Mamata Banerjee on collision course: बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शहीद दिवस के अवसर पर फिर एक बार विवादास्पद बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि यदि बांग्लादेश से पीडि़त लोग शरण लेने के लिए हमारे दरवाजे पर आएंगे तो उन्हें शरण दी जाएगी।
ममता बनर्जी ने ऐसा बयान देकर एक बार फिर सीधे केन्द्र सरकार से टकराव मोल ले लिया है। वैसे भी ममता बनर्जी शुरू से ही केन्द्र के साथ टकराव के रास्ते पर चल रही है। जब बंगाल सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ सीबीआई ने जांच तेज की थी तो उन्होंने बगैर बंगाल सरकार की अनुमति के सीबीआई के बंगाल में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी।
ईडी के अधिकारियों द्वारा जब भ्रष्टाचार के मामलों की जांच की गई तो उसका भी बंगाल में प्रबल विरोध किया गया। ममता बनर्जी सीएए का भी विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि वे इसे बंगाल में लागू नहीं होने देंगी। अब उन्होंने कहा है कि वे बांग्लादेशियों को शरण देंगी। यह सीधे सीधे केन्द्र सरकार को चुनौती है।
ममता बनर्जी को यह पता होना चाहिए कि शरण देने का फैसला केन्द्र सरकार करती है। किसी भी राज्य सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी देश के नागरिकों को अपने राज्य में शरण दें। 1971 में जब भारत के हस्तक्षेप से पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए थे और बांग्लादेश नए देश के रूप में अस्तित्व में आया था।
तब बांग्लादेशियों को भारत में शरण देने का फैसला तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने लिया था। किसी भी राज्य सरकार को यह अधिकार कतई नहीं है कि वह शरणार्थियों को अपने यहां बसाए। किन्तु लंबे समय से बंगाल और असम में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग घुसपैठ कर रहे हैं। और बंगाल में तो ममता बनर्जी की सरकार न सिर्फ उन्हें बचा रही है बल्कि मूलभूत सुविधाएं सुलभ करा रही है।
अब तो उन्होंने खुलेआम यह ऐलान कर दिया है कि उनकी सरकार बांग्लादेशियों को शरण देगी। केन्द्र सरकार को चाहिए की वह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee on collision course) को हद में रहने की नसीहत दें। भारतीय संविधान में केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है।
भारतीय संविधान में यह व्यवस्था सुनिश्चित की गई है कि किन विषयों पर सिर्फ केन्द्र सरकार कानून बना सकती है और किन विषयों पर राज्य सरकार अपना कानून बना सकती है। एक समवर्ती सूची भी है। जिसके तहत केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों ही कानून बना सकती हैं।
लेकिन इसमें भी यह प्रावधान है कि यदि समवर्ती सूची में शामिल विषय पर केन्द्र और राज्य कानून परस्पर विरोधाभाषी है तो ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार का ही कानून प्रभावी माना जाएगा। एक ओर तो ममता बनर्जी भी आईएनडीआईए के अन्य दलों की भांति संविधान की दुहाई देती रही है। और दूसरी ओर वे संविधान के नियमों का उल्लंघन कर रही हैं।
केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को वे अपने राज्य में लागू करने से इनकार नहीं कर सकती लेकिन फिर भी वे ऐसा दु:साहस दिखा रही हैं। केन्द्र सरकार से टकराव के रास्ते पर चलकर ममता बनर्जी भले ही अपना वोट बैंक मजबूत कर लें। लेकिन इससे राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
इसलिए केन्द्र सरकार को अब ममता बनर्जी (Mamata Banerjee on collision course) सरकार के खिलाफ कार्यवाही करने से नहीं हिचकना चाहिए। अन्यथा उनके हौसले और बुलंद होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि ममता बनर्जी के ऐसे बयानों और फैसलों पर केन्द्र सरकार गंभीरतापूर्वक विचार कर उचित कार्यवाही करेगी ताकि देश की एकता और अखंडता पर आंच न आने पाए।