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सियासी संकट से गुजराता महाराष्ट्र

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महाराष्ट्र में सियासी संकट और गहराता जा रहा है। वहां राष्ट्रपति शासन लगने के बाद अब भले ही राजनीतिक दलों को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समाप्त समय मिल गया है लेकिन इस बीच विधायकों की खरीद फरोख्त से इंकार नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र में लगा राष्ट्रपति शासन छह माह चलेगा।

यदि इस बीच स्थिर सरकार बनाने का कोई भी पार्टी या गठबंधन पुख्ता दावां करती है तभी राष्ट्रपति शासन समय से पहले खत्म हो सकता है। बहरहाल महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कवायद मंथरगति से ही सही लेकिन चल रही है। शिवसेना सुप्रीमों उद्धव ठाकरे ने अपने विधायकों को आश्वस्त किया है कि बहुत जल्द शिवसेना के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बन जाएगी।

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शिवसेना ने तो सरकार बनाने के लिए दो दिन का वक्त मांगा था लेकिन राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिपारिश कर हमें छह महिने का समय दे दिया है। इधर राकांपा सुप्रीमों शरद पावर ने भी कहा है कि अब हमें सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल गया है। कांग्रेस पार्टी के साथ विचार-विमर्श जारी है जिसके तहत तीनों पार्टियां मिलकर एक साझा कार्यक्रम बनाएगी और फिर सरकार बनाने का दावां पेश करेगी।

शरद पवार का साफ कहना है कि बगैर कांग्रेस के समर्थन के महाराष्ट्र में स्थिर सरकार नहीं बन सकती। इसलिए सरकार में कांग्रेस को शामिल किया जाएगा। गौरतलब है कि राकांपा विधायकों ने एकजूट होकर शरद पवार को वैकल्पिक सरकार के गठन का अधिकार दे दिया है। शरद पावर की कांग्रेस नेताओं से लगातार चर्चा चल रही है। कांग्रेस पार्टी भी अब महाराष्ट्र में साझा सरकार के गठन को लेकर असमंजस की स्थिति से उभरने लगी है।

कांग्रेस विधायकों का पार्टी आला कमान पर दबाव बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस विधायक चाहते है कि कांग्रेस भी सरकार में शामिल हो। दरअसल कोई भी पार्टी फिर से चुनाव मैदान में जाना नहीं चाहती। खास तौर पर कांगे्रस, शिवसेना और राकापां के वे विधायक जो पहली बार विधायक चुने गए है। वे चाहते है कि महाराष्ट्र में किसी भी किमत पर साझा सरकार बने। इधर भाजपा ने भी अभी हथियार नहीं डाले है।

भाजपा फिलहाल खेल देख रही और तेल की धार देख रही है। गौरतलब है कि भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी है और उसे अपने बल बूते पर सरकार बनाने के लिए 45 विधायकों की दरकार है। यदि साझा सरकार बनने में फूट पड़ती है तो इतने विधायक टूटकर भाजपा के साथ आ सकते है। बहरहाल महाराष्ट्र में राजनीति किस करवट बैठती है यह देखना दिलचस्प होगा।

 

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