Movie The Kashmir File : कश्मीर के हिन्दुओं पर हुए अत्याचार की घटना को लेकर बनाई गई हिन्दी फिल्म द कश्मीर फाइल को लेकर अनावश्यक रूप से विवाद खड़ा किया जा रह है। जहां एक ओर बेहद कम लागत में बनी यह फिल्म बाक्स ऑफिस पर रिकार्ड तोड़ रही है। वहीं दूसरी ओर इस फिल्म को लेकर विरोध के स्वर भी लगातार तेज हो रहे हैं।
इस फिल्म को दो संप्रदायों के बीच वैमन्यस्ता बढ़ाने वाली साबित करने की कोशिशें की जा रही है। अनेक विपक्षी नेताओं ने इस फिल्म का पूरजोर विरोध किया है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो द कश्मीर फाइल्स की कड़ी आलोचना करते हुए यहां तक कह दिया है कि केन्द्र की भाजपा सरकार इस फिल्म को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
जम्मू-कश्मीर के ही एक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूख अब्बदुल्ला ने इस फिल्म को झूठ का पुलिंदा कहा है और कश्मीर के तात्कालीन हालात के लिए खुद को बेदाग बताते हुए सारा दोष तात्कालीन वीपी सिंह की सरकार पर मढ़ दिया है। गौरतलब है कि 80 के दशक के अंत में और 90 के दशक के शुरूआत में कश्मीर में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा का जो दौर चला था औैर लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडितों को अपना गांव, घर और प्रदेश छोड़कर पलायन करना पड़ा था। उस समय डॉ. फारूख अब्दुल्ला ही कश्मीर के मुख्यमंत्री थे।
जिनकी निष्क्रियता के कारण ही कश्मीर के हालात (Movie The Kashmir File) बद से बद्तर हुए थे और जब स्थिति बेकाबु हो गई तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। कश्मीर में उस दौरान जो कुछ भी हुआ था उसकी जिम्मेदारी से बचने के लिए ही डॉ. फारूख अब्दुल्ला इस फिल्म की आलोचना कर रहे है।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी द कश्मीर फाइल को मन गणंत काहानी आधारीत फिल्म बताया है और कहा है कि इसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है। दरअसल विपक्ष के ये नेता सिर्फ विरोध के नाम पर ही इस फिल्म का विरोध कर रहे है लेकिन उनके इस तरह के विरोध से फिल्म को और ज्यादा प्रचार मिल रह है। द कश्मीर फाइल्स अन्य हिन्दी फिल्म की तरह ही एक फिल्म है और इस फिल्म को फिल्म ही रहने दिया जाए।
इसे और कोई नाम देने की कोशिश न की जाए। फिल्मकारों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। यदि कोई फिल्मकार ऐसी घटनाओं पर फिल्म बनाता है तो और फिल्म चल जाती है तो उसका सिर्फ इसलिए विरोध होना चाहिए क्योंकि उस फिल्म से आप की पार्टी का वोट बैंक प्रभावित हो सकता है। यह कहा जा रहा है कि इस फिल्म में आधा ही सच दिखाया गया है।
ऐसा आरोप लगाने वाले पूरा सच दिखाने के लिए अपनी कोई फिल्म बनाने या बनवाने के लिए स्वतंत्र है। इस फिल्म में जो कुछ भी दिखाया गया हो उसे राजनीतिक चश्मे ये देखना कतई उचित नहीं है। फिल्म देखने वाले दर्शकों पर ही यह छोड़ देना चाहिए कि वे इस फिल्म को किस नजरिए से देखते है। यह कहना भी इस फिल्म में ङ्क्षहसा ज्यादा दिखाई गई है जो ठीक नहीं है।
जबकि बॉलीवुड की (Movie The Kashmir File) ऐसी सैकड़ों फिल्में बन गई है जिसमें ङ्क्षहसा और अश्लीलता के अलावा और कुछ नहीं होता। ऐसी हिंसक और अश्लील फिल्मों का कोई विरोध नहीं करता। फिर द कश्मीर फाइल का ही विरोध आखिर क्यों