि वाले लोगों को खुले दिल से टिकट भी बांटती है। रही बात आम मतदाताओं की तो उनके सामने इन दागी नेताओं को चुन्ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता।
जब सभी पार्टियां किसी सीट से बाहुबलियों और दागियों को मैदान में उतारती है तो ऐसे में आम मतदाताओं के सामने डाकू और चोर में से किसी एक को ही चुनने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता। यही वजह है कि ऐसे अपराधी जिन्हें जेल में होना चाहिए वे प्रजातंत्र के मंदिरों में जा विराजते है। चुनाव आयोग राजनीति का अपराधीकरण रोकने में विफल रहा है।
अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (Political Parties Tainted) को ही दखल देना चाहिए। तभी राजनीति का अपराधिकरण रूक पाएगा। मौजूदा प्रावधान यह है कि जिस नेता को किसी मामले में तीन साल से अधिक की सजा हो जाती है उसे चुनाव लडऩे के लिए अपात्र घोषित किया जाता है। इस नियम में बदलाव करने की जरूरत है। जिन पर कई संघीन आरोप है उन्हें भी अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।