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National Youth Day : युवा बनें भारत के भाग्य विधाता

National Youth Day: Youth become the destiny maker of India

National Youth Day

डॉ.संजय शुक्ला। National Youth Day : आज देश के आध्यात्मिक गुरू स्वामी विवेकानंद जी की जयंती है जिसे समूचा देश राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाता है। विवेकानंद युवाओं को राष्ट्रनिर्माण का प्रमुख ध्वजवाहक मानते थे।किसी भी देश और समाज की दशा और दिशा उस राष्ट्र के युवा तय करते हैं, दुनिया में जितने भी राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बदलाव हुए हैं उनके सूत्रधार युवा ही रहे हैं। दरअसल युवा ही किसी देश के वर्तमान और भूतकाल के सेतु होते हैं जिनके साकारात्मक ऊर्जा से बदलाव संभव हो पाता है।

राष्ट्र और समाज के निर्माण में युवाओं (National Youth Day) की इन महति भूमिका के बावजूद भारत के राजनीतिक और सामाजिक विकास युवाओं की भागीदारी सीमित है। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है जहां 45 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र का है जबकि चीन में यह आंकड़ा 30 फीसदी है। भारतीयों की औसत आयु 28 वर्ष है जो चीन के औसत आयु 39 वर्ष में से 11 वर्ष कम है। चीन की आबादी बड़ी तेजी से बुजुर्ग हो रही है फलस्वरूप उसकी आर्थिक वृद्धि दर भी घट रही है जबकि भारत मे बढ़ती वर्कफोर्स के चलते आने वाले 10 वर्षों में देश की औसत विकास दर में काफी बढ़ोतरी की संभावना है।

युवाओं के कंधों पर ही मुल्क की राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की जिम्मेदारी है। देश इन दिनों अनेक राजनीतिक सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों से जूझ रहा है जिसका मुकाबला सिर्फ युवा ही कर सकते हैं।लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में कोई भी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलाव चुनावों के जरिए ही संभव है।युवा ही किसी राष्ट्र या समाज की रीढ़ होते हैं इसलिए उन्हें स्वहित को त्याग कर राष्ट्रहित में अनेक संकल्प लेने होंगे।

विडंबना है कि देश में युवाओं का एक समूह अपने लक्ष्य से भटक कर धार्मिक और जातिवादी कट्टरपंथी मुहिम अपनी ऊर्जा और भविष्य गंवा रहा है वहीं न?ई पीढ़ी में पनप रही नशाखोरी और पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण उनके चरित्र निर्माण में भी बाधक बन रहा है। युवाओं के बीच प्रगतिशीलता का मायने ही उपरोक्त विसंगतियां बन रही है जो देश और समाज के लिए घातक है। बहरहाल युवाओं को एक ऐसे भारत के निर्माण का संकल्प लेना होगा जहां धर्म,जाति, लिंग,क्षेत्र या आय का कोई भेदभाव न हों लेकिन इसके लिए युवाओं को खुद को एक भारतीय समझें।

भारत के युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी आज भी सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत हैं जिनका जीवन उन्हें अनुशासन, नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, समानता और सहजीवन की सीख देती है।आजादी के सात दशकों बाद भी हमारा देश शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास और समानता के अनेक मानकों में काफी पिछड़ा हुआ है। इतिहास गवाह है कि दुनिया में जितने भी बदलाव हुए हैं उसे युवाओं ने ही अंजाम दिया है लेकिन भारत के युवा अपनी बुनियादी चिंताओं के निराकरण और सामाजिक जवाबदेहियों के प्रति लगातार उदासीन नजर आ रहे हैं। युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, आर्थिक विषमता ऐसी समस्या है जिसके प्रति सरकार के साथ साथ समाज भी बेपरवाह है।

