monsoon session: हंगामे के कारण इस सत्र में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनने की संभावना कम
monsoon session: उत्तर प्रदेश और असम की राज्य सरकारें द्वारा जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का काम शुरू करते ही केन्द्र सरकार पर भी यह दबाव बढऩे लगा है कि वह संसद के मानसून सत्र में ही जनसंख्या नियंत्रण विधेयक पेश करें। यद्यपि संसद में चल रहे हंगामे के कारण इस सत्र में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनने की संभावना कम ही नजर आ रही है लेकिन प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून का विरोध भी शुरू हो गया है। खासतौर पर तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों ने प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
दुनिया में आबादी के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है, यदि जनसंख्या नियंत्रण ( monsoon session) कानून नहीं बना और भारत की आबादी इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो आने वाले कुछ सालों में ही भारत चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाली देश बन जाएगा। गौरतलब है कि बढ़ती आबादी का बोझ उठाना अब मुश्किल होता जा रहा है। संसाधन सिमित है और आबादी बढ़ती ही जा रही है। स्थिति यह है कि देश में ८५ प्रतिशत लोगों को शुद्ध पेयजल तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
बढ़ती आबादी के साथ ही गरीबी, भुखमरी और बेराजगारी की समस्या भी विकराल रूप धारण करती जा रही है। बढ़ती आबादी का दुष्प्रभाव कोरोना काल में सबने देखा है, जब अस्पतालों में बेड की कमी हो गई थी, ऑक्सीजन का टोटा हो गया था यहां तक की दवाई और इंजेक्शन की आपूर्ति करना मुश्किल हो गया था।
यदि भविष्य में कोई महामारी फैलती है तो उससे इतनी बड़ी आबादी को बचा पाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। जनसंख्या विस्फोट के खतरे को मद्देनजर रखते हुए केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करें। एक या दो बच्चों के परिवार वालों को ही सभी शासकीय सुविधाओं का लाभ मिलें, दो से ज्यादा बच्चे वाले परिवारों ( monsoon session) को सभी शासकीय सुविधाओं से वंचित किया जाएं।
ऐसे लोगों को न सिर्फ चुनाव लडऩे से बल्कि वोट देने के अधिकार से भी वंचित किया जाना चाहिए। इस तरह के कड़े कदम उठाने से ही बढ़ती आबादी पर लगाम लगेगी और देश पर मंडराता जनसंख्या विस्फोट का खतरा टलेगा।