पुलिस (police) (फ्रेंच, अंग्रेजी police शुद्ध हिंदी आरक्षी या आरक्षक) एक सुरक्षा बल (A security force) होता है जिसका उपयोग किसी भी देश की अंदरूनी नागरिक सुरक्षा (Citizen protection) के लिए ठीक उसी तरह से किया जाता है जिस प्रकार किसी देश की बाहरी अनैतिक गतिविधियों से रक्षा के लिए सेना का उपयोग किया जाता है। भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है।यहां पर राजनीतिक एवं सामुदायिक और साम्प्रदायिकतावाद का ज़हर अधिक फैला हुआ है।
एक विचारधारा के रूप में धर्मनिरपेक्षता का बहुत ऊंचा है गौरव में स्थान है किंतु किसी भी धर्मनिरपेक्ष समाज में व्याप्त क्षुद्ध क्षेत्रीय स्वार्थी, धार्मिक, कट्टरताओं आदि के कारण माहौल बिगड़ता रहता है ।ऐसे समाज में पुलिस को सांप्रदायिक सद्भाव कायम रखने के लिए सदैव सावधान रहना पड़ता है। पुलिस (police) कर्मचारियों को एक विचित्र सामाजिक अलगाव की स्थिति में कार्य करना होता है। जिस समाज के अविभाज्य अंग है उसी समाज के सदस्यों की अवहेलना का तिरस्कार का पात्र भी उन्हें बनना पड़ता है ।उनके कार्यों की प्रकृति अमैत्रीपूर्ण होती है।
आज पुलिस (police) के कार्यों में विविधता आ रही है अपराधो की प्रकृति में परिवर्तन आया है लेकिन आधुनिक तकनीकी प्रशिक्षण का अभाव है जिसके कारण पुलिस पुलिस वर्ग अपने कार्य एवं दायित्व का निर्वहन नहीं कर सकते अब पुलिस का राजनीतिकरण होता जा रहा है पुलिस प्रशिक्षण में दिए जाने वाले पारदर्शिता,तटस्थता,और निष्पक्षता ,जवाबदेही ,गरिमा मानवीय अधिकार संविधान के प्रतिनिधिबद्धता से संबंधित प्रवचन निरर्थक हो जाते हैं ।ऐसे में प्रशिक्षणार्थी एक कान से सुनता है और दूसरे कान से निकालते हैं क्योंकि उन्हें एक व्यावहारिक और व्यावहारिक जीवन में इसका कोई अर्थ नजर नहीं आता आधुनिक परिपेक्ष्य में पुलिसकर्मियों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण में अनेक प्रकार की कमियां बताई गई है।
पुलिस (police) थानों में सत्यमेव जयते एवं ‘हमारे योग्य सेवा ‘अंकित है परन्तु यह विडंबना है कि आजाद भारत का आम नागरिक थाने में जाने से डरता और घबराता है ।थाने में उसे लूटने व पीटने का भय रहता है।एक आम धारणा है कि थाने में कोई कार्यवाही द्घ.द्ब.ह्म्. (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज करने की जांच करने की अनुमति नहीं होती ।पुलिस के काम करने की पुरानी शैली तथा पुलिस का औपनिवेशिक स्वरूप भी पुलिस और जनता के साथ संबंध खराब किए हुए हैं। पुलिस का आम जनता के प्रति मधुर होने न होने से आपसी मेलजोल नहीं हो पाता।
पुलिस (police)की कार्यप्रणाली मूल रूप से भारतीय पुलिस अधिनियम 1861पर आधारित है पिछले वर्षो में विज्ञान, मानव समाज, संस्कृति एवं तकनीकी क्षेत्र में अनेक प्रकार के परिवर्तन हुए हैं ।सन,1861में बनाया गया पुलिस अधिनियम इन परिवर्तनों के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पा रहा है ।अत: इस अधिनियम में थोड़ा परिवर्तन किया जाए जिससे आने वाला युवा वर्ग पुलिस की नौकरी को रोजगार की दृष्टि से ना देखें बल्कि अपना फर्ज समझकर इस नौकरी के साथ तालमेल बिठाकर चले।