अनियमित खानपान और दिनचर्या के कारण किशोरों और युवाओं की एक बड़ी संख्या बहुत तेजी से जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों का शिकार हो रही है वहीं ड्रग्स एवं अन्य मादक पदार्थों के सेवन के चलते युवा अपराध, अनैतिक व्यापार, अवसाद और आत्महत्या जैसे त्रासदी भोग रहे हैं। आजकल के युवाओं में पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण के चलते इतना खुलापन आ गया है कि वे तमाम सामाजिक वर्जनाओं को तोडऩे में भी नहीं हिचक रहे हैं? आश्चर्यजनक तौर पर युवतियां भी इन मामलों में पीछे नहीं हैं। अहम सवाल यह कि युवाओं में पनप रही अपसंस्कृति आखिरकार देश और समाज को कहां ले जाएगी? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया में भारत की पहचान उसकी संस्कृति और परंपरा भी है जिसके प्रति पश्चिम आकर्षित होते रहा है।

बहरहाल जब युवा भटकाव की राह पर हैं तो तब उनके लिए आत्ममंथन का भी समय है कि आखिरकार वे अपने लक्ष्य प्राप्ति में कैसे सफल हों? बिलाशक इसके लिए उन्हें विवेकानंद और महात्मा गांधी को ही अपना रोल मॉडल बनाना होगा। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को धैर्य, व्यवहारों में शुचिता,आपस में नहीं लडऩे, पक्षपात नहीं करने और हमेशा संघर्षरत रहने का संदेश दिया था। वे ईश्वर और सत्य को आत्मविश्वास जागृत करने का सबसे बड़ा साधन मानते थे,उनका मानना था कि दुनिया एक बड़ी व्यायामशाला है जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं। विवेकानंद ने युवाओं को लक्ष्य प्राप्ति के लिए मूलमंत्र दिया था कि ” उठो,जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”

आज के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में विवेकानन्द के संदेश युवा पीढ़ी को उनके लक्ष्य प्राप्ति में बेहतर राह दिखा सकते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी युवाओं को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा औजार मानते थे,वे युवाओं के ऊर्जा को रचनात्मक दिशा देने के पक्षधर थे। आजादी के आंदोलन में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी तब उन्होंने युवाओं के लिए स्वराज को आत्मानुशासन, सत्याग्रह को व्रत, अहिंसा को सबसे बड़ा अस्त्र और शिक्षा को सबसे बड़ी नैतिकता बताया था। गांधी का मानना था कि युवाओं को शोषणमुक्त सामाजिक परिवर्तन की दिशा में आगे आना चाहिए तथा सामाजिक कुरीतियों के निवारण में अपनी सक्रिय भूमिका सुनिश्चित करना चाहिए।

बहरहाल आज जब देश राजनीतिक और संक्रमण के दौर से गुजर रहा है तब युवाओं की महति जिम्मेदारी है कि वे विवेकानंद और गांधी के सिद्धांतों को अपनाकर राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य में आगे आएं।देश आज भी रूढि़वादी परंपराओं के बेडिय़ों में जकड़ा हुआ जिससे आजादी सिर्फ युवा ही दिला सकते हैं। गरीबी और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में लगातार पिछड़ रही हैं। हमें स्मरण में रखना होगा कि इस आधी आबादी ने अंतरिक्ष से लेकर राजनीति, आर्थिक, सामाजिक, साहित्यिक क्षेत्र में पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया है।

युवाओं से अपेक्षा है कि नये साल में वे समाज में महिलाओं के बारे में प्रचलित दकियानूसी सोच को बदलने और उनके सशक्तिकरण की दिशा में आगे आएं। देश के युवाओं के सामने अच्छी शिक्षा के बाद अच्छा रोजगार एक बड़ी चुनौती है लेकिन सरकारी और निजी क्षेत्रों में बेरोजगारों के अनुपात में नौकरी नहीं है लिहाजा युवाओं को स्वरोजगार और कुटीर उद्योगों की ओर प्रेरित होना चाहिए ताकि वे खुद रोजगार प्रदाता बनें।

पाश्चात्य और महानगरीय संस्कृति (National Youth Day) के अंधानुकरण के चलते युवक और युवतियों की बड़ी जनसंख्या नशाखोरी के गिरफ्त में आ रही है जो कल के भारत की खतरनाक तस्वीर पेश कर रहा है। नशाखोरी के चलते नयी पीढ़ी अनेक शारीरिक और मानसिक रोगों का शिकार होकर अपराध और अनैतिक व्यवसाय में संलिप्त हो रहे हैं। आज के युवाओं में अनुशासन जो कि पूरे जीवन का आधार है की सबसे ज्यादा कमी देखी जा रही है।

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