PM Modi bluntly in bilateral talks: कजान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्धबोधन के दौरान आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से उठाया और आतंकवाद के खिलाफ ब्रिक्स के देशों से एकजुटता की अपील की।
इजराइल और लेबनान के बीच चल रही जंग तथा रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध को मद्देनजर रखकर पीएम मोदी ने कहा कि मौजूदा हालात में किसी भी तरह की जंग से पूरी दुनिया प्रभावित होती है इसलिए समस्या का समाधान आपसी बातचीत के जरिए किया जाना चाहिए।
ब्रिक्स श्खिर सम्मेलन के बाद पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई। जिसमें पीएम मोदी ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि सीमा पर शांति बनाए रखना हमारी पहली प्राथमिकता है और इस मामले में भारत अपनी नीति के साथ कोई समझौता नहीं करेगा।
गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पिछले सात दशकों से चला आ रहा है। किन्तु 2020 में चीन ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास अनावश्यक रूप से दखलअंदाजी कर दी थी।
इसके बाद सीमा पर तनाव बढ़ गया था। बहरहाल अब चीन को यह समझ आ गया है कि भारत के साथ सीमा पर तनाव बढ़ाने से उसे भारी नुकसान हो रहा है
इसीलिए उसने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ही पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर पेट्रोलिंग करने के लिए समझौता कर लिया। इसी के साथ अब एलएसी पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल हो गई है।
इस समझौते से भारत और चीन के रिश्तों पर जमीं बर्फ कितनी पिघल पाएगी। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच पौन घंटे चली बातचीत में दोनों नेताओं ने सीमा मुद्दे पर विवादों को और आपसी मतभेदों को ठीक से संभालने तथा शांति बाधित न होने के महत्व को रेखांकित किया
और इसके लिए जल्द से जल्द विशेष प्रतिनिधि स्तर की बैठक आयोजित करने पर सहमति जताई। इसके बाद यह उम्मीद बंधी है कि अब भारत और चीन की सीमा पर पिछले पांच सालों से बना तनाव कम होगा।
इस समझौते के बावजूद चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। भारतीय रक्षा विशेषज्ञ धु्रव कटोच का कहना है कि भारत और चीन के बीच समझौता होने के बाद भी ड्रैगन की गतिविधयों पर भारत को कड़ी नजर रखनी होगी।
इसके पहले भी पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पिछले एक दशक में लगभग दस बार विश्व के विभिन्न मंचों पर मुलाकात हुई है और कई बार द्विपक्षीय वार्ता भी हुई है। लेकिन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आया।
इसलिए इस समझौते के बाद भी चीन पर संदेह बना रहना स्वाभाविक है। एलएसी पर भारत को कड़ी नजर बनाए रखने होगी। ताकि चीन भारत के खिलाफ किसी तरह की साजिश को अंजाम न दे सकें।
दरअसल चीन अभी खुद चौतरफा मुसीबतों से घिरा हुआ है। इसीलिए उसने सीमा पर कायम तनाव को कम करने के लिए भारत की शर्तें मानी है लेकिन कल यदि चीन खुद को अनुकूल स्थिति में पाएगा तो वह गिरगिट की तरह रंग बदल लेगा। इसलिए भारत को उससे सावधान रहने की जरूरत है।