वर्तमान समाज में नॉवल-19 कोरोना वायरस माहमारी ने भारत में पैर पसार लिए हैं इस समय में पुलिस का सिपाही सड़क चौराहे पर 24 घंटे के लिए तैनात किया गया है आम जनमानस की भलाई के लिए यह लोग अपनी ड्यूटी बड़ी मेहनत और निष्ठा के साथ निभा रहे हैं ।आज कोरोना से सारा भारत घरों में बंद है सिर्फ मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी ,पुलिस विभाग, पत्रकार आदि ही बहार रहकर जनता की सेवा कर रहे हैं ।
जनता को सोशल मीडिया, टी.वी ,अखबार आदि माध्यमों से जानकारी दी जा रही है कि कोई भी घर के बाहर ना आए फिर भी आवश्यक कार्य से जो निकल जाते है। उन्हें पुलिस के सिपाही की मार का सामना करना पड़ता है कुछ आवश्यक कार्यों के लिए जाते हैं और कुछ अनावश्यक कार्यों के लिए भी निकलते हैं ऐसे समय में भी कुछ सिपाही लोगों की मानसिकता को समझ कर उन्हें स्नेहपूर्वक समझा का घर की ओर वापस भेज देते है। दूसरा रूप भी पुलिस का सामने आया है कि कुछ पुलिस कर्मी माँ अन्नपूर्णा का रूप धारण करके जनता को भोजन वितरण करने का पुण्य कार्य कर रहे है।यह कार्य इंदौर भोपाल,अयोध्या आदि स्थानों पर लिया जा था है।
पुलिस (police) का कार्य बड़ा कठिन है ।राजनेताओं की विभिन्न रैलियों के दौरान सुरक्षा और यातायात की व्यवस्था बनाए रखना जुलूस को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करना हड़ताल धरना और बंद के दौरान असामाजिक तत्वों से राष्ट्र की संपत्ति की रक्षा करना ,राजनेताओं की व्यक्तिगत सुरक्षा करना पुलिस का दायित्व है ।पुलिस कर्मचारी चौबीस घंटे खतरों से जूझते हैं ।चोर डकैत से मुठभेड़ के दौरान घायल हो जाते हैं ।भीड़ के द्वारा पथराव की स्थिति में चोट खाते हैं। सर्दी ,गर्मी और बरसात के मौसम में ड्यूटी देनी पड़ती हैं विभिन्न प्रकार के अपराधियों को पकडऩा और न्यायालय में प्रस्तुत करना पुलिस का कार्य है ।
पुलिस (police) को शांति व्यवस्था का कार्य सौंप कर समाज ने उसे एक पुनीत कर्तव्य सौंपा है और इस कर्तव्य का निर्वहन पवित्र भावना से करना आवश्यक है ।विधि को लागू करने वाले उसे तोडऩे वाले नहीं हो सकते। पुलिस के सिपाही का ईमानदार होना आवश्यक है ।भ्रष्ट सिपाही कभी भी अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर सकता । भारतीय पुलिस 21वीं सदी में हमारी और मातृभूमि की नियति को बदल सकती है इसके लिए पुलिस सेवा को मात्र जीवनयापन का साधन मानकर इसे एक दर्शन और प्रेरक बल का रूप देना होगा।
पुलिस प्रशासन को जनता अपना सेवक मान सकती है अगर पुलिस कर्मचारी भी रक्षक बने ना कि भक्षक की भूमिका में नजर आए। आज तक जी छवि बनी हुई है उसे तोड़कर जनता के बीच आकर उनकी समस्या को सुने और गरीबों के मन में बैठे हुए भय को दूर करते हुए उनकी शिकायत को सुने। समाज पुलिस से यह उम्मीद रखता है कि वह उसकी रक्षा करेगी और उसकी यह उम्मीद कभी नही टूटेगी यही कारण है कि समाज मे कुछ अनहोनी होने पर पुलिस को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ता है क्योंकि गुस्सा उसी पर किया जाता है जिस पर भरोसा किया जाता है।
(लेखक : डॉ मोनिका देवी, प्रधानाचार्य गुरुनानक कन्या इंटर कॉलेज जलालाबाद , शामली)