Editorial: Just demands of democracy fighters: छत्तीसगढ़ के लोकतंत्र सेनानियों (मीसाबंदियों) ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह ही अपने उत्तराधिकारियों को शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की मांग उठाई है। लोकतंत्र सेनानियों की यह मांग न्यायोचित है। जिस तरह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश की आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाई थी ठीक उसी तरह मीसाबंदियों ने भी 1975 में आपातकाल के दौरान भारतीय लोकतंत्र को बचाने के लिए आंदोलन किया था।
उनके इस आंदोलन को कुचलने के लिए तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने सभी विपक्षी नेताओं और सक्रिय कार्यकर्ताओं के खिलाफ दमन चक्र चलाया था। देशभर में विपक्षी नेताओं को मीसा कानून के तहत गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिया था।
जेल में भी इन मीसाबंदियों को प्रताडि़त किया गया था। इनमें से कई मीसाबंदियों का परिवार मुफलिसी का शिकार हो गया था। केन्द्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद मीसाबंदियों की सुध ली गई और उन्हें लोकतंत्र सेनानी का दर्जा देकर मीसाबंदियों (Just demands of democracy fighters) के लिए सम्मान निधि के रूप में मासिक पेंशन प्रदान किया जाने लगा। छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार ने सत्ता की बागडोर संभालते ही मीसाबंदियों की पेंशन बंद कर दी थी। इसे विष्णुदेव साय सरकार ने फिर से बहाल किया है।
अब यही मीसाबंदी यह चाहते हैं कि उन्हें भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह लाभ मिले। उनके उत्तराधिकारियों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जाए। इस बाबत छत्त्तीसगढ़ के लोकतंत्र सेनानियों ने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपने का निर्णय लिया है। उम्मीद की जा रही है कि साय सरकार मीसाबंदियों की इस मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार का उचित निर्णय लेगी।