Municipal body elections should be done through direct system: छत्तीसगढ़ में विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने के बाद अब इस साल के अंत तक नगरीय निकायों के चुनाव होने है। इसके लिए तैयारी शुरू हो गई है। शहरी सत्ता के लिए विभिन्न नगरीय निकायों के वार्डों का नए सिरे से परिसीमन करने की प्रक्रिया 24 जून से शुरू होने जा रही है।
नवंबर, दिसंबर में नगरीय निकायों के चुनाव संभावित हैं। इस बारे में विचार करने के लिए भाजपा विधायक दल की बैठक में नगरीय निकायों के महापौर और अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने के मुद्दे पर चर्चा हुई। अधिकांश विधायकों ने इस पर अपनी सहमति दी। जबकि इस पर सभी विधायकों को सहमत हो जाना चाहिए था। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से पहले ही नगरीय निकायों में महापौर और अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने की परंपरा रही है। किन्तु पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने कार्यकाल में इस प्रणाली को बदल दिया था।
महापौर और अध्यक्ष चुनने का जो अधिकार मतदाताओं को मिला हुआ था। उसे छीन कर पार्षदों को दे दिया था। इसकी वजह से अधिकांश नगरीय निकायों में उनकी पसंद के महापौर और अध्यक्ष चुन लिए गए थे क्योंकि कांग्रेसी पार्षदों पर दबाव रहता था कि वे सत्ता की पसंद पर ही अपनी सहमति की मुहर लगाएं।
पार्षदों द्वारा महापौर और अध्यक्ष का चुनाव कराए जाने का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि पूरे पांच साल तक महापौर और अध्यक्ष को इन पार्षदों को विश्वास में लेकर चलना पड़ता है वो स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले पाते। क्योंकि ऐसा करने की स्थिति में उन्हें पार्षद अविश्वास प्रस्ताव लाकर पद से हटा सकते हैं।
नतीजतन अधिकतर नगरीय निकायों में भ्रष्टाचार का खुला खेल फरूखाबादी चलता रहा और नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती चली गई। कई नगरीय निकायों की माली हालत इतनी खस्ता हो चुकी थी कि बिजली बिल पटाने के भी लाले पड़ गए थे।
इस स्थिति को देखते हुए विष्णुदेव साय सरकार को चाहिए कि वह नगरीय निकायों (Municipal body elections should be done through direct system) के महापौर और अध्यक्ष पद का चुनाव करने का अधिकार नगर की जनता को पुन: सौंपे। ताकि महापौर और अध्यक्ष बगैर किसी दबाव के स्वतंत्र होकर नगरीय क्षेत्रों का विकास कर सके