Meaning of Hemant Soren’s victory in Jharkhand: आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में हेमंत सोरेन चौथी बार प्रदेश की बागडोर संभालने जा रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा में इस बार के विधानसभा चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। और वहां की 81 विधानसभा सीटों में से आईएनडीआईए को 57 सीटों पर शानदार जीत मिली।
जबकि एनडीए को सिर्फ 23 सीटें मिल पाई। झारखंड में हेमंत सोरेन की फिर से सरकार बनना इस बात का प्रमाण है कि उस प्रदेश में उनकी लोकप्रियता का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है। बावजूद इसके की भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें ऐन चुनाव के पहले जेल जाना पड़ा था।
यही नहीं बल्कि भाजपा ने हेमंत सोरेन को और उनकी पार्टी को कमजोर करने के लिए चंपई सोरेन को भी भाजपा में शामिल कर लिया था। जिसे हेमंत सोरेन ने जेल जाने से पहले झारख्ंाड का मुख्यमंत्री बनाया था।
उस चंपई सोरेन का भाजपा में जाना भी झारखंड के लोगों को पसंद नहीं आया। और हेमंत सोरेन के खिलाफ हुई कार्यवाही से भी वहां के आदिवासी समाज में भाजपा के प्रति असंतोष फैल गया। नतीजतन भाजपा को झारखंड में मुंह की खानी पड़ी। हेमंत सोरेन को न सिर्फ सहानुभूति का लाभ मिला बल्कि झारखंड के स्थानीय लोगों के हित में लिए गए निर्णय ने भी मतदाताओं को प्रभावित किया।
दूसरी ओर भाजपा को उसका अतिआत्मविश्वास ले डूबा। भाजपा यह मान कर चल रही थी कि हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ एंटीइंकमबेंसी के चलते उसकी चुनावी नैया पार हो जाएगी। इसी के चलते भाजपा ने कई रणनीतिक भूले की। जिसका उसे खामियाजा भुगतना पड़ा।
भाजपा के रणनीतिकारों ने झारखंड में बनी जयराम महतो की नई पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा को हल्के में लिया। झारखंड के उभरते कुर्मी नेता जयराम महतो ने विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा नेताओं से भेंट कर गठबंधन बनाने की कोशिश की लेकिन भाजपा नेताओं ने उन्हें कोई महत्व नहीं दिया।
उनके बदले ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के साथ भाजपा ने समझौता किया। जिसे 10 सीटें दी गई। लेकिन वह मात्र एक सीट जीत पाई। दूसरी ओर जयराम महतो की नई पार्टी ने भी सिर्फ एक सीट जीती लेकिन उसने 17 सीटों पर भाजपा की हार तय कर दी।
जहां उसके उम्मीदवारों ने 40 हजार तक वोट पाए। इस तरह भाजपा से बड़ी रणनीतिक चूक हुई। यदि भाजपा जयराम महतो को तरजीह देती तो बहुत संभव था कि झारखंड में भाजपा की सरकार बन जाती।