पर्यूषण पर्व : दशलक्षण महापर्व का हुआ समापन
जगदलपुर/नवप्रदेश। Paryushan Parv : दिगंबर जैन समाज ने पयूषण पर्व के तहत महावीर भवन में विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन किया। इसी क्रम में शनिवार की रात आरती के बाद समाज को सहयोग करने वाले दानदाताओं को सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में श्वेतांबर ओसवाल जैन समाज के सदस्य नीरज जैन को भी सम्मानित किया गया।
इन दानदाताओं ने शहर में एनएमडीसी चौक के पास जमीन देकर समाज को विशेष सहयोग दिया। अब इस जमीन पर सामाजिक कार्यों के लिए निर्माण किया जाएगा। इसके बाद ‘जिम्मेदार कौन’ नामक एक धार्मिक नाटक का मंचन हुआ। इस नाटक के माध्यम से समाज में दहेज जैसी कुरीतियों के दुष्परिणामों की जानकारी दी गई।
अंतिम दिन निकाला जुलूस
दशलक्षण महापर्व के अंतिम दिन रविवार को अनंत चुतर्दशी के पावन अवसर पर जैन स्वालंबियों ने रथ में विराजमान कर श्रीजी की भव्यशोभा यात्रा निकाली जिसमें महिला, पुरुष एवं बच्चे बड़ी संख्या में शामिल हुए। नगर क माचार भवन ससुबह 1बजशाभायात्रा निकाला गई। रात को श्रीमहावीर भवन में ग्वालियर से आमंत्रित पंडित संदरलाल शास्त्री द्वारा उत्तम ब्रम्हज्य विषय पर प्रवचन माला हुई।
महापर्व पर्युषण क्या है, जानिए
पर्युषण पर्व (Paryushan Parv) का अर्थ है परि यानी चारों ओर से, उषण यानी धर्म की आराधना। श्वेतांबर और दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व भाद्रपद मास में मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं।
यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस पर्वानुसार- ‘संपिक्खए अप्पगमप्पएणं’ अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो।
पर्यूषण के 2 भाग हैं- पहला तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण तथा दूसरा अनेक प्रकार के व्रतों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक व वाचिक तप में स्वयं को पूरी तरह समर्पित करना। इस दौरान बिना कुछ खाए और पिए निर्जला व्रत करते हैं।
श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे ‘दसलक्षण’ कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्नव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य।
इन दिनों साधुओं के लिए 5 कर्तव्य बताए गए हैं
संवत्सरी, प्रतिक्रमण, केशलोचन, तपश्चर्या, आलोचना और क्षमा-याचना। गृहस्थों के लिए भी शास्त्रों का श्रवण, तप, अभयदान, सुपात्र दान, ब्रह्मचर्य का पालन, आरंभ स्मारक का त्याग, संघ की सेवा और क्षमा-याचना आदि कर्तव्य कहे गए हैं।
पर्युषण पर्व (Paryushan Parv) के समापन पर ‘विश्व-मैत्री दिवस’ अर्थात संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। अंतिम दिन दिगंबर ‘उत्तम क्षमा’ तो श्वेतांबर ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं।