Monsoon Session : संसद का मानसून सत्र पिछले एक सप्ताह से हंगामों की भेंट चढ़कर रह गया है। विपक्ष लगातार संसद के दोनों सदनों में हंगामा कर के सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहा है, नतीजतन पिछले एक सप्ताह से संसद में कोई काम नहीं हो पाया है। विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रहा है लेकिन सरकार की ओर से जवाब सुनने के लिए तैयार नहीं है।
गौरतलब है कि संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट लगभग तीन लाख रूपए का खर्च आता है, इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि सात दिनों से संसद में कोई काम न होने के कारण कितनों करोड़ों का अपव्यय हो चुका है। इस खर्च में माननीय विधायकों को मिलने वाले वेतन भत्ते और अन्य सुविधाओं का खर्च शमिल नहीं है।
जाहिर है हंगामा करने को ही अपना काम समझने वाले माननीयों (Monsoon Session) को इस बात की कतई कोई चिंता नहीं है कि संसद के बेशकीमती सत्र को हंगामों की भेेंट चढ़ाकर वे देश का कितना बड़ा नुकसान कर रहे है। यह ठीक है कि विपक्ष को सरकार पर आरोप लगाने का और सरकार की नीतियों की आलोचना करने का तथा अपना विरोध जताने का पूरा अधिकार है।
विपक्ष के नाते यह उनका दायित्व भी है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि संसद में कोई काम ही न होने दिया जाएं। ऐसा करना देश की जनता के साथ बड़ी नाइंसाफी है जो इस उम्मीद के साथ इन माननीयो को चून कर प्रजातंत्र (Monsoon Session) के सबसे बड़े मंदिर में भेजती है कि वे वहां जनहित से जुड़े मुद्दें को उठाएंगे और समस्याओं का समाधान करने में सहभागिता निभाएंगे।
दरअसल पिछले कुछ सालों से संसद (Monsoon Session) में काम कम और हंगामा ज्यादा होने लगा है। अब समय आ गया है कि संसद के जिस सत्र में जितने दिनों का काम होता है उतने ही दिनों का वेतन और भत्ता सांसदों को दिया जाएं। उनके हंगामे के कारण जो भारी राशि व्यर्थ जाती है उसकी भरपाई भी इन सांसदों के वेतन भत्ते और अन्य सुविधाओं में कटौती कर के वसूली जाएं।
जब तक इस तरह के कड़े प्रावधान नहीं किए जाएंगे तब तक ये हंगामाजीवी माननीय संसद को अखाड़ा बनाने से बाज नहीं आएंगे।