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Lok Sabha Elections : और अब चौथे मोर्चे की सुगबुगाहट

Lok Sabha Elections: And now the buzz of the fourth front

Lok Sabha Elections

Lok Sabha Elections : 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए और यूपीए ने तो अपनी तैयारी शुरू कर दी है। इसके साथ ही तिसरा मोर्चा बनाने की कवायद भी प्रारंभ हो गई है, यही नहीं बल्कि अब तो चौथे मोर्चे के भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है। तिसरे मोर्चे में जो पार्टियां शामिल नहीं हो रही है उन्होंने चौथा मोर्चा बनाने की कोशिशें तेज कर दी है। यदि चौथा मोर्चा अस्तित्व में आता है तो विपक्ष में और ज्यादा बिखराव होगा और जाहिर है कि इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। वैसे भी अभी प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के आस-पास विपक्ष का कोई नेता नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ों यात्रा करके अपनी छवि सुधारने की कोशिश जरूर की है लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन की गांठे डीली पड़ रही है।

इसमें शामिल दल तीसरे मोर्चे की ओर आकर्षीत हो रहे है। कमोवेश यही स्थिति एनडीए की भी है जिससे अकाली दल और शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने नाता तोड़ दिया है। इधर बहुजन समाजवादी पार्टी सुप्रीमों मायावती ने एकला चलो रे की नीति अपनाते हुए लोकसभा चुनाव अकेले अपने दम पर लडऩे की घोषणा करके विपक्ष के एकजुट होने की कोशिशों पर पानी फेर दिया है। बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमुल कांग्रेस सुप्रीमों ममता बनर्जी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले है कि वे तिसरा मोर्चा में शामिल होगी या चौथे मोर्चे का हिस्सा बनेगी। गौरतलब है कि विपक्ष में प्रधानमंत्री पद को लेकर ही अभी से खींचा तानी मच रही है। जिसे देखकर यही कहा जा सकता है कि सुत न कपास और जुलाहों में लट्ठम लठ्ठा।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार तिसरे मोर्चे की ओर से खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कराने की जुगत में लगे हुए है लेकिन उन्हें अभी तक सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल का ही समर्थन प्राप्त है। दूसरी तरफ तेलांगाना के मुख्यमंत्री आर चंद्रशेखर राव खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में दिखाने के लिए चौथे मोर्चे का गठन करने जा रहे है। इसके लिए उन्होंने हालहि में एक बड़ा सम्मेलन किया जिसमें नई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री के अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिरकत की थी।

जाहिर है तिसरा मोर्चा और प्रस्तावित चौथा मोर्चा अलग-अलग खिचड़ी बनाने में लगे हुए है। जिसका सीधा नुकसान कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को होगा। विपक्षी वोटों का जितना ज्यादा बंटवारा होगा भाजपा और एनडीए को उतना ही ज्यादा फायदा होगा। वैसे भी हमारे देश में तिसरा मोर्चा पहले भी कई बार बन चुका है और चुनाव परिणाम आने के बाद बिखर भी गया। ऐसे में तिसरे मोर्चे की ही सफलता जब संदिग्ध है तो प्रस्तावित चौथा मोर्चा आगामी लोकसभा चुनाव में कितनी प्रभावी भूमिका निभा पाएगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

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