Kisan Aandolan : केन्द्र सरकार द्वारा जो तीन नए कृषि कानून बनाए गए है इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक साल तक रोक लगा रखी है। इसके बावजूद संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले विभिन्न किसान संगठन पिछले लगभग एक साल से लगातार आंदोलनरत् है। किसानों को ही नहीं हर किसी को किसी भी सरकारी निर्णय के खिलाफ आंदोनल करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।
किसानों के इस आंदोलन से किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन किसानों का यह आंदोलन (Kisan Aandolan) अब राजनीतिक आंदोलन के रूप में तब्दील होता नजर आ रहा है। कुछ विपक्षी पार्टियों द्वारा किसानों के आंदोलन का समर्थन किया जा रहा है इसमें भी कोई हर्ज नहीं है लेकिन आगामी उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ राजनीतिक पार्टियां इस आंदोलन की आग में अपनी राटियां सेंकना चाह रही है जिसके चलते किसानों का यह आंदोलन दिशाहीन होता जा रहा है।
इसकी एक बानगी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर में देखने को मिली जो किसान नेता राकेश टिकैत की कर्म भूमि है। वहां आयोजित किसान महापंचायत में देश के कई राज्यों से बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया लेकिन उस मंच से जो नारे लगे उससे यह साफ हो गया कि किसानों का यह आंदोनल अब राजनीतिक आंदोलन बनता जा रहा है जो किसानों के हित में कतई नहीं है। किसान संगठनों को यह बात समझनी चाहिए कि जो भी आंदोलन अपनी दिशा से भटक जाता है वह अकसर असफल हो जाता है।
वैसे भी लगभग एक साल से किसान आंदोलन (Kisan Aandolan) कर रहे है लेकिन इसका कोई कारआमद नतीजा सामने नहीं आ रहा है और न ही ऐसी कोई संभावना दूर-दूर तक दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में किसान संगठनों को अपने आंदोनल पर पुनर्विचार करना चाहिए और उन्हे अपने समस्याओं के समाधान के लिए सरकार के साथ बातचीत को प्राथमिकता देनी चाहिए।
ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका बातचीत से समाधान नहीं हो सकता किन्तु इसके लिए किसानों को भी अपनी हठधर्मिता छोडऩी होगी और सरकार को भी लचीला रूख अख्तियार करना होगा तभी बीच का कोई रास्ता निकल सकता है।