One country, one election: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक देश एक चुनाव का जो संकल्प लिया था। उसे पूरा करने की दिशा में उन्होंने एक और ठोस कदम उठा दिया है।
एक देश एक चुनाव (One country, one election) को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने इस बाबत् अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। जिसे केन्द्रीय मंत्रिमंंडल के समक्ष रखा गया और कैबिनेट ने इसे अपनी मंजूरी दे दी।
अब संसद के शीतकालीन सत्र में एक देश एक चुनाव का विधेयक पेश किया जाएगा। जिसमें इस पर विस्तृत चर्चा की जाएगी किंतु लोकसभा और राज्यसभा में इस विधेयक को पारित कराने की राह आसान नजर नहीं आ रही है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस सहित आईएनडीआईए में शामिल सभी विपक्षी पार्टियां एक देश एक चुनाव (One country, one election) का विरोध कर रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने यहां तक कह दिया है कि भारत जैसे देश में एक देश एक चुनाव संभव ही नहीं है।
उन्होंने इसे अव्यवहारिकबताते हुए आरोप लगाया है कि जब भी कोई चुनाव नजदीक आता है तो असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए भाजपा ऐसी बातें करती है।
अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी एक देश एक चुनाव की अवधारणा को सिरे से खारिज कर दिया है सिर्फ बसपा सुप्रीमो मायावती ने ही एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है।
वैसे एनडीए में शामिल सभी पार्टियां एक देश एक चुनाव (One country, one election) के पक्ष में हैं लेकिन इसे संसद से पारित कराने के लिए विपक्षी पार्टियों के समर्थन की भी जरूरत पड़ेगी क्योंकि इसके लिए संविधान में कई संशोधन करने पड़ेंगे जिनमें से कुछ संशोधनों का लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है।
ऐसी स्थिति में एक देश एक चुनाव संबंधी विधेयक को संसद से पारित कराना मोदी सरकार के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य सिद्ध होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक देश एक चुनाव पर सर्वसम्मति कायम करने के लिए केन्द्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में तीन केन्द्रीय मंत्रियों की एक समिति का गठन कर दिया है जो आईएनडीआईए में शामिल सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से चर्चा करके एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर सब की सहमति हासिल करने की कोशिश करेगी।
इसमें उन्हें कितनी कामयाबी मिल पाएगी यह कह पाना फिलहाल मुहाल है। क्योंकि एक देश एक चुनाव संबंधित रिपोर्ट को पढ़े बिना ही विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हंै।
ऐसे में उन्हें विश्वास में लेना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। वैसे राष्ट्रहित में सभी पार्टियां इसके लिए सहमत होती हैं तो यह देश के लिए निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि होगी।
यह ठीक है कि भारतीय संविधान में लोकसभा और देश की सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते रहे हैं।
इसके बाद तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में कई राज्यों की सरकारों को बर्खास्त किए जाने के बाद से लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराना असंभव हो गया था।
यही वजह है कि अब भारत में बारहों महीने कहीं न कहीं कोई न कोई चुनाव होते ही रहते हैं। बार बार होने वाले इन चुनावों के कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं और चुनाव आयोग पर भी अतिरिक्त भार पड़ता है।
यदि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे तो हजारों करोड़ रुपए की बचत होगी और विकास कार्यों को भी गति मिलेगी जो बार बार चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण बाधित होते हैं।
एक देश एक चुनाव (One country, one election) को लेकर क्षेत्रीय पार्टियां आशंकित हैं कि उनका अस्तित्व मिट जाएगा। उनकी यह भ्रांति निराधार है इसलिए उसे भी दूर करना होगा और विपक्षी पार्टियों को जो संदेह है उसका भी निवारण करना होगा तभी एक देश एक चुनाव पर आम सहमति कायम हो पाएगी।