Editorial: बीते पांच सालों के दौरान भारत के पड़ौसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल में हुई तख्तापलट की घटनाओं से भारत को सबक लेने की जरूरत है। हालांकि भारत में तख्तापलट की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती लेकिन पड़ौसी देशों का हश्र देखते हुए सावधानी तो बरतनी ही चाहिए। खासतौर पर तब जबकि भारत के ही कई विपक्षी नेता भारत में भी बांग्लादेश और नेपाल जैसी अराजक स्थिति पैदा होने की संभावना जता रहे हों। पिछले कुछ दिनों से विपक्षी नेताओं के ऐसे बयान सामने आये हैं जो मन ही मन भारत में भी अराजकता फैलने का सपना देख रहे हैं।
शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने इस बार में विवादास्पद बयान देते हुए कहा था कि भारत में भी भारी असंतोष है और यहां भी नेपाल जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि मैं डरा नहीं रहा हूं बता रहा हूं कि बिहार नेपाल के निकट है और यहां भी कुछ भी हो सकता है। जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने बयान दिया है कि यदि कश्मीर में दमन नहीं रूका तो यहां भी नेपाल जैसी स्थिति बन सकती है।
समाजवादी पार्टी के एक नेता आईपी सिंह ने तो भारत के नौजवानों से सड़क पर उतरने का ही आव्हान कर डाला। इसी तरह के और भी कई आपत्तिजनक बयान सामने आये हैं जिसपर गौर करने से यही लगता है कि भारत में भी देश विरोधी शक्तियां अराजकता फैलाने का मंसूबा बनाये हुए हैं। ऐसे लोगों को तो भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने करारा जवाब दिया है और कहा है कि यदि भारत में नेपाल जैसी स्थिति बनती है तो सबसे पहले नेहरू-गांधी परिवार देश छोड़कर भागेगा उसके बाद अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव उद्धव ठाकरे और स्टालिन जैसे लोगों को भी भागना पड़ेगा।
बहरहाल केन्द सरकार ने पड़ौसी देशों में हुई तख्तापलट की घटनाओं को मद्देनजर रखकर एहतियात बरतनी शुरू कर दी है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारत में भी विरोध प्रदर्शन के नाम पर अराजकता फैलाने की कोशिशों पर लगाम लगाने के लिए यह निर्देश जारी किया है कि 1974 के बाद से हुए विरोध प्रदर्शनों का अध्ययन किया जाये और यह पता लगाये जाये कि इन विरोध प्रदर्शनों का कारण क्या था उन्हें वित्तीय मदद कहां से मिली और पर्दे के पीछे किनका हाथ रहा है।
जाहिर है केन्द्र सरकार भविष्य में विरोध प्रदर्शन के नाम पर देश को अराजकता की आग में झोंकने की कोशिशों पर रोक लगाने के लिए कटिबद्ध हो गई है जो जरूरी भी है। इस बारे में विस्तृत अध्ययन करके सरकार को रिर्पोट सौंपी जाएगी और इसमें प्रवर्तन निदेशालय तथा अन्य केन्द्रीय एजेंसियों को भी शामिल किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी किसान आंदोलन और साहिन बाग आंदोलन जैसे कुछ आंदालनों के दौरान देश का माहौल खराब करने की कोशिश जा चुकी है इसलिए सावधानी बरतनी जरूरी है।