नई दिल्ली । भारत में विमानन उद्योग ने उद्यमियों को वैसे ही आकर्षित किया है जैसे कीट-पतंग आग की तरफ आकर्षित होते हैं, लेकिन उनसे में कुछेक ही इस क्षेत्र में जीवित और कामयाब हुए हैं, जोकि सभी प्रकार के एयरलाइन व्यवसाय मॉडल – बजट, पूर्ण सेवा और हाइब्रिड के लिए कब्रिस्तान बना हुआ है।
किंगफिशर सबसे बड़ी निजी पहल थी, लेकिन यह असफल रही। जेट एयरवेज, जिसे प्रतिष्ठित ब्रांड माना जाता था, अभी संकट में है। इससे पहले कई एयरलाइन्स ने अपने लांच होने के कुछ ही वर्षो में शुरुआती सफलता के बाद अपना कामकाज समेट लिया था।
इनमें से कुछ प्रमुख एयरलाइन्स में ईस्ट-वेस्ट, मोदीलुफ्त, दमानिया एयरवेज और मदुराई की पैरामाउंट एयरवेज शामिल है। इनके बंद होने के प्रमुख कारणों में साझेदारों में झगड़ा (मोदीलुफ्त के मामले में), नकदी का संकट और नियामकीय चुनौतियां हैं।
जेट एयरवेज का पतन जो इस उद्योग का शुभंकर था, एक बहुत बड़े खतरे का संकेत है। इसका एकाएक पतन कई विमानन विशेषज्ञों के लिए भी चौंकानेवाला रहा है। क्योंकि यह कंपनी पिछले साल कर्ज में लदी कंपनी एयर इंडिया को खरीदने के लिए बोली लगा रही थी। कतर एयरवेज के पूर्व भारत प्रमुख और विमानन दिग्गज राजन मेहरा ने कहा, भारतीय विमानन कंपनियों का किराया दुनिया के सबसे कम किराए में से एक है। यहां तक कि आज से 10-15 साल पहले भी किराया इतना ही था, या इससे अधिक था।
उन्होंने कहा कि उच्च परिचालन लागत और कीमतों में प्रतिस्पर्धा भी एयरलाइनों के असफल होने का प्रमुख कारण है। साथ ही कई अन्य कारण भी हैं। डेलोइट इंडिया के भागीदार पीयूष नायडू का मानना है कि विमानन कंपनियों का प्रबंधन उसकी सफलता और असफलता के लिए जिम्मेदार होता है।