Naming Politics : टोक्यो ओलंपिक में इस बार भारतीय खिलाडिय़ों ने दमदार खेल दिखाया और भारत का नाम दुनिया में रौशन किया। जो हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है उसमें चार दशक के बाद भारतीय पुरूष हॉकी टीम ने कांस्य पदक हासिल किया और भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार सेमीफाईनल तक का सफर तय किया। बेशक भारतीय महिला हॉकी टीम सेमीफाईनल के रोमांचक मुकाबले में पूर्व आलंपिक चैंपियन इंग्लैण्ड से एक गोल से हार गई लेकिन भारत की बेटियों ने करोड़ों भारतीयों का दिल जीत लिया।
भारत की बेटियों ने अन्य खेलों (Naming Politics) में भी कई पदक भारती की झोली में डाले है। अभी और कुछ पदक मिलने की उम्मीद बंधी हुई है। गौरव के इस क्षण में केन्द्र सरकार ने खेल क्षेत्र में दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान का नाम बदलकर अब उसे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड करने का फैसला किया है जो स्वागत योग्य कदम है। इसपर अब राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
मेजर ध्यानचंद हॉकी के ऐसे खिलाड़ी थे जिनके नेतृत्व में भारत ने ओलंपिक (Naming Politics) में लगातार गोल्ड मेडल जीतने का किर्तीमान रचा था। उन्हे इसी लिए हॉकी का जादूगर कहा जाता था। उनके जन्मदिन को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है, ऐसी महान हस्ति के नाम पर खेल का सर्वोच्च पुरस्कार दिया जाना वाकई सराहनीय कदम है। किन्तु अब इसे लेकर भी राजनीति शुरू हो गई है क्योंकि इसके पहले यह पुरस्कार पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के नाम पर दिया जाता था। इसीलिए कांग्रेस के नेता इस निर्णय की अलोचना कर रहे है।
उन्हे यह नहीं भूलना चाहिए कि एक ही परिवार के नाम पर पता नहीं कितने खेल पुरस्कार, स्टेडियम और ढेर सारी योजनाएं दशकों से चल रही है। ऐसे में यदि एक पुरस्कार का नाम किसी महान खिलाड़ी के नाम पर किया जाता है तो इसपर उन्हे कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे भी खेल के सर्वोच्च पुरस्कार का नामकरण जनभावना के अनुरूप किया गया है।
पिछले कुछ समय से लगातार यह मांग उठती रही है कि भारतीय हॉकी को विश्व (Naming Politics) में ऊचाईयों तक ले जाने वाले स्व. मेजर ध्यानचंद के योगदान को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए खेल का सर्वोच्च पुरस्कार उनके नाम पर किया जाना चाहिए। जनभावनाओं के अनुरूप ही सरकार ने यह फैसला किया है इसलिए इसपर राजनीति कतई उचित नहीं है।