Jammu and Kashmir : जब से जम्मू कश्मीर से ३७० का खात्मा हुआ है जम्मू कश्मीर को अपने बाप की जागीर समझने वाले पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अपनी दुकानदारी बंद होने से अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है। ये नेता जब तब विवादास्पद और भड़काऊ बयान देकर जम्मू कश्मीर में हालात को तनावपूर्ण बनाने की कोशिश कर रहे है। डॉ फारूख अब्दुल्ला ने बहुचर्चित फिल्म द कश्मीर फाईल्स को लेकर एक बार फिर जहर उगला है। पहले भी इस फिल्म का विरोध कर चुके डा फारूख अब्दुल्ला ने कहा है कि द कश्मीर फाईल्स पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि इसके प्रदर्शन के बाद नफरत फैल रही है।
उनका कहना है कि जब तक इस फिल्म पर रोक नहीं लगेगी (Jammu and Kashmir) तब तक कश्मीरी पंडितों की हत्या होती रहेगी। गौरतलब है कि हाल ही में आतंकवादियों ने दिन दहाड़े एक सरकारी दफ्तार में घुसकर एक कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी थी। फारूख अब्दुल्ला का यह बयान निश्चित रूप से भड़काऊ है। वे इस तरह का बयान देकर आतंकवादियों को भड़काने का ही काम कर रहे है। उनके इस बयान को सरकार गंभीरता से लें और उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करें। इसी तरह उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की नाक में भी नकेल कंसना बहुत जरूरी है। जो आए दिन इसी तरह की विवादास्पद बयानबाजी कर कश्मीर के माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे है।
समझ में नहीं आता कि केन्द्र सरकार आखिर इन सिरफिरे नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने से परहेज क्यों कर रही है। एक के बाद एक भड़काऊ बयान देने के बावजूद इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने के कारण ही इनके हौसले बुलंद हो रहे है और वे भड़काऊ बयानबाजी से तौबा करने को तैयार नहीं है। उनके इस तरह के विवादास्पद बयानों के कारण ही कश्मीर घाटी में शांति की स्थापना दिवा स्वप्र बन गई है।
यदि केन्द्र सरकार सचमुच जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) में शांति और विकास चाहती है तो उसे आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध स्तर पर कार्यवाही करने के साथ ही उनकी हिमायत करने वाले डॉ फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं के खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही करनी होगी जो पाकिस्तान की भाषा बोलते है और हिन्दुस्तान में रहते है, हिन्दुस्तान का खाते है और पाकिस्तान का गुण गाते है। ऐसे नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने से केन्द्र सरकार को हिचकिचाना नहीं चाहिए।