Padma Awards : इस साल भी राष्ट्रपति के हाथों भारत की उन विभूतियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित होने का स्वर्णिम अवसर मिला जो गुमनाम जिंदगी जी रहे है लेकिन मानवता की निष्काम भाव से अनवरत सेवा कर रहे है। निश्चित रूप से ऐसे अनाम योद्धाओं को सम्मान मिलना हम सबके लिए न सिर्फ गर्व की बात है बल्कि प्रेरणा दायक भी है। उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले तक पद्म पुरस्कारों पर खास लोगों का ही अधिकार माना जाता था। आम आदमी सपने में भी इन सर्वोच्च पुरस्कारों के बारे में सोच नहीं पाता था।
पद्म पुरस्कार ज्यादातर फिल्मी कलाकारों को और चाटूकारों को ही मिला करते थे लेकिन २०१४ के बाद से पद्म पुरस्कार (Padma Awards) उनके वास्तविक हकदारों के हाथों में आने लगा है। इस साल भी राष्ट्रपति भवन में बिछी लाल कालीन पर ऐसे लोग पद्म पुरस्कार लेने पहुंचे जिनके पैरों में जूते या चप्पल तक नहीं थी। कपड़े भी साधारण थे लेकिन ये सभी असाधारण व्यक्तित्व है जिन्होने अपने स्तर पर जनसेवा की है। उन्होने कभी न तो संसाधनों की कमी का रोना रोया न शासन प्रशासन का मुंह ताका।
जिसके पास जितना भी साधन उपलब्ध था उसी से उसने असंभव काम को संभव कर दिखाया। निश्चित रूप से ऐसे लोग वंदनीय है जो प्रकृति, पर्यावरण और शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में अपना अमूल्य योगदान दे रहे है। आम तौर पर सामान्य व्यक्ति तो जनसमस्याओं का निराकण करना सरकार का काम समझता है अपनी ओर से वह इन जटिल समस्याओं के निराकरण के लिए उंगली हिलाना भी मुनासिब नहीं समझता। किन्तु हमारे बीच ही ऐसे लोग भी है जो आगे आकर जनसेवा का बीड़ा उठाते है और ऐसे कामों को अंजाम देने में सफल हो जाते है जो हमारी कल्पना से भी परे होता है।
गुमनामी के अंधेरों में गुम ऐसे सच्चे समाजसेवकों को ढूंढकर निकालना और उन्हे सम्मानित (Padma Awards) करना सरकार की प्रशंसनीय पहल है। इनमें से ज्यादातर लोगों के नाम भी हम नहीं जानते। जब इन्हे सम्मानित किया जाता है तब इनके नाम और काम से हम परिचित होते है और इनसे प्रेरणा भी लेते है। ऐसी विभूतियों का सम्मान करने से निश्चित रूप से पद्म पुरस्कारों का भी सम्मान बढ़ा है।