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Lok Sabha Elections : भाजपा को भारी पड़ेगी महिला नेताओं की नाराजगी

BJP Meeting Regarding Election Tickets :

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रमेश सर्राफ। Lok Sabha Elections : भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को अगले लोकसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद का कार्य विस्तार मिल चुका है। अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए नड्डा ने अपने संगठन को पुनर्गठित और चुस्त-दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव से पूर्व जम्मू कश्मीर सहित दस प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। जिनके नतीजों से पता चल जाएगा कि अगले लोकसभा चुनाव में कौन सी पार्टी केंद्र में सरकार बना सकेगी। चुनावों वाले दस राज्यों से लोकसभा की कुल 121 सीट आती है। ऐसे में ऐसे में जिस पार्टी की भी सरकार इन प्रदेशों में बनेगी स्वाभाविक ही है कि लोकसभा चुनाव में भी उसी पार्टी का अधिक प्रभाव दिखेगा। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद अपने गृह प्रदेश हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार को नहीं बचा सके और वहां पर कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो गई। इससे लगता है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नड्डा शायद ही कुछ करिश्मा दिखा पाए। पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द ही रहता लग रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के नेता अभी से अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट चुके हैं। अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भी ही पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर किसी नए नेता को लाने की बजाय जेपी नड्डा को ही रखने का फैसला किया है। भाजपा का मानना है कि नड्डा की पूरी टीम का सेटअप बना हुआ है। ऐसे में नए सिरे से संगठन बनाने में काफी समय निकल जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देशभर में अपने दौरे करने शुरू कर दिए हैं। भाजपा के नेता पूरी तरह चुनावी मूड में नजर आने लगे हैं। पार्टी तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने का सपना देख रही है। ऐसे में भाजपा की ही कुछ बड़ी महिला नेताओं की नाराजगी आने वाले चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती है।

राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे सिंधिया पिछले लंबे समय से राजस्थान में खुद को नेता घोषित करने की मांग करती आ रही है। वसुंधरा राजे चाहती है कि दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी उन्हें नेता प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़े। मगर भाजपा आलाकमान ऐसा करने के मूड में नहीं लगता है। वर्तमान में वसुंधरा राजे भाजपा की राजनीति में हाशिए पर है। कहने को तो उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। मगर सक्रिय राजनीति में उनकी कोई भूमिका नजर नहीं आ रही है।

राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे का कद बहुत बड़ा माना जाता है। विशेषकर भाजपा में तो वसुंधरा राजे के कद का कोई दूसरा नेता नहीं है। वही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश में लगातार दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। राज्य कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू करने के आदेश देकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर्मचारी वर्ग में खासे लोकप्रिय हो रहे हैं। माना जा रहा है कि गहलोत द्वारा पेश किए जाने वाला राजस्थान का अगला बजट भी काफी लोक लुभावना होगा। ऐसे में गहलोत का मुकाबला करने में वसुंधरा राजे ही सबसे उपयुक्त नेता है।

राजस्थान भाजपा का संगठन पूरी तरह वसुंधरा विरोधी नेताओं से भरा पड़ा है। वर्तमान परिस्थितियों में तो वसुंधरा समर्थक कई मौजूदा विधायकों को भी टिकट मिलना संदिग्ध नजर आ रहा है। अंदर खाने चर्चा है कि वसुंधरा समर्थक अपने नेता पर अलग दल बनाकर चुनाव में उतरने का दबाव डाल रहे हैं। हालांकि वसुंधरा राजे देखो और इंतजार करो की नीति पर चल कर आलाकमान का मूड भांपने का प्रयास कर रही है।

मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शिवराज सिंह चौहान सरकार पर लगातार हमलावर हो रही है। शराबबंदी के बहाने उमा भारती लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेर रही है। राजनीति में खुद को हाशिए पर डाले जाने से नाराज उमा भारती भाजपा आलाकमान से बहुत नाराज है। उमा भारती का मानना है कि उन्होंने ही मेहनत कर दस साल से मध्यप्रदेश में शासन कर रही कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़ फेंका था। जिसके बाद उनको मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री तो बनाया गया था। मगर एक अदालती फैसले के कारण उनको पद छोडऩा पड़ा था। बाद में उन्हें मुख्यमंत्री बनने का फिर से मौका नहीं दिया गया। शिवराज सिंह चौहान एक बार मुख्य बनने मंत्री बनने के बाद कुर्सी से ऐसे चिपके कि लगातार चौथा कार्यकाल में भी वही मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उमा भारती को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया। उसके बाद से वह लगातार अपने राजनीतिक पुनर्वास का प्रयास कर रही है। मगर उन्हें राजनीति में कहीं भी एडजेस्ट नहीं किया गया। इससे उमा भारती बहुत नाराज नजर आ रही है और अपनी नाराजगी का खुलकर इजहार भी कर रही है। उमा भारती शराबबंदी के लिए आंदोलन करने का एलान करने के साथ ही शराब दुकान पर पत्थर तक फेंक चुकी हैं। गत दिनो उन्होंने लोधी समाज के कार्यक्रम में कहा था कि वह समाज के लोगों से बीजेपी को वोट देने के लिए नहीं कहेंगी। उन्होंने कहा कि समाज वोट देते वक्त अपने हितों का ख्याल जरूर रखें।

आठवीं बार की सांसद मेनका गांधी भी भाजपा आलाकमान से बहुत खफा नजर आ रही है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी व उनके सांसद पुत्र वरूण गांधी में से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया। इतना ही नहीं उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय परिषद से भी हटा दिया गया। मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी तो लगातार केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ खुलकर बयान बाजी कर रहे हैं। 2017 में मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। मगर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। उसके बाद से ही वरुण गांधी पार्टी लाइन से दूर होते जा रहे हैं।

सबसे वरिष्ठ सांसद होने के बाद भी मेनका गांधी को इस बार मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने से वह खुद को पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रही है। पिछले कुछ समय से मीडिया में लगातार इस बात की चर्चा हो रही है कि वरुण गांधी ने अपने चचेरे भाई राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी कांग्रेस में शामिल होने पर चर्चा की है। हालांकि राहुल गांधी ने कह दिया है कि वरुण गांधी की विचारधारा हमारे से अलग है और वह जहां है वहीं रहकर राजनीति करें।

भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे सिंधिया, उमा भारती, मेनका गांधी की नाराजगी (Lok Sabha Elections) का असर अगले चुनावों में देखने को मिल सकता है। भाजपा आलाकमान को समय रहते उनके गिले-शिकवे पर चर्चा कर उनका समाधान करना चाहिए। तीनों ही महिला नेता अपने-अपने प्रदेशों की राजनीति में प्रभावशाली तो है ही इनके साथ बड़ा समर्थक वर्ग भी जुड़ा हुआ है। इनकी नाराजगी से भाजपा द्वारा केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का सपना कहीं सपना ही बनकर नहीं रह जाये। इस बात का भाजपा आलाकमान को अहसास होना चाहिये।

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