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संपादकीय: हंगामों की भेंट चढ़ता संसद सत्र

Parliament session marred by uproar

Parliament session marred by uproar

Parliament session marred by uproar: संसद का शीतकालीन सत्र भी पिछले कई सत्रों की तरह ही हंगामों की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। विपक्ष लगातार संसद की कार्यवाही में बाधा डाल रहा है। अडानी के मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रखा है।

यह बात अलग है कि अडानी के मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने संसद में जो हंगामा मचा रखा है। उससे अब उसके ही सहयोगी दल किनारा करने लगे है। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने तो इस पर अपनी कड़ी आपत्ति भी दर्ज करा दी है। टीएमसी का कहना है कि अडानी को छोड़की भी देश के सामने कई गंभीर विषय है जिसपर संसद में चर्चा होनी चाहिए।

इसी तरह संसद में कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी ने भी अडानी के मुद्दे से खुद को अलग करने के संकेत दिये है। इसके बावजूद कांग्रेस इसी मुद्दे को लेकर संसद का कामकाज प्रभावित कर रही है। गौरतलब है कि संसद की कार्यवाही में प्रति मिनट ढाई लाख रूपये खर्च आता है।

ऐसे में संसद के इन चार दिनों में सिर्फ दो घंटे का ही काम हो पाया है। बाकी समय हंगामों की भेंट चढ़ गया है। जाहिर है इससे सरकारी खजाने के करोड़ो रूपये व्यर्थ हो गए है। संसद सत्र के बाकी दिनों में भी कामकाज सुचारू हो पायेगा या नहीं इस बारे में दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।

सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के कारण कांग्रेस नेता राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बने है और वे अडानी के मुद्दे को ही प्रमुखता दे रहे है। ऐसे में ससंद में जारी गतिरोध कब टूटेगा इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। दरअसल जब से केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी है तब से विपक्ष संसद में हंगामा खड़ा करके कामकाज को प्रभावित करने लगा है।

इससे देश को कितना नुकसान हो रहा है इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं है। उनका तो एक ही मकसद है कि हंगामा खड़ा करते रहो। गौरतलब है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडि़त जवाहरलाल नेहरू ने एक बार कहा था कि विपक्ष का मतलब विरोधी पक्ष नहीं होता बल्कि विशेष पक्ष होता है। किन्तु कांग्रेस इस बार नहीं समझ रही है वह अपनी जीद पर अड़ी हुई है।

संसद ठप होने के कारण जनहित से जुड़े अनेक मुद्दो पर संसद में कोई चर्चा नहीं हो पा रही है और इस बार भी यदि संसद में इसी तरह गतिरोध बना रहता है तो कई महत्वपूर्ण विधेयक इस बार भी अधर में लटक सकते है यह ठीक है कि संसद को चलाना सत्ता पक्ष की जिम्मेदारी है लेकिन विपक्ष को भी सदन को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग करना चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना ही विपक्ष का काम नहीं है।

यह बात विपक्ष के नेता जितनी जल्दी समझ जाये देश के लिए उतना ही अच्छा होगा। ऐसा लगता है कि पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित होने की पीड़ा से विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस नहीं उबर पाई है। अपनी इस हार की खीज को वह संसद में हंगामा करके निकाल रही है। संसद सुचारू रूप से चले और वहां जनता से जुड़े ज्वलंत मुद्दो पर सार्थक चर्चा हो और महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा के बाद उन्हें पारित कराया जाये। इसके लिए अब कड़े नियम बनाना निहायत जरूरी हो गया है।

सांसदो के लिए भी इतना काम उतना दाम की नीति लागू करनी चाहिए। जब तक ऐसे कड़े कदम नहीं उठाए जाएंगे। संसद के सत्र हंगामों की भेंट चढ़ते जाएंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद के शीतकालीन सत्र का गतिरोध तोडऩे के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता गंभीर चिंतन करेंगे। कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है और उसी के साथ नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी भी है इसलिए कांग्रेस को अपनी हटधर्मिता छोडऩी चाहिए। और संसद को चलाने में सरकार का सहयोग करना चाहिए।

वैसे भी अडानी के मुद्दे को लेकर कांग्रेस सदन में अलग थलग पड़ती जा रही है अभी तो तृणमूल कांगे्रस और समाजवादी पार्टी ने अडानी के मुद्दे को लेकर कांग्रेस के हंगामें पर आपत्ति दर्ज कराई है। आगे चलकर आईएनडीआईए में शामिल अन्य विपक्षी पार्टियां भी कांग्रेस के इस फैसले से खुद को अलग कर सकती है।

यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस की ही किरकिरी होगी। इसलिए बेहतर यही होगा की कांग्रेस अडानी अडानी भजना बंद करे और संसद में अन्य महत्वपूर्ण मुद्दो को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा करे। विपक्षी पाट्री का यह दायित्व है कि वह सरकार की कमियों को गिनाए उसकी जनविरोधी नीतियों की अलोचना करें। लेकिन इसका यह मतलब नहीं की संसद की कार्यवाही को ही ठप कर दे।

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